भरत मिलाप : सूर्य की लालिमा संग चढ़ा आस्था का रंग
प्रतापगढ़ के भरत मिलाप में आस्था और परंपरा का पुट दिखा। हजारों की भीड़ ने चारों भाइयों को नम आंखों से गले लगते देखा तो उनके भी आंसू निकल पड़े। सारी रात भीड़ जुटी।
प्रयागराज : रामलला की जन्मस्थली से महज 100 किमी पहले उनका उत्सव पल-पल परवाना चढ़ता गया। सोमवार को सूर्य की लालिमा के चटख होने के साथ आंवला नगरी बेल्हा यानी प्रतापगढ़ पर आस्था व भक्ति का रंग चढऩे लगा। भरत मिलाप के साक्षी बनने आए हर किसी के नयन उस अलौकिक दृश्य की प्रतीक्षा कर रहे थे। वह पल निकट आया तो उत्सुकता और बढ़ गई। साढ़े छह बजे मंत्र गूंज उठे। आरती के स्वर गूंजे..ऊं जय जगदीश हरे, स्वामी जय जगदीश हरे। इसके बाद जब प्रभु राम ने भावुक होकर अनुज भरत को गले से लगाया तो हजारों आंखों में प्रेम व भाव के आंसू छलक उठे।
अवध की राजगद्दी पर न बैठकर त्याग का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत करने वाले भरत को आज जैसे सब कुछ मिल गया था। यह देख स्वामी करपात्री जी की यह धरती अयोध्या सी लगने लगी। हजारों युवा त्याग, भातृ प्रेम व संस्कार की पाठशाला के विद्यार्थी से दिखे। कुछ तो ऐसे थे, जो पहली बार यह देख रहे थे। उनके मन में कई प्रश्न भी थे। सूर्य की किरणें जब धूप में बदलने लगीं तो अलसाए श्रद्धालु घरों का रुख कर चुके थे। बच्चों के हाथ में खिलौने थे और बड़ों के हाथ में उनके हाथ।
बम-बम बोल रही है काशी :
इस बार युवाओं की जोरदार सहभागिता से मेला जवां-जवां सा रहा। ऊर्जा रही, उत्साह छलकता रहा। नई सोच के युवाओं ने मेले का खूब आनंद लिया, लेकिन पूरे संस्कार के साथ। हजारों की भीड़ में कहीं ऐसा कुछ नहीं हुआ, जो प्रतापगढ़ को एक बार फिर अपराधगढ़ कहने पर विवश करता। मेले में आए युवाओं में एक अलग सोच दिखी। वह पूरी मस्ती में थे, जमकर नाचे भी और घूमे, लेकिन पूरी शराफत से। उनकी उमंग बम-बम बोल रही है काशी.. से लेकर मुझे चढ़ गया भगवा रंग-रंग तक रही।
कचहरी रोड पर सड़क के आरपार डिजिटल लाइट लगी थी। कानों में अंगुली डालने पर विवश कर रहे डीजे के गानों पर मस्ती में चूर युवा मटक रहे थे। रामलीला समिति भी जवां हाथों में रहने से नई पीढ़ी की धमक हर ओर दिखी।