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मन में राम का नाम, हाथों से राम का काम

बात 19 नवंबर 1992 की है। कार सेवा के लिए 151 युवकों ने रक्त शपथ ली थी।

By JagranEdited By: Published: Thu, 30 Jul 2020 07:13 PM (IST)Updated: Thu, 30 Jul 2020 07:13 PM (IST)
मन में राम का नाम, हाथों से राम का काम
मन में राम का नाम, हाथों से राम का काम

जागरण संवाददाता, प्रयागराज : बात 19 नवंबर 1992 की है। भिक्खन लाल स्मारक सरस्वती शिशु विद्या मंदिर प्रयागराज के मैदान में सैकड़ों युवाओं का जमघट था। श्रीराम मंदिर के लिए कारसेवा के लिए सबका उत्साह चरम पर था। इसके पहले वह कारसेवा में अयोध्या जाकर बिना कुछ किए लौटे थे। इसकी टीस भी थी। इसलिए 151 युवाओं ने अपना अंगूठा काटकर 'रक्त शपथ' ली थी। साथ ही रक्त से कागज पर लिखा था कि 'इस बार मन में राम का नाम होगा और हाथों से राम का काम करेंगे, अन्यथा सरयू में डूबकर समाधि ले लेंगे लेकिन लौटकर नहीं आएंगे।' शपथ लेने वालों में इलाहाबाद हाईकोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता देवेंद्र मणि त्रिपाठी भी थे। वह तब व्यवसाय करते थे। उम्र थी करीब 31 वर्ष।

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देवेंद्र बताते हैं कि कारसेवकों का जत्था 27 नवंबर से कारसेवकपुरम् अयोध्या पहुंचने लगा था। कारसेवकों की विवादित ढांचे के पास सभा होती थी। युवाओं की टोली का उत्साह चरम पर था। छह दिसंबर 1992 को 11:25 बजे दिन में विवादित ढांचा के पास सभा होनी थी। उससे पहले 10:50 बजे मुंबई, नागपुर से आयी युवाओं की टोली विवादित ढांचा पर चढ़ गई। बैरीकेडिंग तोड़कर उससे ढांचे पर प्रहार शुरू कर दिया, सैकड़ों नागा संन्यासी कंधे से प्रहार कर रहे थे। शाम 4:30 बजे तक उसे गिरा दिया गया। इसके बाद सबने सरयू में स्नान किया।

नरसिम्हा राव ने रखा ख्याल: देवेंद्रमणि बताते हैं कि विवादित ढांचा गिरने के बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने इस्तीफा दे दिया था। तत्कालीन प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव ने कारसेवकों को वापस भेजने के लिए मुफ्त में बसें व ट्रेनें चलवाई थी। सबके खाने-पीने का प्रबंध किया था। महज 24 घंटे में अयोध्या खाली हो गई।

आहत थे पुलिसकर्मी: देवेंद्रमणि 1990 की कारसेवा में भी शामिल हुए थे। कहते हैं कि तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने घोषणा की थी कि अयोध्या में 'परिदा भी पर नहीं मार पाएगा।' प्रयागराज में 27 अक्टूबर 1990 को सुभाष चौराहा से हजारों लोग पैदल आगे बढ़ रहे थे। पुलिस ने फाफामऊ पुल पर घेरकर लाठियां बरसाई थी। मौजूदा उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य तब विहिप के संगठन मंत्री थे। घायलों को कंधे पर लादकर अस्पताल ले गए। सबके खाने-पीने व दवा का प्रबंध किया था। अशोक सिंहल ने इसके लिए उन्हें सम्मानित भी किया था। लाठी चलाने वाले पुलिसकर्मी व पीएसी के जवान भी आहत थे।

अस्थि कलश से बना माहौल

30 अक्टूबर व दो नवंबर 1990 को अयोध्या में पुलिस की गोली से सैकड़ों कारसेवक मारे गए। कोलकाता के रामकुमार कोठारी व शरद कोठारी मरने वालों में थे। देवेंद्रमणि के अनुसार विहिप ने सरयू तट पर सबका अंतिम संस्कार कर उनका अस्थि कलश देशभर में घुमवाया। इससे भी राम मंदिर के लिए कुछ कर गुजरने का जज्बा पैदा हुआ।


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