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Ramlila 2020 : उद्देश्य तो श्रीराम के जीवन चरित्र को समझाना और समझना है, भाषा चाहे जो हो

Ramlila 2020 प्रयागराज की रंगकर्मी व रामलीला में मंच पर किरदार निभाने वालीं ऋतंधरा मिश्रा कहती हैं कि समय की अपेक्षाओं के अनुरूप श्रीराम के जीवन चरित्र को पेश करना होगा।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Published: Tue, 08 Sep 2020 01:28 PM (IST)Updated: Tue, 08 Sep 2020 01:28 PM (IST)
Ramlila 2020 : उद्देश्य तो श्रीराम के जीवन चरित्र को समझाना और समझना है, भाषा चाहे जो हो
Ramlila 2020 : उद्देश्य तो श्रीराम के जीवन चरित्र को समझाना और समझना है, भाषा चाहे जो हो

प्रयागराज, जेएनएन। भारतीय समाज को सबसे उदांत आदर्श और सबसे गहरे संस्कार रामकथा ने ही दिया है। आज के हाईटेक युग में टेलीविजन चैनल, सेटेलाइट के माध्‍यम से चाहे जितने भी मनोरंजन के साधन हों, फिर भी लोग अधिक संख्या में वर्तमान परिवेश में भी रामलीला देखने आते हैं। सैकड़ों की संख्या में सभी आयु वर्ग के लोग रामलीला से आकर्षित होकर रामकथा देखने आते हैं और आत्मिक आनंद की प्राप्ति करते हैं।

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समय की अपेक्षाओं के अनुरूप श्रीराम के जीवन चरित्र को पेश करना होगा : ऋतंधरा

शहर की रंगकर्मी व रामलीला में अपनी कला का प्रदर्शन करने वाली ऋतंधरा मिश्रा कहती हैं कि वैसे तो भारतीय कला केंद्र द्वारा पिछले कई वर्षों से राम के जीवन पर आधारित नृत्य नाटिका और विभिन्न रामलीला में लीला की प्रस्तुति होती है। इसके साथ ही रामलीला की प्रस्तुति में तमाम प्रयोग भी किए जा रहे हैं। कभी यह प्रयोग संगीत की दृष्टि से भी होते हैं तो कही वेशभूषा, कहीं घटनाओं की दृष्टि से तो कहीं भाषा की दृष्टि से भी होता है। वैसे समय की बदलती जरूरतों और समय की अपेक्षाओं के अनुरूप हम श्रीराम के जीवन चरित्र को इस तरह से पेश करें कि लोग आज भी लीलाओं को देख सकें।

ज्यादा से ज्यादा लोग भाव समझ सकें

ऋतंधरा कहती हैं कि अवधी में रामलीला की प्रस्तुति मंच पर होती रही है। और आज भी होती है। भाषा का प्रयोग अवधी में ही करते हैं और इसका सीधा सा कारण यह है कि ज्यादा से ज्यादा लोग इसे समझ सकें। आज अगर हिंदी समझने वाले लोगों की संख्या ज्यादा है तो उसी भाषा में उन तक श्रीराम को पहुंचाना उचित रहेगा। उद्देश्य तो राम के जीवन चरित्र को समझाना और समझना है। कहा कि प्रेम की तरह भक्ति की भी कोई भाषा नहीं होती। अपने भाव की अभिव्यक्ति के लिए जिस भाषा में सहजता महसूस हो उसी का प्रयोग होना चाहिए। इसीलिए भाषा को लोग समझेंगे, उसी माध्यम से वह राम और जीवन को देख और समझ पाएंगे। हमारे यहां तो जीवन मूल्य श्रीराम का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण हैं। राम तो एक माध्यम है जो उनकी मर्यादा है कि जीवन कैसा होना चाहिए रामायण में जो भी उदाहरण है वह करुणा, क्षमा, दया और प्रेम जैसे तत्व हमारे समाज में राम और रामायण की ही देन है। रामायण में समस्या का हल मिलेगा।

श्रीराम को भव्यता पूर्ण तरीके से पेश किया गया है

रंगकर्मी कहती हैं कि शायद इसीलिए हिंदू पूरागाथाओं में श्रीराम सबसे महत्वपूर्ण हैं और इसलिए श्रीराम के चरित्र को देख पाना एक चुनौती है। अभी तक अपने यहां श्रीराम को भव्यता पूर्ण तरीके से पेश किया गया है। लोग अभी भी राम को भगवान मानते हैं।अगर राम को लोग भगवान के साथ-साथ इंसान के भी रूप में देखें तो मुझे लगता है कि लोग राम से ज्यादा प्रेरित हो सकेंगे। उसी स्थिति में राम लोगों के लिए बतौर इंसान ज्यादा सटीक और प्रभावी उदाहरण बन सकते हैं। लोगों ने राम को भगवान मानकर उनके चारों तरफ रहस्य और देवता का एक ऐसा पर्दा डाल दिया है कि जिससे राम को अब इंसान के रूप में दूर कर दिया है।

श्रीराम की प्रासंगिकता सदैव रही है

अगर इस देवता के तत्व को थोड़ी देर के लिए राम के व्यक्तित्व से दूर करके देखें तो हम पाएंगे कि राम भी इंसान थे और हम भी इंसान हैं। जो कुछ इंसान राम में था वह हम सब में है अगर आप एक आदर्श स्थापित कर सकते हैं तो हम क्यों नहीं इस दृष्टि से श्रीराम की प्रासंगिकता आज भी बनी हुई है। आज भी हमारे यहां बेहद प्रासंगिक है। वह यह कि श्रीराम से ज्यादा उनके नाम का प्रभाव है। आज के भौतिकवादी दौर में राम के नाम पर कुछ बिकता है तो वह है राम का नाम और राम हमारे जीवन मूल्यों के प्रतीक है।


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