Allahabad University के प्रोफेसर ने संन्यासी बनकर कटरा आर्यसमाज कार्यालय में किया बरसों जीवन व्यतीत, जानिए कौन हैं वह
एक शिक्षक थे स्वामी सत्यप्रकाश सरस्वती। वे प्रख्यात वैज्ञानिक लेखक कवि संन्यासी आर्यसमाज के प्रचारक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी तथा संपादक थे। उनकी कथनी करनी में अंतर नहीं था। उनका जीवन आदर्श और प्रेरणादायक था। इलाहाबाद (अब प्रयागराज) ही नहीं देश विदेश में भी उन्होंने भारतीय संस्कृति की अलख जगाई।
प्रयागराज, जेएनएन। इलाहाबाद विश्वविद्यालय में सादगी से रहने वाले विद्वान प्रोफेसरों की कमी नहीं रही है। ऐसे शिक्षक बहुतायत में रहे जिन्होंने देश दुनिया में अपनी विलक्षण प्रतिभा का लोहा मनवाया। इनमें से एक शिक्षक थे स्वामी सत्यप्रकाश सरस्वती। वे प्रख्यात वैज्ञानिक, लेखक, कवि, संन्यासी, आर्यसमाज के प्रचारक, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी तथा संपादक थे। उनकी कथनी करनी में अंतर नहीं था। उनका जीवन आदर्श और प्रेरणादायक था। इलाहाबाद (अब प्रयागराज) ही नहीं देश विदेश में भी उन्होंने भारतीय संस्कृति की अलख जगाई। वे इलाहाबाद विश्वविद्यालय के रसायन विज्ञान विभाग के अध्यक्ष रहे और 12 वर्षों तक कटरा आर्यसमाज के कार्यालय में जीवन व्यतीत किया।
बिजनौर से प्रयागराज आए थे
इलाहाबाद विश्वविद्यालय के रसायनशास्त्र विभाग के अध्यक्ष प्रो.जगदंबा सिंह बताते हैं कि सत्यप्रकाश सरस्वती का जन्म 24 अगस्त 1905 को बिजनौर के एक आर्य समाज मंदिर में हुआ था। उनके पिता का नाम गंगाप्रसाद था। उन्होंने 1927 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से रसायनशास्त्र में एमएससी किया था। 1930 में डाक्टरेट की उपाधि प्राप्त की थी। उनका रूझान स्वतंत्रता आंदोलन की तरफ था। उन्होंने 1930 में स्वयं को सत्याग्रह के लिए प्रस्तुत किया था। किंतु तब उन्हें इसकी अनुमति नहीं मिली थी।
कुछ समय के लिए किया गया था नजरबंद
प्रो.जगदंबा सिंह बताते हैं कि स्वामी सत्य प्रकाश सरस्वती इलाहाबाद विश्वविद्यालय के रसायनशास्त्र विभाग के अध्यक्ष भी रहे थे। उन्हें तथा विधि के केके भट्टाचार्य को 1942 में कुछ समय के लिए नजरबंद किया गया था। 1967 में उन्होंने अवकाश ग्रहण किया था।
अवकाश ग्रहण करने के बाद बन गए थे संन्यासी
प्रो.सिंह बताते हैं कि सत्यप्रकाश सरस्वती ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अवकाश ग्रहण करने के चार साल बाद 10 मई 1971 को संन्यास आश्रम की दीक्षा ली। शुरू में वे नया कटरा में जगराम चौराहे के पास बेली रोड पर रहते थे। संन्यासी बनने पर 1971 से 1982 तक कटरा आर्यसमाज के कार्यालय में रहे। परिव्राजक के रूप में कटरा आर्य समाज कार्यालय में रहकर उन्होंने उसे शीर्ष पर पहुंचा दिया। उनके कारण वहां साहित्यकारों, वैज्ञानिकों तथा आर्य विद्वानों का जमघट रहता था। उनकी रसायन विज्ञान के 'रसशास्त्र तथा 'पुरातन रसायन पक्षों में सर्वाधिक रुचि थी।