Premchand Birth Anniversary: प्रसिद्ध कहानीकार की अधूरी रह गई आस, प्रयाग में नहीं टूटी उनकी सांस
Premchand Birth Anniversary प्रेमचंद ने 1935 में कथाकार जयनेंद्र कुमार को पत्र भेजकर बताया था बच्चे इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में पढ़ रहे हैं। मुझे लगता है कि इलाहाबाद ही रहने के लिए ठीक रहेगा। वहां शायद बनारस से अच्छी तरह से काम चले। जीवन का अंतिम समय वहीं बिताऊंगा...।
प्रयागराज, जागरण संवाददाता। हिंदी के प्रसिद्ध कहानीकार, उपन्यासकार मुंशी प्रेमचंद को कौन नहीं जानता। अपने लेखन से सभी को मोहित करने वाले इस महान व्यक्ति की आज जन्मतिथि है। ऐसे में उनके संस्मरण को याद करना जरूरी है। यहां एक बात गौर फरमाने वाली यह है कि मोक्ष की आस में जीवन का अंतिम समय हर व्यक्ति बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी में बिताना चाहता है। वहीं हिंदी साहित्य के शिखर पुरुष मुंशी प्रेमचंद की कामना इससे इतर थी। वह अपनी जन्मस्थली काशी को छोड़कर जीवन का अंतिम समय तीर्थराज प्रयाग में बिताना चाहते थे, उनकी मंशा थी कि अंतिम सांस यहीं टूटे। वह सरस्वती प्रेस को प्रयागराज में स्थापित करने का मन बना चुके थे। अपनी मंशा करीबियों से खुलकर व्यक्त कर दिया था।
मुंशी प्रेमचंद
जन्म : 31 जुलाई 1880
मृत्यु : आठ अक्टूबर 1936
1935 में प्रेमचंद ने जयनेंद्र को पत्र लिख जताई थी मंशा
प्रेमचंद ने 1935 में कथाकार जयनेंद्र कुमार को पत्र भेजकर बताया था 'बच्चे इलाहाबाद (अब प्रयागराज) में पढ़ रहे हैं। मुझे लगता है कि इलाहाबाद ही रहने के लिए ठीक रहेगा। वहां शायद बनारस से अच्छी तरह से काम चले। लेखक संघ व एकेडेमी से कुछ काम मिल जाएगा। जीवन का अंतिम समय वहीं बिताऊंगा...।' हालांकि ऐसा नहीं हो सका और बाबा की नगरी में ही उन्होंने अंतिम सांस ली।
...मैं अपना प्रेस व दफ्तर इलाहाबाद ले जा रहा हूं
चार मई 1935 को प्रेमचंद ने प्रकाशक दयानारायण निगम को पत्र भेजा। वे उर्दू पत्रिका 'जमाना' निकालते थे। पत्र में लिखा, 'मैंने फैसला कर लिया है कि जुलाई से इलाहाबाद में रहूं और वहीं प्रेस व कारोबार उठा लाऊं...।' मई 1935 के ही अंत में पत्रकार इंद्र बसावड़ा को लिखे पत्र में कहा, 'मैं अपना प्रेस व दफ्तर इलाहाबाद ले जा रहा हूं, इस पर भारी खर्च होगा। इसी कारण तुम्हे तुम्हारी किताब पर पेशगी नहीं भेज सकता, क्योंकि मैं नई जगह जा रहा हूं...।'
मदन गोपाल ने अपनी पुस्तक में प्रेमचंद के पत्र के जरिए मंशा उकेरा
समालोचक रविनंदन सिंह बताते हैं कि साहित्यकार मदन गोपाल ने अपनी पुस्तक 'कलम का मजदूर' में प्रेमचंद के पत्रों के जरिए उनकी मंशा को उकेरा है। बताते हैं कि प्रेमचंद ने यहीं अपना पहला उपन्यास उर्दू में 'असरारे मआबिद' लिखना शुरू किया। वह बनारस से प्रकाशित पत्रिका 'आवाजे-खल्क' में धारावाहिक (कई अंकों में) रूप में छपा। उपन्यास के लेखक का नाम था धनपत राय उर्फ 'नवाबराय अलाहाबादी'। इस उपन्यास का हिंदी में अनुवाद 'देव स्थान का रहस्य' नाम से हुआ। इसके बाद प्रेमचंद का रुझान लेखन की ओर बढ़ता गया।
प्रेमचंद की ससुराल इलाहाबाद में थी
प्रेमचंद की ससुराल इलाहाबाद (अब प्रयागराज) के सोरांव में थी। उनके दोनों बेटे श्रीपति राय व अमृत राय प्रयागराज में पढ़ते थे। इससे उनका अक्सर यहां आना होता था। प्रेमचंद ने वाराणसी में सरस्वती प्रेस, हंस प्रकाशन शुरू किया जिसे काफी घाटा लग गया था। घाटा खत्म करने के लिए चार जून 1934 को बंबई (अब मुंबई) गए। फिल्म इंडस्ट्री में पटकथा लिखना था, लेकिन वहां का माहौल उन्हें रास नहीं आया और तीन अप्रैल 1935 को प्रयागराज आ गए थे।
चर्चित कहानियां इलाहाबाद में ही लिखे थे : प्रो. राजेंद्र कुमार
वरिष्ठ साहित्यकार प्रो. राजेंद्र कुमार बताते हैं कि प्रेमचंद चर्चित कहानी 'ईदगाह', 'गोदान' का अधिकतर भाग यहीं लिखा। 'नमक का दारोगा', 'कफन' का पहला ड्राफ्ट प्रयागराज में पूरा किया। छायावादी आलोचक गंगा प्रसाद पांडेय, महीयसी महादेवी वर्मा, सुभद्रा कुमार चौहान, भारती भंडार के वाचस्पति पाठक, उमा राव, बालकृष्ण राव से प्रेमचंद के पारिवारिक रिश्ते थे। प्रेमचंद बंगाली लेखक क्षितींद्र मोहन मित्र के घर व महादेवी वर्मा के विद्यापीठ में रुकते थे। चीनी धर्मशाला जीरो रोड में रुककर उन्होंने गोदान, कर्मभूमि का कुछ अंश लिखा था।