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माघ मेले के नजदीक आते ही प्रयागराज नगर निगम को नालों की फिर आई सुध

माघ मेले का आयोजन नजदीक आते ही गंगा और यमुना में गिरने वाले नालों की सुध नगर निगम को एक बार फिर आई है। गंगा में गिरने वाले नाले के पानी को जैविक विधि से शोधन किया जाएगा। इसके लिए निरीक्षण शुरू किया गया है। शनिवार तक अधिकारियों ने 30 नालों का जायजा लिया।

By JagranEdited By: Published: Sat, 07 Nov 2020 06:32 PM (IST)Updated: Sat, 07 Nov 2020 06:32 PM (IST)
माघ मेले के नजदीक आते ही प्रयागराज नगर निगम को नालों की फिर आई सुध
माघ मेले के नजदीक आते ही प्रयागराज नगर निगम को नालों की फिर आई सुध

जागरण संवाददाता, प्रयागराज : माघ मेले का आयोजन नजदीक आते ही गंगा और यमुना में गिरने वाले नालों की सुध नगर निगम के अफसरों को फिर आई है। इन नदियों में सीधे गिरने वाले 40 नालों का निरीक्षण शुक्रवार से शुरू किया गया। शनिवार तक 30 नालों का जायजा लिया जा चुका है। नालों के पानी को जैविक विधि (बायो रेमिडेशन) से शोधन के लिए तीन एजेंसियां लगाई गई हैं।

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माघ मेले में गंगा में गिरने वाले नालों के पानी को हमेशा हंगामा होता है। इसलिए नगर निगम ने नालों के पानी के शोधन के लिए पहले से ही इंतजाम शुरू कर दिया है। इसके लिए पर्यावरण अभियंता और जेई राम सक्सेना ने शुक्रवार को 15 नालों का निरीक्षण किया था। दूसरे दिन भी इतने ही नालों का जायजा लिया गया। नालों में जमी गंदगी को साफ कराया गया। नालों के पानी के जैविक विधि से शोधन के लिए गाजियाबाद, चेन्नई और दिल्ली की एजेंसियां चयनित की गई हैं। इन नालों के पानी का होगा शोधन

शंकरघाट और शंकरघाट कालोनी का नाला, राजापुर, शिवकुटी का नाला नंबर चार और सात, जोधवल, एडीए कालोनी, टीवी टॉवर, सदर बाजार, करैलाबाग, करैलाबाग का एक 'ए' और एक 'बी' नाला, सदियापुर और बरगदघाट का नाला, दरियाबाद ककरहाघाट, दरियाबाद पीपलघाट और दरियाबाद जोगीघाट, बलुआघाट, फोर्ट नाला नंबर एक और दो, शास्त्री ब्रिज, महेवाघाट नाला नंबर एक और दो, अरैल नाला नंबर दो, सच्चा बाबा आश्रम, यादवपुर और अरैल घाट के समीप का नाला, महेवा पसियाना टोला का नाला नंबर एक, दो और तीन, मवैया, अरैल ब्रिज, सलोरी, गंगोली शिवाला, वटवृक्ष और बसना नाले के पानी को जैविक विधि से शोधित किया जाएगा।

बारिश के दिनों को छोड़कर बाकी दिनों में इन नालों के पानी को जैविक विधि से शोधित करके बहाया जाता है। इस माध्यम में बैक्टीरिया के जरिए डोजिंग करते हैं, ताकि पानी शोधित होकर नदियों में जाए। प्रति एमएलडी के हिसाब से रेट निर्धारित किया जाता है।

उत्तम कुमार वर्मा, पर्यावरण अभियंता।


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