संगमनगरी में अपनों के बीच घुलमिल जाते थे प्रणब दा Prayagraj News
प्रणब दा बंगभाषी लोगों बीच बांग्ला में ही बात करते थे। अंग्रेजी व हिंदी का प्रयोग नहीं करते थे। वर्ष 2013 के प्रवास में उन्होंने बाबू चिंतामणि घोष की प्रतिमा का भी अनावरण किया था।
प्रयागराज,जेएनएन। भारत रत्न, पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी का प्रयागराज के बंगभाषी समाज से भी काफी आत्मीय लगाव था। संगमनगरी में उनके कई प्रवास हुए। कैबिनेट मंत्री व राष्ट्रपति के रूप में। व्यस्तता के बावजूद बंगभाषी समाज के लोगों के लिए उन्होंने समय निकाला। मुट्ठीगंज स्थित मां काली बाड़ी मंदिर भी उन्हें आध्यात्मिक ऊर्जा देता था। वह 1988 व 1996 में यहां दर्शन-पूजन करने पहुंचे थे एक-दो लोगों के साथ। साधारण तरीके से दर्शन पूजन किया और चले गए।
राष्ट्रपति के रूप में निखिल भारत बंग साहित्य सम्मेलन के 85 वें अधिवेशन का किया था शुभारंभ
प्रणब दा की कई स्मृतियां जुड़ी हैं प्रयागराज से। दिसंबर 2013 में उन्होंने राष्ट्रपति के रूप में प्रयागराज में निखिल भारत बंग साहित्य सम्मेलन के 85 वें अधिवेशन का शुभारंभ किया था। प्रयाग संगीत समिति में 1996 में हुए सम्मेलन के अधिवेशन में भी वह आए थे। बांग्ला संस्कृति के मर्मज्ञ व शिक्षाविद् प्रो. एमसी चट्टोपाध्याय बताते हैं कि प्रणब दा सबसे आत्मीयता से मिलते थे। पद का कभी अभिमान नहीं दिखा उनमें। वर्ष 2012 में प्रदेश में हुए विधानसभा चुनाव में वह कांग्रेस के लिए प्रचार के सिलसिले में आए थे। देश के वित्तमंत्री थे। सर्किट हाउस में चुनिंदा लोगों से मुलाकात के दौरान पूछा कि केंद्र सरकार के कामकाज को लेकर क्या रुख है? सीमा की सुरक्षा व बढ़ती महंगाई पर कुछ लोगों ने चिंता जताई तो प्रणब दा बोले, 'चिंता न करो, जल्द सब ठीक करेंगे।Ó शंकर चटर्जी बताते हैं कि प्रणब दा बंगभाषी लोगों बीच बांग्ला में ही बात करते थे। अंग्रेजी व हिंदी का प्रयोग नहीं करते थे। वर्ष 2013 के प्रवास में ही उन्होंने जगत तारन गल्र्स इंटर कॉलेज में बाबू चिंतामणि घोष की प्रतिमा का भी अनावरण किया था। इस दौरान बंगाली सोशल एंड कल्चरल एसोसिएशन ने उनका विशेष अभिनंदन किया था।
'मुझे एक टोकरी अमरूद भेजवा देना'
वर्ष 1988 में इलाहाबाद संसदीय क्षेत्र का उपचुनाव था। कांग्रेस प्रत्याशी सुनील शास्त्री के समर्थन में प्रणब दा प्रचार के लिए आए थे। बंगभाषी समाज के लोगों की सभा राजेंद्रनाथ बनर्जी के सिविल लाइंस स्थित बंगले में थी। यहीं भोजन के दौरान उन्होंने हंसते हुए पूछा कि 'इलाहाबादी अमरूद क्यों खास होता है, उसमें ऐसा क्या है?Ó प्रो.एमसी चट्टोपाध्याय ने खासियत बताई तो काफी प्रभावित हुए। बोले, मुझे एक टोकरी अमरूद भेजवा देना।
राष्ट्रपति पद पर नामांकन करने से पहले इस्तीफा
बांग्ला साहित्य को संरक्षित कर उस पर चर्चा करने के लिए निखिल भारत बंग साहित्य सम्मेलन का गठन किया गया है। संस्था का पहला अधिवेशन 1923 में वाराणसी में हुआ था, जिसकी अध्यक्षता गुरुदेव रवींद्रनाथ टैगोर ने की थी। प्रणव मुखर्जी 2010 में चार साल के लिए संस्था के अध्यक्ष बने। राष्ट्रपति पद के लिए नामांकन करने से पहले अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था। प्रणव दा निखिल भारत बंग साहित्य सम्मेलन के हर अधिवेशन में जरूर शामिल होते थे।