20 साल बाद वैकल्पिक उपचार के आधार पर खारिज नहीं हो सकती याचिका
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि याचिका 20 साल बाद वैकल्पिक उपचार के आधार पर खारिज नहीं की जा सकती।
इलाहाबाद (जेएनएन)। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि याचिका 20 साल बाद वैकल्पिक उपचार के आधार पर खारिज नहीं की जा सकती। कहा कि कई साल बाद बिना सुने याचिका खारिज करने को सही नहीं कहा जा सकता। यह कहते हुए कोर्ट ने एकल पीठ के आदेश को रद कर दिया और नए सिरे से निर्णय के लिए याचिका वापस कर दी है। यह आदेश न्यायमूर्ति एमसी त्रिपाठी व न्यायमूर्ति नीरज तिवारी की खंडपीठ ने आठवीं बटालियन पीएसी बरेली के कांस्टेबल गणेश कुमार की अपील को स्वीकार करते हुए दिया है। अपील पर अधिवक्ता डीसी द्विवेदी ने बहस की।
बिना सुनवाई खारिज नहीं कर सकते याचिका
मालूम हो कि याची को लंबी छुट्टी के बाद नशे की हालत में कार्यभार संभालते समय अधिकारियों से दुव्र्यवहार करने के आरोप में निलंबित कर दिया गया, जिसके खिलाफ याचिका पर कोर्ट ने रोक लगाते हुए जवाब मांगा था। विभागीय कार्यवाही में उसे हटा दिया गया। अपील भी खारिज हो गई, जिसे याचिका में चुनौती दी गई। कोर्ट ने सेवा से हटाने के आदेश पर भी रोक लगाते हुए जवाब मांगा, याची सेवारत रहा। दोनों पक्षों की तरफ से हलफनामे दाखिल हुए। कोर्ट ने 20 साल बाद याचिका की सुनवाई करते हुए याची से कहा कि विभागीय अपील के खिलाफ रिवीजन दाखिल करे। याचिका खारिज कर दी तो विशेष अपील में चुनौती दी गई थी। कोर्ट ने शीर्ष कोर्ट के फैसले के हवाले से कहा कि लंबे समय तक विचाराधीन याचिका की सुनवाई करने के बजाए वैकल्पिक उपचार उपलब्धता के आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता।