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12 हजार पांडुलिपियां और 73 हजार पुस्तकें फिर भी सन्नाटा, जानें कारण

हिंदी में शोध व अध्ययन के लिए हिंदी साहित्य सम्मेलन का संग्रहालय विश्व में सबसे समृद्ध है। हिंदी संस्कृत व पाली की तमाम पांडुलिपियां व पुस्तकें हैं। फिर भी लोगों का आकर्षण कम है।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Published: Tue, 28 May 2019 01:54 PM (IST)Updated: Tue, 28 May 2019 01:54 PM (IST)
12 हजार पांडुलिपियां और 73 हजार पुस्तकें फिर भी सन्नाटा, जानें कारण
12 हजार पांडुलिपियां और 73 हजार पुस्तकें फिर भी सन्नाटा, जानें कारण

प्रयागराज, [शरद द्विवेदी]। हिंदी भाषी प्रदेश में हिंदी के प्रति उदासीनता लोगों की समझ से परे ही है। अब इसे हिंदी के प्रति लोगों का रुझान कम होना कहें या फिर हिंदी साहित्य सम्मेलन के प्रति खत्म होता लगाव कहें। सच यह है कि सम्मेलन का जो संग्रहालय व पुस्तकालय कभी पाठकों से भरा रहता था, वहां अब सन्नाटा सा पसरा रहता है। हजारों पुस्तकें व पांडुलिपियां होने के बावजूद सम्मेलन में पाठक ढूंढे से नहीं मिलते। दिन भर में एक-दो लोग आ जाएं तो गनीमत है। अक्सर कई दिनों तक यहां कोई पाठक दस्तक नहीं देता। चंद शोधार्थी ही कभी कभार नजर आते हैं। 

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 आजादी के बाद पाठकों व शोधार्थियों की संख्या हजारों में थी

हिंदी में शोध व अध्ययन के लिए हिंदी साहित्य सम्मेलन का संग्रहालय विश्व में सबसे समृद्ध है। इसमें 12 हजार से अधिक हिंदी, संस्कृत व पाली की पांडुलिपियां एवं हिंदी व संस्कृत की 73 हजार पुस्तकें हैं। इसका उद्घाटन पांच अप्रैल 1936 को महात्मा गांधी ने किया था, तब जवाहरलाल नेहरू, काका कालेलकर, विजयलक्ष्मी पंडित, पुरुषोत्तम दास टंडन जैसी हस्तियां मौजूद थीं। देश को आजादी मिलने के बाद सम्मेलन में पाठकों व शोधार्थियों की संख्या हजारों में थी। भारत के अलावा यूनिवर्सिटी ऑफ शिकागो, लंदन विश्वविद्यालय, ओसाका विश्वविद्यालय जापान सहित अनेक देशों के हिंदी के शोधार्थी यहां आते थे। 

1990 के बाद इनकी संख्या में गिरावट आने लगी 

समाचार पत्र व पुस्तकें पढऩे प्रतिदिन सैकड़ों पाठक आते थे। 1990 के बाद इनकी संख्या में गिरावट आने लगी। मौजूदा समय में मात्र 30 शोधार्थियों का पंजीकरण है। आम पाठक कभी सम्मेलन का रुख नहीं करते। पाठकों की कम होती संख्या के पीछे सम्मेलन का पुराने ढर्रे में काम करना व प्रचार-प्रसार न करना माना जाता है। 

मौजूद हैं दुर्लभ पांडुलिपियां

हिंदी साहित्य सम्मेलन में 17वीं शताब्दी की हस्तलिखित कुंडलीनुमा सचित्र श्रीमद्भागवत की पांडुलिपि मौजूद हैं। इसमें 38 कलात्मक चित्र भी हैं। ऐसी पांडुलिपि कहीं नहीं मिलेगी। इतना ही नहीं, सिंहासन बत्तीसी, कौमुदी व्याख्या, चतुर्दश स्वप्नाधिकार, सौंदर्य लहरी जैसी पांडुलिपियां भी हैं। इसके अलावा 31 सौ दैनिक, 25 सौ साप्ताहिक समाचार पत्र, 12,500 मासिक पत्रिकाएं, 16 सौ गजट की जिल्दबंद फाइलें हैं। 

पब्लिक लाइब्रेरी में बढ़ रही संख्या 

एक ओर हिंदी साहित्य सम्मेलन में पाठकों की संख्या में निरंतर गिरावट आ रही है, वहीं पब्लिक लाइब्रेरी में पाठक लगातार बढ़ रहे हैं। इस साल 3100 के लगभग पाठक बढ़े हैं। 

बोले हिंदी साहित्य सम्मेलन के महामंत्री

हिंदी साहित्य सम्मेलन के महामंत्री श्यामकृष्ण पांडेय कहते हैं कि सरकार को ङ्क्षहदी साहित्य सम्मेलन जैसी संस्था को बचाने के लिए आगे आना चाहिए। अनुदान देकर इसे डूबने से बचाया जाना चाहिए। हमें मोदी सरकार से उम्मीद है कि वह कुछ सार्थक पहल करेगी। 

दुर्लभ पांडुलिपियों व पुस्तकों के प्रचार-प्रसार का अभाव : डॉ. पृथ्वीनाथ

भाषाविद् डॉ. पृथ्वीनाथ पांडेय कहते हैं कि हिंदी साहित्य सम्मेलन में दुर्लभ पांडुलिपियां व पुस्तकें हैं, लेकिन उसका प्रचार-प्रसार नहीं होता। इससे पाठक उससे दूर हो रहे हैं। सम्मेलन में योग्य व समर्पित लोगों को रखने की जरूरत है। जो सिर्फ सम्मेलन के पक्ष में काम करें। 

सम्मेलन की गतिविधियों को बढ़ाने की जरूरत : प्रो. चट्टोपाध्याय

साहित्यिक चिंतक प्रो. एमसी चट्टोपाध्याय ने कहा कि हिंदी साहित्य सम्मेलन की गतिविधियां कम हो रही है, जिसे बढ़ाने की जरूरत है। देश-विदेश से शोध करने सम्मेलन आने वाले लोगों को सहूलियत मिलनी चाहिए। इससे इसका दायरा बढ़ेगा। अभी शोधार्थियों को दिक्कत होती है। 

अंग्रेजी के बढ़ते दखल ने हिंदी से किया लोगों को दूर : नरेंद्रदेव

लोकतंत्र सेनानी नरेंद्रदेव पांडेय का कहना है कि अंग्रेजी के बढ़ते दखल से लोग ङ्क्षहदी से दूर जा रहे हैं। इससे हिंदी साहित्य सम्मेलन की आय लगातार कम हो रही है। इसे ठीक करने की जरूरत है। उम्मीद है कि शासन-प्रशासन से इस दिशा में उचित कोशिश की जानी चाहिए।  

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