Lockdown में भी रात दो बजे सड़कों की खामोशी तोड़ते दिखा परदेशियों का जत्था Prayagraj News
लॉकडाउन में फंसे लोगों को घरों से फोन आ रहे थे। हर कोई यही कहता था लौट आओ। घर में भी दो वक्त की रोटी मिल जाएगी। जैसा भी होगा गुजर-बसर कर लेंगे।
प्रयागराज, [अमलेंदु त्रिपाठी]। ...देश पराया छोड़ के आ जा, पंछी पिंजरा तोड़ के आ जा, आ जा...उमर बहुत है छोटी, अपने घर में भी हैं रोटी। जी हां, इन दिनों नाम फिल्म का ये गीत उन लोगों पर सटीक फिट होता नजर आ रहा है, जो परदेश में नौकरी, व्यापार या पढ़ाई के लिए गए थे। लॉकडाउन के कारण वहीं फंसे रह गए। शासन और प्रशासन ने उन्हें वापस भेजने के लिए बसें भी चलवाईं। जहां तक साधन मिला सवार हो लिए और फिर पैदल ही अपने गंतव्य को जाना पड़ा।
घर में भी दो वक्त की रोटी मिल जाएगी
तीन हफ्ते के लॉकडाउन में कल आधी रात तक सिर पर गठरी लादे लोग पैदल ही अपने गंतव्य की ओर चले जा रहे थे। इसके लिए कसूरवार कौन है, यह जवाब आसान नहीं। प्रवासी परदेसियों के जत्थे रात दो बजे स्टेनली रोड से पैदल ही घर जा रहे प्रतापगढ़ के लालगंज अजहरा इलाके के राजकुमार, अशोक कुमार, नीरज पाल, प्रदीप, शंकर लाल, मनीष दिल्ली की एक कम्पनी में काम करते थे। बताया कि नोएडा से प्रयागराज तक के लिए बस मिल गई। जगह-जगह खाने पीने की चीजें भी मिलीं। यह तो दिल्ली में भी मिल जाता? फिर इतनी तकलीफ क्यों, जवाब मिला घरों से फोन आ रहे थे। हर कोई यही कहता था लौट आओ। घर में भी दो वक्त की रोटी मिल जाएगी। जैसा भी होगा, गुजर-बसर कर लेंगे।
कोरोना और मुफलिसी भरे सफर के राही वह भी थे
प्रयागराज-लखनऊ मार्ग पर रिजर्व पुलिस लाइंस के सामने झारखंड में गढ़वा के पोस्ट खरेदी गांव गटिया भरवा निवासी राजेश चौधरी और उनके भाई राकेश चौधरी भी कोरोना और मुफलिसी भरे सफर के राही थी। सोमवार की सुबह लखनऊ में पुलिस वालों ने उन्हें सरकारी बस में यह कह कर बैठा दिया कि इलाहाबाद (प्रयागराज) जाओ, वहां से साधन मिल जाएगा लेकिन बस वाला प्रतापगढ़ में छोड़ कर चला गया। प्रतापगढ़ में रोडवेज पर कहा गया कि सवारी होगी तब बस भेजी जाएगी। सवारी नहीं थी और एक ट्रक वाले ने 50 रुपये में प्रयागराज पहुंचाने की बात कही। वह भी शहर के बाहर फाफामऊ में ही छोड़ भाग निकला।
हाथ जोड़कर बोलीं बाबू किसी तरह भिजवाय द...
राजेश के साथ ही करीब 25 लोगों का समूह और था। दो से तीन साल के करीब पांच बच्चे भी थे इसमें। सिंगरौली के मोरवा थाने के लोटार गांव निवासी सोहगरिया इस हुजूम की मुखिया थी। उम्र करीब 50 साल। हाथ जोड़कर बोलीं बाबू किसी तरह भिजवाय द...। उन्हें बताया गया कि चार चौराहे बाद बस स्टैैंड मिलेगा, वहां संभवत: कोई साधन मिल जाए। बात कटाते हुए राजेश ने कहा, वहां तो पुलिस वाले लठिया रहे हैैं। जब बताया गया कि ऐसा नहीं है। यह सुनने के बाद हुजूम कुछ आश्वस्त हुआ। फिर सभी एक दूसरे को दूरी बनाकर चलने का सलाह देते हुए आगे बढ़ चले।
2000 रुपये दे कर ट्रक से पहुंचे प्रयागराज
प्रयागराज में मऊआइमा के मूल निवासी दिनेश कुमार, प्रदीप, शिवकुमार, मोहित और धीरेंद्र कुमार दिल्ली में बिजली मीटर बनाने वाली एचपीएल कंपनी में काम करते थे। लॉकडाउन की घोषणा के बाद उन पर घर वालों का प्यार उमड़ पड़ा। सो यह भी लौट लिए। ट्रक चालक ने प्रति व्यक्ति 2000 रुपये मांगे। विवशता में सभी ने यह रकम दे भी दी। रात ढाई बजे बेली हास्पिटल के पास पटरी पर लेटे थे सभी। संतोष इतना ही था कि अब घर की दूरी 35 से 40 किलोमीटर बची थी। बोले, जल्दी घर पहुंच जाएंगे। रास्ते में खाना-पीना मिला अथवा नहीं, इसका उत्तर था-हां। यह कहे जाने पर दिल्ली नहीं छोडऩा था तो कहा -वहां (दिल्ली में) फांकाकशी से अच्छा था, यहां घर वालों के बीच रहें। जो मिले वही रूखी-सूखी खाएं।