Move to Jagran APP

हेमवती नंदन बहुगुणा की जन्मतिथि : पंडित नेहरू, इंदिरा गांधी कांग्रेस के 'चाणक्य' के कायल रहे Prayagraj News

हेमवती नंदन बहुगुणा कांग्रेस से पहली बार वर्ष 1952 में करछना से विधायक हुए। बहुगुणा दो बार वह यूपी के सीएम रहे। इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्रसंघ से सियासी सफर शुरू किया था।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Published: Sat, 25 Apr 2020 01:11 PM (IST)Updated: Sat, 25 Apr 2020 05:25 PM (IST)
हेमवती नंदन बहुगुणा की जन्मतिथि : पंडित नेहरू, इंदिरा गांधी कांग्रेस के 'चाणक्य' के कायल रहे Prayagraj News
हेमवती नंदन बहुगुणा की जन्मतिथि : पंडित नेहरू, इंदिरा गांधी कांग्रेस के 'चाणक्य' के कायल रहे Prayagraj News

प्रयागराज, जेएनएन। हेमवती नंदन बहुगुणा कद्दावर राजनेता के साथ समाज सेवक भी थे। वह इलाहाबाद विश्वविद्यालय (इविवि) से सियासी सीढ़ी चढ़कर दो बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री, तीन बार लोकसभा सदस्य और एक बार केंद्रीय मंत्री रहे। उन्हें कांग्रेस का चाणक्य भी कहा जाता था। उन्हें राजनीति में संगठन और जोड़तोड़ का ज्ञान था, इसलिए कई दिग्गज नेता उनसे डरते थे। पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू और इंदिरा गांधी उनकी क्षमता के कायल थे।

loksabha election banner

इलाहाबाद विश्वविद्यालय में छात्रसंघ अध्यक्ष रहे बहुगुणा

उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल स्थित बुघाणी गांव में जन्मे हेमवती नंदन बहुगुणा की प्रारंभिक शिक्षा गढ़वाल में हुई थी। उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में उच्च शिक्षा ग्रहण की और छात्रसंघ अध्यक्ष रहे। वह पहली बार वर्ष 1952 में करछना से विधायक हुए। पहली बार 8 नवंबर 1973 से 4 मार्च 1974 तक, दूसरी बार 5 मार्च 1974 से 29 नवंबर 1975 तक उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। 1977 में केंद्रीय पेट्रोलियम, रसायन तथा उर्वरक मंत्री भी बने। वर्ष 1979 में वह केंद्रीय वित्त मंत्री बने।

अमिताभ बच्चन से 1 लाख 87 हजार वोटों से हार गए थे चुनाव

1984 में वह अमिताभ बच्चन से 1 लाख 87 हजार वोटों से हार गए थे। इसके बाद हेमवती नंदन बहुगुणा कांग्रेस छोड़कर लोकदल में आ गए थे। 17 मार्च 1989 को बाईपास सर्जरी फेल होने के कारण उनका निधन हो गया था।

पिता ही नहीं मार्गदर्शक भी थे : डॉ. रीता जोशी

इलाहाबाद संसदीय सीट की सांसद डॉ. रीता जोशी ने कहा-स्मृति के पन्नों को जब मैं पलटती हूं तो उन्हें पिता ही नहीं मार्गदर्शक के रूप में पाती हूं। वह विधायक रहे हों या मुख्यमंत्री। रोज सुबह लुंगी और बनियान पहनकर बरामदे में एक छोटे से शीशे में दाढ़ी बनाते-बनाते बहुगुणा जी न जाने कितने लोगों से मिल लिया करते थे। साधारण सा कार्यकर्ता भी उन्हें फटकार कर चला जाता था और वह मुस्कुराकर कहते मुझसे स्नेह करता है। दशकों तक सत्ता में रहने के बाद जब वह रुखसत हुए तो कोई बैंक बैलेंस और चल-अचल संपत्ति नहीं थी।

बोले, ऐसा लग रहा है कि मेरे युग की राजनीति का अंत हो गया है

सांसद डॉ. रीता जोशी बताती हैं कि आपातकाल घोषित होने पर वह कांग्रेस के ऐसे मुख्यमंत्री थे, जिन्होंने इंदिरा से कहा-आप शेर की सवारी कर रही हैं, उतर जाइए वरना शेर आपको खा जाएगा। 1984 में अमिताभ बच्चन से इलाहाबाद लोकसभा चुनाव हारने के बाद वह भारी मन से बोले, ऐसा प्रतीत हो रहा है कि मेरे युग की राजनीति का अंत हो गया है।

बहुगुणा को बचाने में लाल पद्मधर हुए शहीद

वरिष्ठ पत्रकार व ज्योतिषाचार्य डॉ. रामनरेश त्रिपाठी बताते हैं कि देश के पहले ऐसे नेता थे, जो गांव के व्यक्ति के लिखे पत्र का फौरन जवाब दे देते थे। छात्र जीवन में वह क्रांतिकारी छात्रनेता की भूमिका अदा कर रहे थे। इसी का परिणाम था कि 1942 के आंदोलन में जिस वक्त ब्रिटिश हुकूमत ने जिला कचहरी पर छात्रों के जुलूस पर गोलियां बरसाईं, उस समय बहुगुणा सबसे आगे थे, जैसे ही उन्हें शूट करने का आदेश हुआ लाल पद्मधर आगे आ गए। गोली उनके सीने पर लगी और वह शहीद हो गए।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.