इलाहाबाद के आनंद भवन से पंडित नेहरू ने लिखा था 'पूर्ण स्वतंत्रता का भाषण पत्र'
पंडित नेहरू और आनंद भवन जैसे एक दूसरे के पूरक हों। आनंद भवन में पंडित नेहरू ने 1928 में पहली बार देश की आजादी का बिगुल फूंका था।
इलाहाबाद [विमल पांडेय]। संगमनगरी इलाहाबाद का आनंद भवन देश के स्वतंत्रता की अनेक यादों को समेटे हुए है। आनंद भवन देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू की पुण्यतिथि पर बरबस ही याद आ जाता है।
पंडित नेहरू और आनंद भवन जैसे एक दूसरे के पूरक हों। आनंद भवन में पंडित नेहरू ने 1928 में पहली बार देश की आजादी का बिगुल फूंका था। उनके द्वारा 'पूर्ण स्वतंत्रता' की घोषणा करने वाला भाषण भी यहीं लिखा गया था। पंडित नेहरू देश की आजादी के लिए इतने दीवाने थे कि उन्होंने हर आंदोलन की रणनीति क्रांतिकारियों के साथ मिलकर यहीं से तय की थी। वह कहते थे देश की आजादी का पवित्र गवाह बनेगा यह आनंद भवन। सबसे बड़े आंदोलन 'भारत छोड़ो' आंदोलन की रुपरेखा उन्होंने यहीं से तैयार की थी। उनके पिता मोतीलाल ने आनंद भवन का निर्माण कराया था।
इसी कारण प्रयाग इलाहाबाद में दो वजहों से खासकर विश्वविख्यात है। एक गंगा-यमुना और विलुप्त सरस्वती का संगम और दूसरा आनंद भवन, जिसका संबंध हिंदुस्तान के स्वतंत्रता संग्राम से रहा है। इसी भवन से स्वतंत्र भारत की अलख राष्ट्रनायकों ने जगाई। पंडित नेहरू की पुण्यतिथि पर आज ऐसी अनेक यादें हर किसी के जेहन में उतर जाती हैं। पंडित नेहरू की यादों को आज भी संग्रहालय के रूप में सजाया गया है। इंदिरा गांधी का जन्म भी आनंद भवन में हुआ था।
विरासत में बचे आनंद भवन को इंदिरा गांधी ने प्रधानमंत्री बनने के बाद एक नवंबर, 1970 को जवाहरलाल नेहरू स्मारक निधि को सौंप दिया। 1971 में आनंद भवन को एक स्मारक संग्रहालय के रूप में दर्शकों के लिए खोल दिया गया। समय का चक्र इतिहास बना रहा है। गांधी परिवार आज भी उसका एक नायक है। इतिहास के रचे इन्हीं अनगढ़ पत्थरों के बीच आज पंडित नेहरू जीवंत दिखते हैं। गली-गली, कूचे-कूचे पंडित नेहरू के किस्से बच्चे से बूढ़े तक की जुबानी रहते हैं। उनकी हर याद का फलसफा हर कोई अपनी जिंदगी में उतारने का सार्थक प्रयास करता है।