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कोरोना काल में बेजुबानों की जुबान बनी ओसीन, लाकडाउन के दौरान सौ से अधिक कुत्तों को कराया नियमित भोजन

बचपन से पशु प्रेमी रही 21 वर्षीय ओसीन ने इसे मिशन की तरह बेजुबानों की सेवा करने का निश्चय किया। लाकडाउन में सौ से अधिक कुत्तों को नियमित भोजन कराया। खास बात यह कि बीमार और घायल को घर में लाकर चिकित्सकीय सलाह लेकर निजी खर्च पर उनका देखभाल किया।

By Ankur TripathiEdited By: Published: Sat, 17 Apr 2021 08:00 AM (IST)Updated: Sat, 17 Apr 2021 08:00 AM (IST)
कोरोना काल में बेजुबानों की जुबान बनी ओसीन, लाकडाउन के दौरान सौ से अधिक कुत्तों को कराया नियमित भोजन
बचपन से पशु प्रेमी रही 21 वर्षीय ओसीन ने इसे मिशन की तरह बेजुबानों की सेवा करने का निश्चय किया

प्रयागराज, अमित सिंह। जीवन में कभी-कभी ऐसे मौके आते हैं जब आपको अपने जीवन का सार्थक उद्देेश्य पता चलता है। ऐसा ही कुछ कोरोना काल में जार्जटाउन निवासी ओसीन कौर के साथ के हुआ। पिछले वर्ष बढ़ते संक्रमण में जब पूरा देश बंद था तब इन्हें बेजुबान जानवरों की लाचारी दिखी, खासकर स्ट्रीट डाग की।

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बीमार और घायलों को निजी खर्च पर इलाज कर छोड़ा

बचपन से पशु प्रेमी रही 21 वर्षीय ओसीन ने इसे मिशन की तरह बेजुबानों की सेवा करने का निश्चय किया। पूरे लाकडाउन में सौ से अधिक कुत्तों को नियमित भोजन कराया। खास बात यह रही कि बीमार और घायल को घर में लाकर चिकित्सकीय सलाह लेकर निजी खर्च पर उनका देखभाल किया। वर्तमान समय में भी सेवा का यह क्रम जारी है। 

मिरांडा हाउस कालेज से बीए की पढ़ाई 

ओसीन कौर मिरांडा हाउस कालेज से बीए की पढ़ाई कर रही हैं। पिता एक निजी बैंक में सीनियर मैनेजर पद से रिटायर्ड हो चुके हैं। माता समाजसेवी हैं। वह कहती है कि बेजुबानों की सेवा करना जीवन के प्रमुख लक्ष्यों में से एक है। मुझे बचपन से ही पशु पक्षियों से लगाव था। मार्च 2020 में लाकडाउन ने दौरान मैं अपनी बालकनी पर थी और सड़क पर एक कुत्ते का बच्चा जोर-जोर से चिल्ला रहा था। नजदीक जाकर देखा तो कई और भी थे। मैने फौरन सभी के लिए दूध और ब्रेड की व्यवस्था कराई। दूसरे दिन भी यही हाल रहा, लेकिन इस बार कुत्तों की संख्या बढ़ गई। मुझे अहसास हुआ कि लाकडाउन में इनके जैसे कितने और होंगे जो भूख से तड़प रहे होंगे। फिर मैं जार्जटाउन, बालसन, टैगोर टाउन, विश्वविद्यालय समेत कई इलाकों में हालात जानने के लिए निकली। मैने पाया कि सौ से अधिक कुत्ते हैं। जिनको भोजन की जरूरत है। मैने महीने भर से अधिक सबको भोजन कराना शुरु किया। दूध, ब्रेड, बिस्किट आदि के साथ घर की बनी रोटियां भी बनवाकर खिलाया। इस दौरान सबसे खास बात यह रही कि तीन चार दिन के अंदर ही सब ने मुझे बखूबी पहचान लिया था, सुबह पहुंचने पर ऐसा लगता कि जैसा वो मेरा इंतजार कर रहे हो।


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