पेट्रो उत्पादों के कचरे से लहलहाएंगी किसानों की फसलें
प्रमुख वैज्ञानिक संगीता बोरा का कहना है कि बॉयोएनर्जी खेती की भूमि की उर्वरता को बढ़ाने में सहायक हो सकती है।
प्रयागराज : खेती के लिए खतरनाक समझे जाने वाले पेट्रो उत्पाद अब कृषि की उर्वरता बढ़ाने का काम करेंगे। पेट्रोल-डीजल से निकलने वाले व्यर्थ पदार्थो को अब ऐसे बैक्टीरिया युक्त यूरिया और उवर्रक में बदला जा सकेगा जो भूमि की उपजाऊ क्षमता को बढ़ाने में सहायक होगा। मोतीलाल नेहरू राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान के जैवरसायन विभाग में यह प्रोजेक्ट संचालित किया जा रहा है। वैज्ञानिक मशीनों और कारखानों से निकलने वाले अनुपयोगी पदार्थो से जीवाणु युक्त उर्वरक बनाने की प्रक्रिया अंतिम चरण में है। वैज्ञानिक तेल के तरल ईधन मिश्रण जिसमें पेट्रोल, मिट्टी का तेल, विभिन्न विमानन टरबाइन र्इंधन, डीजल र्इंधन आदि को ऐसे जीवाणु में बदलने का प्रयास कर रहे हैं जो खेती के लिए उर्वरक का काम करेंगे। प्रमुख वैज्ञानिक संगीता बोरा का कहना है कि बॉयोएनर्जी खेती की भूमि की उर्वरता को बढ़ाने में सहायक हो सकती है।
बनाने की प्रक्रिया एवं इसका प्रयोग :
पेट्रोल के बाइप्रोडेक्ट में प्रचुर मात्रा में बायोएनर्जी होती है। इसी एनर्जी को विशेष प्रक्रिया के बाद जीवाणु में परिवर्तित करते हैं। खेतों में जाकर यही जीवाणु युक्त उत्पाद भूमि की उर्वरता को बढ़ाकर फसल उत्पाद की दर को बढ़ाएंगे। वैज्ञानिक तरीके से विशेष प्रोसेस के अंतर्गत बायोवेस्ट को लैब में उर्वरक में परिवर्तित किया जा रहा है। यह प्रक्रिया बड़े बड़े कल कारखानों के साथ छोटी बाइक या मेकेनिकल संयंत्रों से निकलने वाली ग्रीस, वेस्ट आयल अथवा पेट्रो उत्पाद पर काम कर सकती है। बाद में इसका औद्योगिक स्तर पर विस्तार किया जाएगा। यह योजना भारत सरकार के विज्ञान एवं तकनीक विभाग को समर्पित है।