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लालटेन की रोशनी में बिखरी थी नेताजी की आभा, सुभाष चंद्र बोस 1939 में आए थे प्रयागराज

तब तक देर शाम हो चुकी थी। अंधेरा होने पर लोगों को लगा कि नेताजी बिना मिले लौट जाएंगे लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। वो बोले कि मैं सबसे मिलूंगा अंधेरा मुझे अपनों से मिलने से नहीं रोक सकता...। इसके बाद रोशनी के लिए लालटेन जलाई गई।

By Ankur TripathiEdited By: Published: Thu, 05 Aug 2021 08:00 AM (IST)Updated: Thu, 05 Aug 2021 05:46 PM (IST)
लालटेन की रोशनी में बिखरी थी नेताजी की आभा, सुभाष चंद्र बोस 1939 में आए थे प्रयागराज
प्रयागराज आकर यहां आयोजित सभा में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ भरी थी हुंकार

प्रयागराज, जागरण संवाददाता। बात तब की है जब राष्ट्र ब्रिटिश हुकूमत का गुलाम था। गुलामी की जंजीर तोडऩे के लिए भारत की जनता प्रयासरत थी। 19वीं सदी के शुरुआत से ही अंग्रेज शासन के विरोध की चिनगारी सुलगने लगी थी। उस चिनगारी को आगे चलकर ज्वालामुखी का रूप देने में तमाम स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के साथ ही नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने भी अहम भूमिका निभाई थी। भारत की स्वतंत्रता के लिए आजाद हिंद फौज का गठन करने वाले नेताजी 1939 में प्रयागराज आए थे। उन्होंने ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ सभा करके उनकी नीतियों का खुलकर विरोध किया था। इसके माध्यम से हर धर्म व वर्ग के लोगों को अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाने के लिए प्रेरित किया था।

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1939 में की थी पीडी टंडन पार्क में सभा

सिविल लाइंस में मौजूदा समय जहां पीडी टंडन पार्क है। वहीं नेताजी की सभा हुई थी। उन्हें सुनने के लिए दूर-दूर से लोग आए थे। नेताजी ने लोगों से स्वाधीनता के लिए एकजुट होने की अपील की थी। इसके बाद एंग्लो बंगाली स्कूल गए थे। वहां उन्हें समाज के विशिष्टजनों और छात्रों से मिलना था। तब तक देर शाम हो चुकी थी। अंधेरा होने पर लोगों को लगा कि नेताजी बिना मिले लौट जाएंगे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। वो बोले कि 'मैं सबसे मिलूंगा, अंधेरा मुझे अपनों से मिलने से नहीं रोक सकता...। यह सुनकर एंग्लो बंगाली इंटर कालेज में मौजूद लोगों का हौसला बढ़ गया था। इसके बाद रोशनी के लिए लालटेन जलाई गई। नेताजी ने उसकी रोशनी में छात्रों को संबोधित किया। प्रो. एमसी चट्टोपाध्याय बताते हैं कि नेताजी ने छात्रों को मौजूदा स्थिति के बारे में विस्तार से बताते हुए देश को स्वतंत्रता मिलने के फायदे समझाए थे। बोले, 'गुलामी की जंजीर टूटने वाली है, हमें धैर्य व साहस के साथ विपरीत परिस्थिति से लडऩा होगा। सभा के बाद नेताजी सुभाष चंद्र बोस अपने मित्र प्रो. क्षेत्रेशचंद्र चट्टोपाध्याय के दारागंज स्थित घर गए थे।


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