आदमी खुद को कभी यूं ही सजा देता है
महाकवि नीरज यानी गोपाल दास नीरज, मंचीय कविता के सर्वाधिक लोकप्रिय हस्ताक्षर का गुरुवार को निधन हो गया। नीरज, हरिबंस राय बच्चन की मंचीय विधा के कवि रहे हैं। नीरज के कविसम्मेलन में आने का मतलब ही उसकी सफलता हुआ करती थी।
स्मृति शेष
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जगदीश जोशी
महाकवि नीरज यानी गोपाल दास नीरज, मंचीय कविता के सर्वाधिक लोकप्रिय हस्ताक्षर रहे हैं, नीरज हैं तो कवि सम्मेलन सफल। आयोजकों को कवि सम्मेलन का मैदान भरने के लिए कोई जहमत नहीं उठानी पड़ती। पहले आओ, पहले सीट पाओ की तर्ज पर मंच के पीछे के इंतजाम पर जुट जाते। उन्हें श्रोताओं को बुलाकर उनकी खातिरदारी करने की जरूरत नहीं। नीरज के आने की खबर पाकर श्रोता खुद ही वक्त से पहले पहुंच जाते। देर रात नीरज के कविता पाठ तक रुके रहते। हर लाइन पर दाद देते।
बीसवीं सदी के छठें दशक के बाद नीरज मंच लूटा करते। कविता के मंच का खुमार पैदा करने में इलाहाबाद की धरती का बड़ा योगदान रहा है। यहीं के हरिवंश राय बच्चन की मधुशाला ने देशभर के युवाओं को कवि सम्मेलनों का दीवाना बना दिया था। उसी दौर के ठसकबाज शायर फिराक गोरखपुरी ने भी शहरों की सीमाओं को लांघते हुए युवाओं को अपनी ओर आकर्षित किया। उसके पहले अकबर इलाहाबादी ने भी खूब शोहरत बटोरी। बच्चन जी के लिए कहा जाता है कि कई वर्षो तक नगर-नगर, मंच-मंच सिर्फ मधुशाला ही सुनी जाती। श्रोताओं को पूरी किताब याद थी, बच्चन जी के साथ लय मिलाकर वह भी स्वर मिलाया करते। इसी परंपरा को महाकवि नीरज ने आगे बढ़ाया। जब कभी वह नई कविता सुनाते तो श्रोता उन्हें अतीत की कविताओं की ओर ले जाते। तब नीरज को कहना पड़ता पहले नया सुन लो, सुनाऊंगा वह भी सुनाऊंगा।
बात, लखनऊ महोत्सव की है, 1986 में जाड़े की रात। बेगम हजरत महल पार्क (बीएचएम पार्क), इस पार्क को उर्मिला पार्क के नाम से भी जाना जाता है, के एक किनारे में बने खुले मंच पर कवि सम्मेलन हो रहा था। मेरे वरिष्ठ सहयोगी अनूप श्रीवास्तव आयोजक थे, मुझे उनके साथ रहना था। रात करीब 12 बजे कवि सम्मेलन में पहुंचा। नवोदित कवि कविता पाठ कर चुके हैं। अशोक चक्रधर, सुरेन्द्र शर्मा, शैल चतुर्वेदी और नीरज का पाठ होना बाकी था। कवि सम्मेलन इतना जम चुका था कि इन कवियों में हर एक आधे घंटे से कम नहीं ले रहा था। श्रोता भी कविता रस से सराबोर थे। वहीं महाकवि नीरज से पहली मुलाकात हुई।
आयोजक अनूप जी ने इशारे से बुलाया, ग्रीन रूम में नीरज सुस्ता रहे हैं। मेरे एक और वरिष्ठ सहयोगी अशोक त्रिपाठी, मुकुल जी और रवि वर्मा पहले से वहां हैं। नीरज जी को मेरा परिचय दिया, उन्होंने बैठने को कहा। वह अपनी धुन में गीत सुनाने लगते हैं। लंबी तान के साथ, कई-कई बार लाइनें दोहराना बदस्तूर जारी। उनके खामोश होते ही बीच-बीच में अशोक जी अगली लाइन की शुरुआत करते, फिर से नीरज जी तरन्नुम में आ जाते। सुनने वाले हम पांच। अनूप जी बीच-बीच में मंच की ओर जाकर वहां का हाल-हवाल लेते। शैल चतुर्वेदी माइक पर जाएं तो नीरज जी को मंच पर ले जाया जाए। इधर नीरज जी को इतना करीब से सुनते हुए यही सोचते हैं कि अभी कुछ देर बाद मंच से बुलावा आए।
नीरज बोले सुनो अशोक, एक दम नई। कुछ देर के लिए सुई पटक सन्नाटा..। फिर आवाज गूंजती है- 'आदमी खुद को कभी यूं ही सजा देता है, रौशनी के लिए शोलों को हवा देता है। खून के दाग हैं दामन में जहां संतों के, तू वहां कौन से नानक को सदा देता है। आदमी खुद को कभी..' तभी मंच की ओर चलने की बारी आती है। काफी देर बाद हमें ध्यान आता है कि सामयिक विषयों पर भी नीरज की सशक्त लेखनी चली है। आपेरशन ब्लू स्टार के बाद, प्रधानमंत्री निवास पर ही इंदिरा गांधी पर जानलेवा हमला हो चुका है। नीरज उस घटनाक्रम से अत्यंत व्यथित हैं।
उसके बाद कई वर्षो तक तमाम अवसर आए, जब नीरज को कवि सम्मेलनों में सुना, चुनिंदा लोगों की महफिल में सुना। सुनी हुई कविताएं कई-कई बार फिर सुनी, कभी उन्होंने अपने मूड से सुनाया, तो कभी हम लोगों की फरमाइश पर। लेकिन नीरज जी। नीरज यहीं रुके नहीं, कहते हैं- 'मुझको उस वैद्य की विद्या पे तरस आता है, भूखे-नंगों को जो सेहत की दवा देता है। चील-कौवों की अदालत में मुजरिम कोयल है, देखिए वक्त ये अब फैसला क्या देता है।' आज महाकवि नीरज खुद ही फैसला लेकर इस दुनिया से कूच कर गए। बिना गुनगनाए, बिना अलाप लिए। नीरज खुद ही कह गए हैं- 'मत उसे ढूंढिए शब्दों के नुमायश घर में, हर पपीहा यहां नीरज का पता देता है।'