नाटक कलंकी ने बताया कैसे स्थापित हो सकता है प्रजातंत्र
एनसीजेडसीसी में मंचित नाटक के माध्यम से कलाकारों ने कलंकी प्रजातंत्र स्थापित करने की प्रेरणा दी। मध्ययुगीन सामंती व्यवस्था पर नाटक प्रहार है।
प्रयागराज : उत्तर मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र में मध्ययुगीन भारत की मिथक लोककथा पर आधारित नाटक 'कलंकी' का मंचन किया गया। यह नाटक परिवादी सामंती व्यवस्था की पोल खोलने के साथ प्रजातंत्र स्थापित करने कीे प्रेरणा देता है।
नाटक का कथानक एक ऐसे निरंकुश राजा की कथा है जो अपने राज्य में प्रश्न नहीं पूछने देता। राजा हूणों की सेना से लड़ते हुए वह मर जाता है और प्रेत रूप में अवधूत बन जाता है। राजा का पुत्र हेरुप प्रजातंत्र का समर्थक है इस कारण राजा मृत्यु के पूर्व ही उसे विक्रम विहार में शवसाधक तांत्रिकों की कैद में कर अपने विचारों से सत्ता शासन करने के लिए प्रेरित करता है। हेरुप विक्रम विहार से भाग आता है और अपने कृषक मित्रों के साथ प्रजातंत्र स्थापित करने का प्रयास करता है। इसमें उसकी प्रेमिका तारा भी सहयोग करती है। हेरुप के इस प्रयास को अवधूत सहन नहीं करता और तांत्रिक को बुलाकर उसे अभिषिक्त करने के लिए कहता है।
अन्तत: हेरुप की हत्या कर दी जाती है जनमानस अवधूत बने निरंकुश राजा को भी जान जाती है और विद्रोह कर देती है। कहीं कोई कलंकी नहीं आएगा, लेकिन तारा अन्त में बताती है कि कलंकी का घोड़ा आ चुका है उसकी पीठ खाली है। हममें से कोई उस पर बैठ जाए अन्यथा कोई और उसकी पीठ पर बैठ जाएगा और हमें इसका मूल्य चुकाना पड़ेगा।
डॉ. लक्ष्मी नारायण लाल द्वारा लिखित इस नाटक को वरिष्ठ रंग कर्मी शशिकांत शर्मा ने निर्देशित किया। नाटक में अवधूत की भूमिका में विनय मिश्र, हेरुप की भूमिका में आयुष मिश्र, तारा की भूमिका में सोनाली चक्रवर्ती समेत कई अन्य ने अभिनय किया। मुख्य अतिथि वरिष्ठ लेखक एवं रंग कर्मी राजेंद्र तिवारी मौजूद रहे।