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17 वीं सदी में गुजरात से आए नागर ब्राम्हणों ने प्रयागराज में रखी श्रीहाटकेश्वरनाथ मंदिर की आधाराशिला

प्रयागराज में सन् 1883-84 में यहां पर उस समय के प्रमुख नागर ब्राम्हणों ने मिलकर प्रयाग नगर ज्ञानवर्धक सभा की स्थापना की थी जिन्होंने देश भर में फैले नागर ब्राम्हणों से चंदा एकत्रित कर भव्य मंदिर की आधारशिला रखी।

By Rajneesh MishraEdited By: Published: Tue, 09 Feb 2021 06:00 AM (IST)Updated: Tue, 09 Feb 2021 06:00 AM (IST)
17 वीं सदी में गुजरात से आए नागर ब्राम्हणों ने प्रयागराज में रखी श्रीहाटकेश्वरनाथ मंदिर की आधाराशिला
श्रीहाटकेश्वर नाथ महादेव नागर ब्राहम्णों के कुल देवता भी हैं।

प्रयागराज, जेएनएन। प्रयागराज में चौक के समीप मालवीय नगर, बादशाही मंडी, ऊंचा मंडी आदि मुहल्लों में नागर ब्राम्हणों के कुछ घर हैं। शिव के उपासक कहे जाने वाले नागर ब्राम्हणों की उत्‍पत्ति गुजरात के बडनगर को माना जाता है जहां से यह देश के विभिन्न भागों में नौकरी और व्यापार के सिलसिले में पहुंचे। प्रयागराज में भी इनका छोटा सा कुनबा आया था जो वर्तमान में तीर्थराज की संस्कृति में रच-बस गया है।

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गुजरात के बडनगर के मूल निवासी हैं प्रयागराज के नागर ब्राम्हण  

शहर के ऊंचामंडी निवासी और कामता प्रसाद कक्कड़ रोड पर स्थित हाटकेश्वर मंदिर ट्रस्ट के कोषाध्यक्ष नित्यानंद नागर बताते हैं कि नागर ब्राम्हण मूलत: गुजरात के बडनगर के रहने वाले हैं जिसे कालांतर में चमत्कारपुर, आनर्तपुर, नगर, मानपुर सहित आठ नामों से जाना जाता था। इस पूरे क्षेत्र को हाटकेश्वर क्षेत्र भी कहा जाता था और श्रीहाटकेश्वर नाथ महादेव नागर ब्राहम्णों के कुल देवता भी हैं।

17वीं शताब्दी में तीर्थराज प्रयाग पहुंचे थे कुछ अदद परिवार

नित्यानंद के मुताबिक नागर ब्राहम्ण 17वीं शताब्दी में धार्मिक उत्पीडऩ और आर्थिक समस्याओं के चलते गुजरात से देश के भिन्न क्षेत्रों में पहुंचे। उत्तर प्रदेश में पहले आगरा फिर प्रयाग, काशी और लखनऊ आए थे। तब कुछ परिवार ही प्रयागराज आए थे। बाद में इनकी संख्या कुछ बढ़ी। संयुक्त प्रांत की राजधानी होने के समय प्रयागराज में तकरीबन चार-पांच सौ घर नागर ब्राम्हणों के थे लेकिन जब राजधानी शिफ्ट हुई तो अधिकांश लोग लखनऊ व आगरा चले गए। अब 40-50 घर ही हैं।

आचरण की श्रेष्ठता के कारण मिली थी 'नागर' की संज्ञा

श्रीहाटकेश्वरनाथ मंदिर ट्रस्ट के महामंत्री धीरज नागर बताते हैं कि बडनगर गुजरात कला संस्कृति की दृष्टि से तब समृद्ध क्षेत्र था। वहां पर रहने वाले ब्राम्हण अपने संस्कारों एवं आचरण की श्रेष्ठता के कारण समाज में आदर्श माने जाते थे। इसी कारण उन्हें 'नागर' की संज्ञा से विभूषित किया गया था। नागर का तात्पर्य नगर से है जो सभ्यता-संस्कृति से जुड़ा शब्द है। बताया कि स्कंदपुराण के नागर खंड का विशेष महत्व है जो नागर जाति से जुड़ा है।

नागर ब्राम्हणों के ईष्टदेव हैं हाटकेश्वर नाथ महादेव, देते हैं संबल

नित्यानंद के अनुसार श्रीहाटकेश्वर नाथ महादेव नागरों के आराध्य देव हैं, उनकी आराधना से हमें संबल मिलता है। इसी के चलते प्रयागराज में भी केपी कक्कड़ रोड पर हमारे पूर्वजों ने शिवालय की स्थापना की थी। बताया कि सन् 1883-84 में यहां पर उस समय के प्रमुख नागर ब्राम्हणों ने मिलकर प्रयाग नगर ज्ञानवर्धक सभा की स्थापना की थी जिन्होंने देश भर में फैले नागर ब्राम्हणों से चंदा एकत्रित कर भव्य मंदिर की आधारशिला रखी। मंदिर निर्माण का उद्देश्य प्रयागराज में नागर समुदाय का विकास, शिक्षा व धर्म का कार्य संपादित करना था।  

गुजराती भाषा व साहित्य के प्रचार के लिए खोली पाठशाला, लाइब्रेरी

नागर समुदाय द्वारा श्रीहाटकेश्वर मंदिर प्रांगण में गोविंद पाठशाला नाम से लघु पाठशाला भी चलाई जाती है। साथ ही एक पुस्तकालय भी संचालित किया जाता है जिसका उद्देश्य गुजराती भाषा, साहित्य का प्रचार-प्रसार करना है। पुस्तकालय में विभिन्न प्रकार की पुस्तकें मौजूद हैं जिन्हें देश भर से नागर बंधुओं ने भेजी हैं।


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