माघ मास : आस्था के मेले में साइबेरियन पक्षियों का भी 'कल्पवास' Prayagraj News
माघ मास में जहां एक ओर आस्था का मेला लगा है वहीं रूस के साइबेरियन पक्षियों का प्रवास भी इन दिनों संगम पर देखा जा सकता है। गंगा की गोद में श्रद्धालुओं संग अठखेलियां आकर्षक है।
प्रयागराज, अमरदीप भट्ट। हजारों किलोमीटर दूर से उड़कर प्रयागराज आए साइबेरियन पक्षियों से संगम का नजारा गुलजार है। चीं-चीं कर कभी जल में तैरते तो कभी श्रद्धालुओं से अठखेलियां करते इन पक्षियों की माघ मास तक मौजूदगी रहती है। इन विदेशी मेहमानों के साथ दो खास बातें जुड़ी हैं। एक तो यह कि इनके आने से प्रयागराज में तमाम लोगों को रोजगार मिल जाता है और ताज्जुब भी है कि यह इतना लंबा सफर तय कर बिना रास्ता भटके कैसे चले आते हैैं।
साइबेरिया में नवंबर से मार्च तक शून्य से 50 डिग्री तापमान कम हो जाता है
साइबेरियन पक्षी रूस के साइबेरिया से आते हैं। वहां नवंबर से मार्च तक अत्यधिक ठंड पड़ती है। इस अवधि में साइबेरिया का तापमान शून्य से 50 डिग्री सेल्सियस तक नीचे चला जाता है। ऐसे में यह साइबेरिया से माइग्रेट (कहीं अन्य प्रवास) कर जाते हैं। भारत में सबसे पहले महाराष्ट्र और उसके बाद उप्र के प्रयागराज में संगम तट पहुंचते हैं। इस बीच इन्हें रूस से भारत तक लगभग चार हजार किलोमीटर का सफर ये तमाम विपरीत मौसम में भी उड़कर पूरा करते हैैं। संगम और माघ मेला क्षेत्र में गंगा नदी के अन्य घाटों पर साइबेरियन पक्षी वैसे तो नवंबर माह बीतने के समय तक आ जाते हैं, जबकि इनकी वापसी माघ मास के बाद ही होती है।
मानो आप से करते हों संवाद
सेव, लाई या कुछ अन्य दाने खिलाने के दौरान साइबेरियन पक्षी आपकी एक आवाज पर उड़कर चले आते हैं। आसपास ही मंडराने लगते हैं और दाना खाकर उड़ जाते हैं। यह नजारा कुछ ऐसा होता है मानो पक्षी आपसे संवाद करते हों।
कई देशों का सफर कर पहुंचते हैैं यहां
इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय में जंतु विज्ञान विभाग की प्रोफेसर अनीता गोपेश का कहना है कि रूस के साइबेरिया में अधिक ठंड के कारण साइबेरियन पक्षी वहां से माइग्रेट होते हैैं। संगम किनारे माघ मास में लोगों की अत्यधिक भीड़ की वजह से यहां आते हैैं। कई और स्थानों पर जाते हैैं। ये अफगानिस्तान, मंगोलिया और तिब्बत के रास्ते गंगन चुंबी हिमालय पर्वत के ऊपर से हिंदुस्तान में प्रवेश करते हैैं।