प्रतापगढ़ में मनरेगा का काम छोड़ अब परदेस की राह पकड़ रहे प्रवासी कामगार
मुसीबत के वक्त जब अपनों ने भी मदद करने से हाथ खड़ा कर दिया ऐसे समय में मनरेगा ने साथ दिया और प्रवासियों की घर गृहस्थी चल निकली लेकिन अब उनको मनरेगा का काम रास नहीं आ रहा है। ऐसे में उन्होंने परदेस निकलना शुरू कर दिए हैं।
प्रतापगढ़, जेएनएन। कोरोना संक्रमण के चलते कामकाज छोड़कर घर लौटे प्रवासी मजदूरों के लिए मनरेगा आजीविका का सहारा बनी थी। मुसीबत के वक्त जब अपनों ने भी मदद करने से हाथ खड़ा कर दिया, ऐसे समय में मनरेगा ने साथ दिया और प्रवासियों की घर गृहस्थी चल निकली, लेकिन अब उनको मनरेगा का काम रास नहीं आ रहा है। ऐसे में उन्होंने परदेस निकलना शुरू कर दिए हैं। अधिकांश प्रवासी यहां से जा चुके है।
40 हजार प्रवासी लौटे थे घर
कोरोना से बचने के लिए करीब 40 हजार प्रवासी परदेस से प्रतापगढ़ में अपने घर आ गए थे। इसमें 22 हजार प्रवासी अकुशल श्रमिक थे जिन्हें मनरेगा मे रोजगार दिया गया। आसपुर देवसरा ब्लाक में 541, बाबा बेलखरनाथ धाम में 601, बाबागंज में 257, बिहार में 286, गौरा में 752, कालाकांकर में 623, कुंडा में 861, लक्ष्मणपुर में 870 श्रमिक काम कर रहे हैं। इसी तरह लालगंज में 448, मंगरौरा में 811, मानधाता में 769, पट्टी में 1220, सदर में 498, रामपुर संग्रामगढ़ में 674, संड़वा चंद्रिका में 976, सांगीपुर में 752 व शिवगढ़ में 894 श्रमिक मनरेगा से जुड़े काम यानि बंधा निर्माण, भूमि समतलीकरण, चकरोड बनाने में जुटे हैं।
11 हजार से ज्यादा लौटे परदेस
11 हजार से ज्यादा प्रवासी आजीविका के लिए परदेस चले गए। हालांकि जो मनरेगा में काम करना चाह रहे हैं उनको प्राथमिकता से काम दिया जा रहा है। उपायुक्त मनरेगा अजय कुमार पांडेय ने बताया कि जो प्रवासी परदेस से अपने घर आए थे। उसमें शामिल अकुशल श्रमिकों को मनरेगा में रोजगार दिया गया था। काफी प्रवासी काम छोड़कर आजीविका के सिलसिले में परदेस चले गए हैं। अभी भी हजारों प्रवासी काम कर रहे हैं। उनको समय से पारिश्रमिक भी दिया जा रहा है। इच्छुक लोगों को तत्काल काम भी दिया जा रहा है।