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Coronavirus : कोरोना से जंग में मानसिक सैनिटाइजर की अहम भूमिका Prayagraj news

कुछ लोगों इस बीमारी को हल्‍के में ले रहे हैं। वर्तमान परिस्थिति में ऐसे लोगों को मानसिक सैनीटाइजर की बहुत आवश्यकता है।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Published: Sat, 28 Mar 2020 06:50 PM (IST)Updated: Sat, 28 Mar 2020 07:09 PM (IST)
Coronavirus : कोरोना से जंग में मानसिक सैनिटाइजर की अहम भूमिका Prayagraj news
Coronavirus : कोरोना से जंग में मानसिक सैनिटाइजर की अहम भूमिका Prayagraj news

प्रयागराज,जेएनएन। कोरोना जैसे वैश्विक महामारी से लडऩे के लिए मानसिक सैनिटाइजर की भी आवश्यकता है। माला फेरत जुग भया फिरा न मन का फेर, कर का मनका डार दे मन का मनका फेर।। कबीर की पंक्तियां आज के समय में यह कहूं कि वर्तमान हालात पर बिल्कुल सटीक उतरती है। कोरोना जैसी महामारी के लिए अनेक सैनिटाइजर के प्रयोग किए जा रहे हैं, और स्वास्थ्य संगठन और हमारी सरकार ने लोगों को जागृत किया है कि वह लगातार अपने हाथों को साबुन से धोते रहें। ताकि किसी भी प्रकार के कीटाणु प्रवेश न कर सके। परंतु सवाल यह उठता है कि हमारे मन के अंदर क्या चल रहा है। हम किस और किस दिशा में कब क्या सोचते हैं। इस पर बहुत कुछ निर्भर होता है। यह कहना है प्रयागराज के साहित्‍यकार शैलेंद्र मधुर का।

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मन को स्‍वस्‍थ रखने के लिए अच्‍छे साहित्‍य को पढऩा जरूरी

किसी भी जंग को जीतने के लिए हमें मानसिक रूप से बहुत स्वस्थ और समृद्ध होना पड़ता है। जिसकी आज बहुत आवश्यकता है। जरूरत है कि हम मन के सारे ऊंच-नीच दलगत भाव से ऊपर उठकर तथा सिर्फ और सिर्फ इस बारे में सोचे कि मानव जाति कैसे बच सके। इस महामारी से हम और हमारा राष्ट्र सुरक्षित व स्वस्थ तथा समृद्ध हो सके, इस पर सोचना होगा। इसके लिए किसी साबुन या सैनिटाइजर की आवश्यकता नहीं पड़ती है। इसके लिए अगर कोई सैनिटाइजर के रूप में कार्य कर सकता है तो वह है हमारा मन, और मन को स्वस्थ रखने के लिए हमें अच्छे साहित्य, अच्छे शब्द और अच्छे साहित्यकारों को पढऩा बहुत जरूरी है।

ऐसे कठिन समय में महती भूमिका निभा सकते हैं कवि, लेखक और कलाकार

हम लेखकों,साहित्यकारों, रचनाकारों,कवियों और कलाकारों की भी वर्तमान परिस्थिति में महती भूमिका हो सकती है। हम लोगों को इस महामारी से निजात दिलाने के लिए और राष्ट्र किसी रुप से कमजोर ना हो इसके लिए उन्हें अपने शब्दों से अपने साहित्यिक गतिविधियों से तथा अपने लेखन से जागृत करें । सुधांशु उपाध्याय जी की मुझे आज के परिवेश में यह पंक्तियां याद आ रही हैं। कहते हैं कि--

 ''मन की ताकत से पानी पर चित्र उभारा जा सकता है, दोनों हाथ कटे हैं फिर भी गब्बर मारा जा सकता है। ÓÓ

आज हमारे अंदर मन की ताकत को मजबूत करके इस महामारी से लडऩा होगा। समस्या यह है की हम बातें तो बड़ी-बड़ी करते हैं पर उस पर अमल नहीं करते। मैंने अपनी एक गज़़ल के शेर में कहा है। 

''यह सबक सबको हमेशा याद होना चाहिए, मील का पत्थर नहीं बुनियाद होना चाहिए। ÓÓ

लापरवाह लोगों को भी मानसिक रूप से सैनिटाइज करने की जरूरत

जरूरत है कि हम इस महामारी को दूर करने के लिए जो भी संभव प्रयास हो सके करें और बुनियाद बनकर के राष्ट्र की आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक विरासत को अपना मानसिक बल प्रदान करें, क्योंकि घरों में कैद रहने से हम मानसिक बीमारी के शिकार हो सकते हैं। इसीलिए इस समय यह बहुत आवश्यक है कि इस को रोना को हराने के साथ ही साथ हमें अपने को मानसिक रूप से सुदृढ़ करना होगा, तभी हम हर मोर्चे पर सफल हो पाएंगे। साथ ही समाज देश एवं सरकार की कुछ सहायता कर सकते हैं। हम सैनिटाइजर का प्रयोग तो करें, परंतु इसके साथ साथ मन की गंदगी को भी साफ करें। तभी हम इसे एक आंदोलन का रूप देकर इसके खिलाफ संघर्ष करके इस पर विजय प्राप्त कर सकते हैं, क्योंकि कुछ लोग अभी भी लापरवाही बरत रहे हैं या फिर कहूं क्यों उनको किसी की परवाह नहीं है और यह सिर्फ इसलिए हो रहा है। क्योंकि उनके मन में इसके प्रति जो भाव है वह अच्छा नहीं है, या कहूं क्यों बहुत सामान्य रूप से इसे ले रहे हैं। ऐसे लोगों को वर्तमान परिस्थिति में मानसिक सैनीटाइजर की बहुत आवश्यकता है।


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