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Chandra Shekhar Azad Birth anniversary: आजाद की कर्मस्थली रहा प्रतापगढ़ का मतुई नमक शायर गांव

Chandra Shekhar Azad Birth anniversary शहर से लगभग 10 किमी दूर स्थित मतुई नमक शायर गांव के बगल से सई नदी बहती है। आसपास जंगल ही जंगल था।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Published: Thu, 23 Jul 2020 10:10 AM (IST)Updated: Thu, 23 Jul 2020 10:22 AM (IST)
Chandra Shekhar Azad Birth anniversary: आजाद की कर्मस्थली रहा प्रतापगढ़ का मतुई नमक शायर गांव
Chandra Shekhar Azad Birth anniversary: आजाद की कर्मस्थली रहा प्रतापगढ़ का मतुई नमक शायर गांव

प्रतापगढ़, [ रमेश त्रिपाठी]। Chandra Shekhar Azad Birth anniversary देश की आजादी में अहम भूमिका निभाने वाले चंद्रशेखर आजाद की कर्मस्थली प्रतापगढ़ जनपद रहा है। यहां की सदर तहसील स्थित मतुई नमक शायर गांव में रहकर आजाद ने अपने साथियों के साथ प्रिंटिंग प्रेस चलाया, बम की फैक्ट्री भी खोली। ऐतिहासिक मतुई नमक शायर गांव के क्रांतिकारी हरिप्रसाद सिंह के मकान में आजाद के साथ उनके क्रांतिकारी दोस्तों ने अपना ठिकाना बना रखा था। काफी दिनों बाद अंग्रेजों को पता चला तो इस गांव को घेर लिया। हालांकि क्रांति के दीवानों का अंग्रेज बाल भी बांका नहीं कर पाए और मुंह की खानी पड़ी।

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प्रयागराज के बाद प्रतापगढ़ ठिकाना बना

असहयोग आंदोलन के दौरान जब फरवरी 1922 में (चौरीचौरा) की घटना हुई, उसके बाद बिना किसी से पूछे गांधी जी ने आंदोलन वापस ले लिया। ऐसे में देश के तमाम नवयुवकों की तरह आजाद का भी कांग्रेस से मोह भंग हो गया। इसके बाद पंडित राम प्रसाद विस्मिल, शचींद्रनाथ सान्याल, योगेशचंद्र चटर्जी ने 1924 में उत्तर भारत के क्रांतिकारियों को लेकर एक दल हिंदुस्‍तानी प्रजातांत्रिक संघ (एचआरए) का गठन किया। चंद्रशेखर आजाद भी इस दल में शामिल हो गए। आजाद का प्रयागराज (इलाहाबाद ) के बाद प्रतापगढ़ ठिकाना बना।

जंगलों से घिरे गांव में खोली थी बम बनाने की फैक्ट्री 

शहर से लगभग 10 किमी दूर स्थित मतुई नमक शायर गांव के बगल से सई नदी बहती है। आसपास जंगल ही जंगल था। आजाद अपने साथियों के साथ यहां रहकर छापाखाना चलाने लगे। यहीं पर बम बनाने की फैक्ट्री भी खोल ली। इसका उल्लेख प्रतापगढ़ गजेटियर के पृष्ठ संख्या 50 पर किया गया है। इनके द्वारा छापाखाना में छापे गए पर्चे को महिलाओं के माध्यम वितरित कराते थे। महिलाएं झउआ में नीचे पर्चा रखती थीं, ऊपर घास से उसे छिपा कर रखतीं। धीरे से लोगों तक पहुंचाया करती थीं। यहां पर चंद्रशेखर आजाद के साथ ही राम प्रसाद विस्मिल, मंथननाथ, कुंदन लाल, शचींद्र नाथ बख्शी, अशफाक उल्ला खां सहित अन्य क्रांतिकारियों के साथ रुका करते थे। यह सभी स्वतंत्रता संग्राम सेनानी हरि प्रसाद सिंह के यहां शरण लिया करते थे। इनकी मदद लाला मथुरा प्रसाद किया करते थे।

...फिर किसी के यहां नहीं डाली डकैती

चंद्रशेखर आजाद के क्रांतिकारी संगठन ने गांवों के अमीर घरों में डकैती डालने की योजना बनाई, जिससे दल के लिए धन जुटाने की व्यवस्था हो सके। क्रांतिकारियों ने दिलीपपुर के पास कर्मजीतपुर (द्वारिकापुर) में 24 मई 1924 को लाला शिव रतन के यहां डकैती डाली। इस दौरान एक युवती ने आजाद की पिस्टल छीन ली। आजाद ने कसम खा रखी थी कि वह महिलाओं पर कभी हाथ नहीं उठाएंगे, यही वजह थी कि उस महिला पर हाथ नहीं उठाया। बाद में राम प्रसाद बिस्मिल भीतर पहुंचे और युवती को एक चांटा मारकर पिस्टल छीन ली। क्रांतिकारियों से गांव वालों का यहां भीषण मुकाबला हुआ था। इस घटना से आजाद काफी दुखी हुए और फैसला किया कि अब कभी भी किसी के घर में डकैती नहीं डालेंगे, सिर्फ सरकारी प्रतिष्ठानों को ही लूटेंगे। कर्मजीतपुर (द्वारिकापुर) की डकैती को आजाद के साथी रहे अनिरुद्ध शुक्ल ने शहर से प्रकाशित होने वाले साप्ताहिक अखबार अवध में 13 जून 1973 के अंक में विस्तार से प्रकाशित किया था। काकोरी कांड की रूपरेखा में मतुई में ही क्रांतिकारियों ने बनाई थी।

...यहीं बनी थी काकोरी कांड की रूपरेखा

 जिस नौ अगस्त 1925 को काकोरी कांड को अंजाम दिया गया था, उसकी रूपरेखा आजाद के नेतृत्व में प्रतापगढ़ के मतुई नमक शायर गांव में ही गढ़ी गई थी। वरिष्ठ अधिवक्ता व साहित्यकार भानु प्रताप त्रिपाठी मराल बताते हैं कि आजाद सहित आजादी के कई दीवाने मतुई में आकर रुका करते थे। इसका उल्लेख हमने अपनी पुस्तक देश हमारा धरती अपनी में भी किया है। इसमें धर्मपुर द्वारिकापुर की डकैती का उल्लेख किया है। गांव के प्रधान बसंत बहादुर सिंह का कहना है कि हमारा गांव आजादी में काम आया, इसके लिए मुझे गर्व है। 


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