Kumbh mela 2019 : आइआइटी, आइआइएम में व्याख्यान देते हैं कई संन्यासी, कई भाषाओं के ज्ञाता
कुंभ मेला में ऐसे भी संत हैं जो आआइटी और आइआइएम में व्याख्यान देते हैं। कई भाषाओं में उनकी पकड़ है। ऐसे ही कई संत श्री पंचायती अखाड़ा निरंजनी में भी हैं।
विजय सक्सेना, कुंभनगर : अक्सर यह माना जाता है कि ज्यादातर साधु-संत पढ़े-लिखे कम होते। अगर पढ़े-लिखे होते भी हैं तो उन्हें हिंदी या संस्कृत का ही ज्ञान होता होगा। अंग्रेजी जानने वाले सतों की संख्या तो बेहद कम है लेकिन सच्चाई इससे इतर है। कुंभ मेले में ऐसे कई साधु-संत मौजूद हैं, जो आइआइटी और आइआइएम में व्याख्यान देते हैं। वह हिंदी, संस्कृत की तरह ही फर्राटेदार अंग्रेजी भी बोलते हैं। ऐसे ही महात्मा श्री पंचायती अखाड़ा निरंजनी में भी हैं।
डॉक्टर से लेकर प्रोफेसर तक हैं संन्यासी
श्री पंचायती अखाड़ा निरंजनी में डॉक्टर से लेकर प्रोफेसर तक शामिल हैं। सबसे ज्यादा संख्या आचार्यों की हैं। आचार्य की डिग्रीधारी यह संत-महात्मा सिर्फ अखाड़ों तक सीमित नहीं है। समय-समय पर बड़े शैक्षिक संस्थानों में उनके व्याख्यान भी होते हैं। आचार्य महामंडलेश्वर निरंजनी पीठाधीश्वर स्वामी बालकानंद गिरि संस्कृत से पीएचडी हैं। महामंडलेश्वर महेशानंद गिरि आयुर्वेदाचार्य हैं तो महामंडलेश्वर स्वामी ज्ञानानंद गिरि, महामंडलेश्वर हरिओम गिरि, महामंडलेश्वर हरिओम पुरी, महामंडलेश्वर प्रेमानंद गिरि वेदांताचार्य, ज्योतिषाचार्य, साहित्याचार हैं।
स्वामी ज्ञानानंद व प्रेमानंद आआइटी में दे चुके हैं व्याख्यान
महामंडलेश्वर स्वामी ज्ञानानंद एवं महामंडलेश्वर प्रेमानंद गिरि आइआइएम खडग़पुर एवं आइआइटी मुंबई एवं कानपुर में व्याख्यान दे चुके हैं। इसी तरह महामंडलेश्वर महेशानंद गिरि धर्मशाला में आयुर्वेद कॉलेज, उत्तराखंड में हिमालय कॉलेज एवं बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में आयुर्वेद पर व्याख्यान दे चुके हैं। उनका कहना है कि संत-महात्मा धर्म की रक्षा के साथ कई दूसरे काम भी करते हैं। वेद, ज्योतिष, आयुर्वेद का अध्ययन कराने के साथ ही धर्म परिवर्तन रोकने की भी शिक्षा देते हैं।
विद्यार्थी संत-महात्माओं के व्याख्यान से होते हैं काफी प्रभावित
महेशानंद गिरि कहते हैं कि विद्यार्थी संत-महात्माओं के व्याख्यान से काफी प्रभावित भी होते हैं, क्योंकि संतों के व्याख्यान विद्याॢथयों के मूल विषयों से अलग हटकर होते हैं। इसमें धर्म, अध्यात्म का भी सार होता है। उन्होंने बताया कि सन 1904 में स्थापित निरंजनी अखाड़ा प्रयागराज एवं हरिद्वार में विद्यालय भी संचालित कर रहा है। इनमें मैनेजमेंट से लेकर सभी व्यवस्था अखाड़े के संत ही संभालते हैं।