Move to Jagran APP

Kumbh mela 2019 : हिंदुस्तान को जानना है तो आकर देखें कुंभ : मालिनी अवस्थी

कुंभ मेला स्थित परमार्थ निकेतन में आयोजित संस्कृति विद्वत कुंभ में प प्रख्यात लोक गायिका पद्मश्री मालिनी अवस्‍थी भी शामिल हुईं। वह कुंभ मेला क्षेत्र में आकर अविभूत दिखीं।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Published: Wed, 13 Feb 2019 03:43 PM (IST)Updated: Wed, 13 Feb 2019 03:43 PM (IST)
Kumbh mela 2019 : हिंदुस्तान को जानना है तो आकर देखें कुंभ : मालिनी अवस्थी
Kumbh mela 2019 : हिंदुस्तान को जानना है तो आकर देखें कुंभ : मालिनी अवस्थी

विजय सक्सेना, कुंभनगर : दैनिक जागरण से बातचीत में मालिनी अवस्थी ने कहा कि हिंदुस्तान को जानना है तो कुंभ आकर देखिए, इस बार का कुंभ यह संदेश दे रहा है। यहां संस्कृतियों और विचारों का मिलन किस तरह हो रहा है, जिसे देखकर ही समझा जा सकता है। भारतीय संस्कृति, कला, साहित्य और सिनेमा को बढ़ावा देने के उद्देश्य से अरैल स्थित परमार्थ निकेतन में प्रख्यात लोकगायिका पद्मश्री मालिनी अवस्थी भी संस्कृति विद्वत कुंभ में शामिल हुईं।

loksabha election banner

कई शख्सियतें भी कुंभ पर विचार एवं चिंतन का हिस्सा बनेंगी

मालिनी अवस्थी का कहना है कि विद्वत कुंभ में विभिन्न संस्कृतियों और विचारधाराओं के विद्वान जुट रहे हैं। दरअसल, इस कुंभ में पंडित हरिप्रसाद चौरसिया कुंभ के अपने बचपन के अनुभव को साझा करेंगे तो फिल्म निर्देशक सुभाष घई, मधुर भंडारकर, डॉ. चंद्रप्रकाश द्विवेदी, अभिनेता विवेक अग्निहोत्री, पत्रकार रोहित सरदाना, शेफाली वैद्य, साक्षी तंवर, लुबना सलीम, सलीम आरिफ जैसी शख्सियतें भी कुंभ पर विचार एवं चिंतन का हिस्सा बनेंगे।

मनीषियों, विद्वानों का कुंभ के आयोजन के पीछे विराट उद्देश्य था

मालिनी अवस्थी ने कहा कि कुंभ का मतलब यह समझा जाता है कि निश्चित तिथियों पर संगम पर पहुंचकर डुबकी लगाना। हालांकि हमें लगता है कि मनीषियों, विद्वानों का कुंभ के आयोजन के पीछे विराट उद्देश्य था। सभी संस्कृतियों, विचारधाराओं के विद्वान, ङ्क्षचतक, मनीषी, कलाकार एकत्रित हों और भारतीय जीवन पद्धति, दर्शन पर चर्चा करें। विचारों का आदान-प्रदान हो। इसी को आधार मानकर संस्कृति विद्वत कुंभ का आयोजन किया गया है, जिसके कई सत्र होंगे। भारतीय कलाओं में कैसे भारतीयता को जीवित रखा जा सकता है, इस पर चर्चा होगी।

भारतीय फिल्म इंडस्ट्री कुंभ को कैसे देखती है, जानना जरूरी

उन्होंने कहा कि भारतीय फिल्म इंडस्ट्री आज के परिप्रेक्ष्य में कुंभ को कैसे देखती है, यह जानना बेहद जरूरी है, क्योंकि पहले फिल्मों में दो भाइयों के बिछड़ाव को दिखाया जाता था। अब कुंभ वैसा नहीं है, फिल्म इंडस्ट्री को यह समझना है। मीडिया में जो दिखाया जा रहा है, फिल्म इंडस्ट्री में उसका सकारात्मक प्रभाव क्या पड़ रहा है, यह जानना आवश्यक है। कहा कि कुंभ में जिस तरह साधु-संतों का और अखाड़ों का रहन-सहन होता है, उनकी परंपरा होती है, यह एकीकृत भारतीय जीवन दर्शन को दर्शाता है। कुंभ की महत्ता इसी से समझी जा सकती है कि ग्रामीण यहां निश्चित तिथि पर मीलों पैदल चलकर आते हैं और संगम में डुबकी लगाते हैं। यह आस्था बताती है कि हम भारतीय सनातम परंपरा का निर्वहन करें।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.