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माघ मेलाः कल्पवास को सब सुख त्यागकर भक्त आ रहे तीर्थराज

कल्पवासी ना गांव से आने वाले धार्मिक प्रवृत्ति के लोग हैं और न यहां से उनका कोई सीधा वास्ता है। यह कल्पवासी आए हैं सात समंदर पार कर आस्ट्रेलिया से।

By Ashish MishraEdited By: Published: Sat, 21 Jan 2017 10:51 AM (IST)Updated: Sat, 21 Jan 2017 11:53 AM (IST)
माघ मेलाः कल्पवास को सब सुख त्यागकर भक्त आ रहे तीर्थराज
माघ मेलाः कल्पवास को सब सुख त्यागकर भक्त आ रहे तीर्थराज

इलाहाबाद [शरद द्विवेदी]। बदन पर साधारण वस्त्र, नंगे पांव। कोई धार्मिक पुस्तकों का अध्ययन कर रहा है, कोई प्रवचन में गुरु के मुख से निकले गूढ़ ज्ञान को आत्मसात करने में प्रयत्नशील है जबकि कुछ मंत्रोच्चार के बीच यज्ञ कुंड में आहुतियां डालने में लीन हैं। इतने के बाद आप समझ ही गए होंगे कि बात कल्पवासियों की हो रही है। इसमें खास क्या है? माघ मेला क्षेत्र में तो ऐसे दृश्य आम हैं...। जी हां, सही समझा आपने, बात संगम क्षेत्र में चल रहे कल्पवास की ही हो रही है लेकिन इसमें खास बात यह है कि कल्पवासी ना गांव से आने वाले धार्मिक प्रवृत्ति के लोग हैं और न यहां से उनका कोई सीधा वास्ता है। यह कल्पवासी आए हैं सात समंदर पार कर आस्ट्रेलिया से।

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संगम तट पर स्थित गंगा सेना के शिविर में पिछले 12 दिनों से तीन पीढिय़ां एकसाथ जप-तप में लीन हैं जिसमें अप्रवासी भारतीय देवेंद्र शर्मा भी शामिल हैं, देवेंद्र सिडनी में मल्टीनेशनल कंपनियों के एकाउंट सलाहकार हैं। वहां 342 कंपनियां इनकी सेवाएं लेती हैं। वे माघ मेला शुरू होने से पहले प्रयाग आ गए। साथ में मां राजकुमारी, पत्नी शर्मिला, बेटा भरत और बेटी तुलसीरानी भी हैं, सभी साथ मिलकर जप-तप में लीन हैं। इनका मकसद जप-तप करके मोक्ष प्राप्ति नहीं है, बल्कि वह स्वयं को सनातन धर्म व संस्कृति से जोडऩा चाहते हैं। अपने गुरु आनंद गिरि के सानिध्य में वैदिक रीति का रहस्य, उसकी मान्यताएं, उसके प्रभाव से खुद को जोडऩे के लिए वह जप-तप में लीन हैं। प्रयाग में इनकी दिनचर्या पूरी तरह बदल गई है, सुख-सुविधाओं से परे तपस्वी का जीवन व्यतीत कर रहे हैं, जिसमें उन्हें आनंद आ रहा है।

सुबह जगना, दिनभर धर्मकर्म

देवेंद्र का परिवार यहां तपस्वी का जीवन व्यतीत कर रहा है। साधारण वस्त्र धारण करने के साथ सात्विक भोजन, मनोरंजन से दूर रहकर नंगे पांव रहते हैं। सुबह चार बजे जग जाते हैं। गंगा स्नान के बाद यथा पूजा-पाठ करते हैं। मंत्रोच्चार के बीच यज्ञ कुंड में आहुतियां डालते हैं, दिन में मेला भ्रमण व गुरु के सानिध्य में रहकर धार्मिक कृत्यों पर चर्चा करने में समय बिताते हैं।

जी रहे खुशहाल जीवन
देवेंद्र के बेटे भरत पहली बार प्रयाग आए हैं। कहते हैं यहां का तपस्वी जीवन उन्हें काफी पसंद आया। शुरुआत में कठिनाई हुई, लेकिन अब यहां से जाने का मन नहीं होता। सुख-सुविधाओं से परे रहकर हम खुशहाल जीवन जी रहे हैं।

बस्ती जिले के मूल निवासी
देवेंद्र के पूर्वज उत्तर प्रदेश के बस्ती जिले के निवासी हैं। इनके बाबा गया शर्मा 1875 में फिजी के टाबुआ शहर जाकर बस गए। वहां गन्ने की खेती व व्यवसाय शुरू किया। वहीं देवेंद्र के पिता प्रद्युम्न का जन्म हुआ। देवेंद्र बताते हैं कि वह सात भाई-बहन हैं, जिसमें तीन भाई शिक्षक, तीन इंजीनियर हैं। वह 1991 में आस्ट्रेलिया के सिडनी शहर में आकर बस गए। वहां बड़ी-बड़ी कंपनियों को एकाउंट की सलाह देने लगे, दायरा धीरे-धीरे बढ़ता गया।

बाबा ने संस्कृति से जोड़े रखा
देवेंद्र कहते हैं कि बाबा ने हमें अपनी संस्कृति से जोड़े रखा। विदेश में रहने के बावजूद उन्होंने काफी हद तक भारत की संस्कृति अपनाई जिसकी झलक हमारे नाम से मिल जाती है। हमारे नाम भारतीय लोगों के अनुरूप हैं। इससे हम स्वयं को अपनी जड़ से जुड़ा पाते हैं। हां हमारा रहन-सहन व बोल-चाल थोड़ा अलग है लेकिन दिल में भारत और सनातन संस्कृति ही बसी है।


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