Magh Mela 2021: कायाकल्प का वास कल्पवास, गृहस्थ समस्त मोह-माया से मुक्त हो करेंगे भजन-पूजन, जानें क्या है नियम...
उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में संगम तीरे माघ महीने में कल्पवास ज्यादा पुण्यकारी माना जाता है। इसी कारण 70 प्रतिशत से अधिक श्रद्धालु पौष पूर्णिमा से माघी पूर्णिमा तक कल्पवास करते हैं। गृहस्थ समस्त मोह-माया से मुक्त होकर भजन-पूजन करेंगे।
प्रयागराज, जेएनएन। जन्म जन्मांतर के पापों से मुक्ति। पूर्वजों की तृप्ति व मोक्ष की प्राप्ति। इसी संकल्पना साकार करने के लिए उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में संगम तीरे माहभर का अखंड तप कल्पवास मकर संक्रांति 14 जनवरी से आरंभ हो जाएगा। भजन, पूजन व अनुष्ठान का सिलसिला 11 मार्च महाशिवरात्रि तक चलेगा। संगत तट पर कल्पवास का दो कालखंड तय हैं। मकर संक्रांति से माघ शुक्लपक्ष की संक्रांति तथा पौष पूर्णिमा से माघी पूर्णिमा तक कल्पवास करने की परंपरा है।
संगम तीरे माघ महीने में कल्पवास ज्यादा पुण्यकारी माना जाता है। इसी कारण 70 प्रतिशत से अधिक श्रद्धालु पौष पूर्णिमा से माघी पूर्णिमा तक कल्पवास करते हैं। गृहस्थ समस्त मोह-माया से मुक्त होकर भजन-पूजन करेंगे। दिन में तीन बार गंगा स्नान, एक समय भोजन व दिनभर धार्मिक पुस्तकों का अध्ययन, प्रवचन सुनने में समय व्यतीत करेंगे। शंकराचार्य, आचार्यनगर, दंडी स्वामीनगर, खाकचौक के महात्माओं के बीच कल्पवासियों का शिविर लगता है।
दिसंबर अंत से मेला क्षेत्र में लगेंगे शिविर : संगम तीरे तंबुओं की नगरी बसाने के लिए प्रशासनिक कवायद तेज है। जमीन का समतलीकरण करने के साथ बिजली का पोल गाड़ने, पानी की पाइप लाइन व चकर्डप्लेट बिछाने का काम तेज है। पांटून पुल का निर्माण भी शुरू हो गया है। 15 दिसंबर के बाद संतों व संस्थाओं को शिविर लगाने के लिए जमीन वितरित की जाएगी, जबकि दिसंबर अंत से मेला क्षेत्र में शिविर लगने लगेंगे।
चार सेक्टर में बसेगा मेला, रहेगी बंदिश : कोरोना संक्रमण के कारण प्रशासन ने अबकी मेला को ज्यादा विस्तार नहीं दिया है। मेला क्षेत्र को चार सेक्टर में बसाया जाएगा। हर सेक्टर में संत व कल्पवासी रहेंगे। क्षेत्र में अबकी तमाम बंदिश भी रहेगी। न प्रवचन का पंडाल सजेगा, न ही रामलीला व रासलीला की अनुमति होगी। मेला क्षेत्र के अंदर दुकानों की संख्या भी कम रहेगी। बाहरी लोगों का प्रवेश भी रोका जाएगा। लेकिन, मेला में अबकी कल्पवास का वास्तविक स्वरूप नजर आएगा।
कल्पवास के होते हैं खास नियम : ज्योतिर्विद आचार्य देवेंद्र प्रसाद त्रिपाठी बताते हैं कि पद्मपुराण, अग्नि पुराण व स्कंद पुराण में कल्पवास की महिमा का बखान है। उसमें बताया गया है कि प्रयागराज में माघ मास में देवता स्वर्गलोक से प्रयागराज आते हैं। यही कारण है कि उसमें किए गए अनुष्ठान का फल जल्द प्राप्त होता है। साधक को जीते-जी मोक्ष की प्राप्ति होती है, साथ ही उनके कुल भी तर जाते हैं।
पुराणों के अनुसार कल्पवास के नियम : पुराणों में कल्पवास के 21 नियम बताए गए हैं। इसमें 1-झूठ न बोलना, 2-हर परिस्थिति में सत्य बोला, 3-घर-गृहस्थी की चिंता से मुक्त होना, 4-गंगा में सुबह, दोपहर व शाम को स्नान करना, 5-शिविर के बाहर तुलसी का बिरवा रोपना व जौ बोना, 6-तुलसी व जौ को प्रतिदिन जल अर्पित करना, 7-ब्रह्मचर्य का पालन करना, 8-खुद या पत्नी का बनाया सात्विक भोजन करना, 9-सत्संग में भाग लेना, 10-इंद्रियों में संयम, 11-पितरों का पिंडदान करना, 12-हिंसा से दूर रहना, 13-विलासिता से दूर रहना, 14-परनिंदा न करना, 15-जमीन पर सोना, 16-भोर में जगना, 17-किसी भी परिस्थिति में मेला क्षेत्र न छोडऩा, 18-धार्मिक ग्रंथों व पुस्तकों का पाठ करना, 19-आपस में धार्मिक चर्चा करना, 20-प्रतिदिन संतों को भोजन कराकर दक्षिणा देना, 21-गृहस्थ आश्रम में लौटने के बाद भी कल्पवास के नियम का पालन करना होता है।
12 साल में पूर्ण होता है कल्पवास : कल्पवास करने वाले लोगों को लगातार 12 साल संगम तीरे आना पड़ता है। 12 साल बाद कल्पवास पूर्ण माना जाता है। अगर कोई बीच में किसी वर्ष नहीं आता तब उसे नए सिरे से कल्पवास का संकल्प लेकर उसे पूर्ण करना पड़ता है।
घर-परिवार से नहीं होता वास्ता : कल्पवासियों का घर-परिवार से कोई वास्ता नहीं होता। सुख अथवा दु:ख की स्थिति होने पर भी कल्पवासी माघ मेला क्षेत्र छोड़कर नहीं जाते। मेला क्षेत्र छोडऩे पर उनका कल्पवास खंडित हो जाता है।
यह है खास
- माघ मेला 650 हेक्टेयर जमीन पर चार सेक्टर में बसेगा।
- गंगा में पांच पांटून पुल बनेंगे।
- चकर्डप्लेट से बनी 16 सड़कें पूरे मेला क्षेत्र को जोड़ेंगी।
- पांच गाटा मार्ग बनाए जाएंगे।
- हर बार 3500 संस्थाओं को जमीन आवंटित होती थी। लेकिन, अबकी करीब 1500 संस्थाओं को शिविर लगाने के लिए जमीन मिलेगी।
- मेला क्षेत्र के अंदर दुकानें नहीं लगेंगी।
माघ मास के प्रमुख स्नान पर्व
- 14 जनवरी : मकर संक्रांति
- 28 जनवरी : पौष पूर्णिमा
- 11 फरवरी : मौनी अमावस्या
- 16 फरवरी : वसंत पंचमी
- 19 फरवरी : अचला सप्तमी
- 27 फरवरी : माघी पूर्णिमा
- 11 मार्च : महाशिवरात्रि