प्रयागराज का 100 वर्ष पुराना मुहल्ला लोकनाथ, तीन भारत रत्न देने वाले क्षेत्र की खासियत क्या है
प्रयागराज का लोकनाथ मोहल्ला पं. बालकृष्ण भट्ट पं. मदन मोहन महामना मालवीय राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन बांसुरी वादक पंडित हरिप्रसाद चौरसिया जैसी महान विभूतियों का गढ़ रहा है। लोकनाथ में 90 के दशक से पहले खस्ता दमालू कचौड़ी जलेबी लस्सी भी काफी मशहूर थी।
प्रयागराज, जागरण संवाददाता। प्रयागराज में पुराने शहर की घनी आबादी के बीचोबीच बसा है लोकनाथ मुहल्ला। यह अब बाजार में भले ही फंस गया हो लेकिन इसकी खासियत शहर में सबसे अलग है। खाने, खिलाने के शौकीनों से लेकर नामी-गिरामी लोगों की जन्मस्थली, कर्मस्थली और देश को शिक्षा की दिशा देने का गढ़ भी रहा है। इससे भी बड़ी बात एक और बात और जान लें। लोकनाथ और इसके आसपास करीब 300 मीटर दायरे वाले इलाकों ने देश को तीन भारत रत्न दिए हैं। पं. जवाहरलाल नेहरू, राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन और पं. मदन मोहन महामना मालवीय को मिल चुका है देश का यह सर्वोच्च नागरिक सम्मान।
बाबा लोकनाथ के नाम पर मुहल्ला पड़ा : लोकनाथ मुहल्ले का नाम हरि नमकीन वाली गली में स्थित प्राचीन शिवालय बाबा लोकनाथ के नाम पर पुरखों ने रखा था। भारती भवन पुस्तकालय के अध्यक्ष स्वतंत्र पांडेय बताते हैं कि लोकनाथ का अनुमानित तौर पर करीब दो सौ साल पुराना इतिहास है। हरि नमकीन वाली गली में शिवालय है, इसकी पूजा स्थानीय लोग करते थे। पहले लोकनाथ की गली में सभी दुकानें मिठाइयों की थीं, इनमें अधिकतर का नाम लोकनाथ मिष्ठान भंडार था। जनश्रुति है कि रात होते-हाेते एक साधुबाबा आते थे जो सभी मिठाइयां खरीद लेते थे। इसी से धीरे-धीरे मुहल्ले का नाम लोकनाथ प्रचलित होता गया।
इन महान विभूतियों का रहा है गढ़ : पं. बालकृष्ण भट्ट, पं. मदन मोहन महामना मालवीय, राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन, बांसुरी वादक पंडित हरिप्रसाद चौरसिया, लेखक केशवदेव मालवीय, अधिवक्ता पं. विश्वनाथ पांडेय।
स्वाद का राजा भी है लोकनाथ : लोकनाथ में 90 के दशक से पहले खस्ता दमालू, कचौड़ी, जलेबी लस्सी भी काफी मशहूर थी। राजाराम की लस्सी, राममूर्ति की कचौड़ी, रसकुंज की फ्रूट आइसक्रीम, मातादीन गजक और पेठा वाले, इसी लोकनाथ का हिस्सा है।
भारती भवन पुस्तकालय इसी मुहल्ले में स्थित है : देश का मशहूर भारती भवन पुस्तकालय इसी लोकनाथ इलाके का हिस्सा है। लाला ब्रजमोहनलाल भल्ला से यह परिसर पुस्तकालय के लिए दान मिला था और 15 दिसंबर 1889 को इसकी स्थापना हुई। पं. बालकृष्ण भट्ट, पं. मदन मोहन मालवीय, पं. श्रीधर पाठक, लाला लालबिहारी लाल, पं. जयगोविंद मालवीय, लाला दुर्गा प्रसाद, पंडित देवकी नंदन तिवारी, पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का इस पुस्तकालय से सीधा जुड़ाव रहा है।