Allahabad High Court: गौतमबुद्ध नगर के भूमि घोटाले में आरोपियों को पांच शर्तों के साथ हाई कोर्ट से मिली अंतरिम जमानत
गौतमबुद्ध नगर के चिटहेरा गांव में अरबों रुपये के भूमि घोटाले मामले में उत्तराखंड में तैनात आइएएस-आइपीएस अफसरों के माता-पिता सास-ससुर पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के समधी-समधन पर एफआइआर दर्ज था। हाई कोर्ट ने इन आरोपियों को मामले में फैसला आने तक देश छोड़कर जाने पर रोक लगा दी है।
प्रयागराज, जागरण संवाददाता। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने गौतमबुद्ध नगर के चिटहेरा गांव में अरबों रुपये के भूमि घोटाले में दो आरोपियों पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के समधी अनिल राम और समधन साधना राम, उत्तराखंड कैडर के आइएएस मीनाक्षी सुंदरम के पिता एम भास्करन, उत्तर प्रदेश के सेवानिवृत्त नौकरशाह केएम संत और उत्तराखंड कैडर में आइपीएस बृजेश स्वरूप की मां सरस्वती देवी की सशर्त अंतरिम जमानत मंजूर कर ली है। इस मामले में जिला प्रशासन की ओर से नौ लोगों के खिलाफ एफआइआर दर्ज कराई गई थी।
उत्तराखंड के पूर्व सीएम विजय बहुगुणा के समधी-समधन पर भी दर्ज था एफआइआर : उत्तराखंड में तैनात आइएएस-आइपीएस अफसरों के माता-पिता, सास-ससुर और पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा के समधी-समधन पर एफआइआर दर्ज किया गया था। कोर्ट ने इन आरोपियों को मामले में फैसला आने तक देश छोड़कर जाने पर रोक लगा दी है।
गौतमबुद्ध नगर के चिटहेरा गांव का मामला : साधना राम और अनिल राम ने कर अंतरिम जमानत की मांग करते हुए कहा कि उनका इस भूमि घोटाले से कोई लेना-देना नहीं है। चिटहेरा गांव में उनकी कंपनी ने जमीन खरीदी थी। इस जमीन पर पट्टों को लेकर पहले अपर जिलाधिकारी और फिर अपर आयुक्त के न्यायालय से फैसले आए थे। कहा गया कि उनका भूमाफिया यशपाल तोमर से कोई संबंध नहीं है। दोनों बुजुर्ग हैं और उम्र 70 वर्ष से ज्यादा है। दोनों को कई बीमारियां भी हैं। लिहाजा मामले में जमानत दी जाए। दोनों ने गौतमबुद्ध नगर जिला प्रशासन पर गलत ढंग से मामले में फंसाने का आरोप भी लगाया है। कोर्ट ने अनिल राम और साधना राम को अंतरिम जमानत दे दी है, लेकिन उन पर पांच बड़ी शर्तें लगाई हैं।
इन पांच शर्तों के तहत सभी को जमानत मिली
1. आरोपी विचारण के लंबित रहने के दौरान भारत नहीं छोड़ेंगे। अगर विदेश जाना जरूरी होगा तो संबंधित ट्रायल कोर्ट से पूर्व अनुमति लेनी पड़ेगी।
2. आरोपी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से किसी भी परिचित व्यक्ति को प्रलोभन, धमकी नहीं देंगे, जिससे इस मामले के तथ्यों का खुलासा करने से रोका जा सके। न्यायालय या किसी पुलिस अधिकारी को प्रलोभन नहीं देंगे।
3. आवेदक इस आशय का एक वचन पत्र दाखिल करेंगे कि वे साक्ष्य के लिए नियत तारीखों पर कोई स्थगन नहीं मांगेगे और गवाही के लिए कोर्ट में मौजूद रहेंगे। कोर्ट में हाजिर नहीं होने या मामले को लटकाने की कोशिश करेंगे तो निचली अदालत इसे जमानत का दुरुपयोग मानकर जमानत समाप्त करने के लिए स्वतंत्र होगी। निचली अदालत कानून के अनुसार आदेश पारित करेंगी।
4. मामले में आरोपी जमानत की स्वतंत्रता का दुरुपयोग करते हैं तो ट्रायल कोर्ट संबंधित कानून के अनुसार उचित कार्रवाई कर सकती है। सुशीला अग्रवाल बनाम राज्य के मामले में सर्वोच्च न्यायालय का फैसला लागू होगा।
5. आवेदक परीक्षण से समय अदालत में व्यक्तिगत रूप से उपस्थित रहेंगे। (i) मुकदमे की सुनवाई शुरू करने, (ii) आरोपों के निर्धारण के लिए नियत तारीखों पर, (iii) सीआरपीसी की धारा 313 के तहत बयान दर्ज करवाने के लिए ट्रायल कोर्ट की ओर से निर्धारित तारीखों पर हाजिर रहेंगे। इस शर्त का डिफ़ॉल्ट जानबूझकर या पर्याप्त कारण के बिना करते हैं तो ट्रायल कोर्ट के लिए सभी विकल्प खुले हैं। इस तरह की चूक को जमानत की स्वतंत्रता के दुरुपयोग के रूप में मानें और उसके खिलाफ कार्रवाई करें।