Move to Jagran APP

लाला रामचरनदास ने अपने बेटे की याद में बनवाया था प्रयागराज का घंटाघर

प्रयागराज शहर के चौक में घंटाघर है। यहां के पुराने लोग घंटाघर को ही चौक का पर्याय मनाते हैं। घंटाघर के आसपास बड़ा बाजार है। इलाहाबाद आर्कियोलॉजिकल सोसाइटी के लिए हिन्दूस्तानी एकेडमी से प्रकाशित प्रयाग प्रदीप में डॉ.सालिग्राम श्रीवास्तव ने घंटाघर का उल्लेख किया।

By Rajneesh MishraEdited By: Published: Thu, 07 Jan 2021 03:03 PM (IST)Updated: Thu, 07 Jan 2021 03:03 PM (IST)
लाला रामचरनदास ने अपने बेटे की याद में बनवाया था प्रयागराज का घंटाघर
रयागराज शहर के चौक में घंटाघर है। यहां के पुराने लोग घंटाघर को ही चौक का पर्याय मनाते हैं।

प्रयागराज, जेएनएन। देश के अधिकांश शहरों के चौक इलाके में घंटाघर का अस्तित्व है। शहर के प्रमुख चौराहे की मीनार पर ऐसे घंटाघर बने हुए हैं। इनमें एक बड़ी घड़ी है जो हर एक घंटे बाद बजती है। शहर के कारोबारी क्षेत्र में ही घंटाघर स्थापित हैं। हालांकि समय के साथ तमाम शहरों में घंटाघर शोपीस बन कर रह गए हैं। घड़ी खराब हो गई और इन्हें बनाने का प्रयास नहीं हो रहा है। प्रयागराज शहर के चौक में घंटाघर है। यहां के पुराने लोग घंटाघर को ही चौक का पर्याय मनाते हैं। घंटाघर के आसपास बड़ा बाजार है। इलाहाबाद आर्कियोलॉजिकल सोसाइटी के लिए हिन्दूस्तानी एकेडमी से प्रकाशित प्रयाग प्रदीप में डॉ.सालिग्राम श्रीवास्तव ने घंटाघर का उल्लेख किया। चौक व जानसेनगंज के बीच स्थापित घंटाघर सन 1913 में प्रयागराज के रायबहादुर लाला रामचरन दास तथा उनके भतीजे लाला विशेशर दास ने अपने-अपने पुत्र लाला मन्नीलाल की याद में बनवाया था। वैसे बहुत से शहरों घंटाघर अंग्रेजों ने बनवाए थे।

prime article banner


यमुना के किनारे लगी प्रदर्शनी में घंटाघर को देखकर आया था विचार
हिन्दुस्तान एकेडमी के पूर्व सचिव रविनंदन सिंह बताते हैं कि अंग्रेज विभिन्न शहरों के रईस एवं प्रमुख लोगों का रायबहादुर की उपाधि से नवाजते थे। उस दौरान प्रयागराज के रईस लाला रामचरन दास को रायबहादुर की उपाधि अंग्रेजों ने दी थी। लाला रामचरन दास ने दिसंबर 1910 में यमुना किनारे किले के पश्चिम में लगी एक प्रदर्शनी में घंटाघर की आकृति को देखा था। इसी घंटाघर की तरह उन्होंने चौक एवं जांस्टनगंज के बीच में इसे एक ऊंची मीनार में स्थापित किया। तब इस घंटाघर को देखने वाले दूर-दूर से आते थे। समय के साथ विभिन्न शहरों में ऐसे घंटाघर लोगों ने बनवाए। रविनंदन सिंह बताते हैं कि 1910 में लगी यह प्रदर्शनी दो सौ बीघा जमीन पर तीन माह तक लगी रही। इस राष्ट्रीय स्तर की प्रदर्शनी को देखने के लिए देश विदेश के आठ लाख से ज्यादा लोग आए थे। इनमें जर्मनी के युवराज समेत भारत के की सभी रियासतों के राजे-महाराजे शामिल थे। 1931 के सरकारी गजेटियर में उल्लेख है कि  कुंभ मेले के बाद ऐसी भीड़ इसी प्रदर्शनी मेें देखी में गई थी। प्रदर्शनी में 21.5 लाख रुपये खर्च हुए थे।


रायबहादुर के नाम पर बहादुर गंज इलाका
इतिहासकार प्रो.अनिल कुमार दुबे बताते हैं कि रायबहादुर के नाम पर बहादुरगंज मोहल्ला बसा था। प्रांत के उपराज्यपाल सर जार्ज हिवेट के नाम पर हिवेट रोड बनी। हालांकि अब हिवेट रोड का नाम विवेकानंद मार्ग है। उस समय के ख्यातिप्राप्त अंग्रेजी अखबार लीडर के नाम पर लीडर रोड मोहल्ला बसा। तब इलाहाबाद हाईकोर्ट के प्रसिद्ध वकील और कुछ समय तक डिप्टी कलेक्टर रहे शहर के रईस बाबू शिवचरण लाल के नाम  पर एक सड़क एक सड़क राधा थिएटर मानसरोवर के सामने बनाई गई थी। इसे आज भी इसी नाम से जाना जाता है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.