1942 की क्रांति में आज ही के दिन प्रयागराज के दो लाल शहीद हुए थे, कौन थे अंग्रेजों से लोहा लेने वाले
इलाहाबाद विश्वविद्यालय में बीएससी के छात्र लाल पद्मधर और दूसरे अहियापुर निवासी 14 वर्षीय रमेश दत्त मालवीय के बलिदान ने क्रांति की ज्वाला को और धधका दिया था। लाल पद्मधर को कचहरी में और रमेश दत्त मालवीय को कोतवाली के पास गोली मारी गई थी।
प्रयागराज, [अमलेंदु त्रिपाठी]। संस्मरण देश की आजादी के लिए 1942 के क्रांति की है। नौ अगस्त को आजादी का बिगुल बजा था। पूरा देश अंग्रेजी हुकूमत के विरोध में सामने था। अंग्रेजों द्वारा आंदोलनकारियों के दमन की भी नीति दिखी। तीन दिन बाद यानी 12 अगस्त 1942 को अंग्रेजों से लड़ते हुए प्रयागराज (पुराना इलाहाबाद) के दो लाल बलिदान हो गए। इनमें से एक थे इलाहाबाद विश्वविद्यालय में बीएससी के छात्र लाल पद्मधर और दूसरे रमेश दत्त मालवीय।
लाल पद्मधर व रमेश दत्त मालवीय के बलिदान से क्रांति की ज्वाला भड़क उठी : इलाहाबाद विश्वविद्यालय में बीएससी के छात्र लाल पद्मधर और दूसरे अहियापुर निवासी 14 वर्षीय रमेश दत्त मालवीय के बलिदान ने क्रांति की ज्वाला को और धधका दिया था। लाल पद्मधर को कचहरी में और रमेश दत्त मालवीय को कोतवाली के पास गोली मारी गई थी। यही वजह थी कि इलाहाबाद विश्वविद्यालय के छात्रनेताओं ने आंदोलन में बढ़ चढ़कर लिया था।
विश्वविद्यालय में शहीद लाल पद्मधर की प्रतिमा यादों को कर रही जीवंत : इलाहाबाद विश्वविद्यालय परिसर में लगी शहीद लाल पद्मधर की प्रतिमा आज भी उन यादों को जीवंत कर रही है। इलाहाबाद विश्वविद्यालय छात्रसंघ अध्यक्ष रहे श्याम कृष्ण पांडेय ने अपनी पुस्तक 'भारतीय छात्र आंदोलन का इतिहास' में लिखा है कि उस दिन यूनियन भवन पर सभा करने के बाद विश्वविद्यालय के छात्रों का जुलूस दिन में 11 बजे कचहरी के लिए चला। उसका नेतृत्व यूनियन के अध्यक्ष कमलेश मल्ल कर रहे थे। इस जुलूस में छात्र नेता यदुवीर सिंह, हेमवती नंदन बहुगुणा, राजमंगल पांडेय, यशोदा नंदन, प्रकाश मेहरोत्रा, मानस बिहारी मुखर्जी आदि शामिल थे। अग्रिम पंक्ति में विश्वविद्यालय की छात्राएं चल रही थीं।
जुलूस में छात्राएं आगे थीं...लग रहे थे 'इंकलाब जिंदाबाद' के नारे : श्याम कृष्ण पांडेय की पुस्तक में प्रसंग है। एक अन्य जुलूस कर्नलगंज और इंडियन प्रेस के रास्ते से कचहरी की ओर बढ़ रहा था। इसमें कमला बहुगुणा, तेजी बच्चन, चांदतारा, चिंता मालवीय, कांता कोचर, कांति सरगा, कुमुद मालवीय, दया मालवीय आदि भी शामिल थीं। कचहरी में अंग्रेज कलक्टर डिक्सन, पुलिस कप्तान और तमाम अधिकारी मौजूद थे। सशस्त्र पुलिस का घेरा बना था। जुलूस में शामिल छात्राएं तिरंगा लेकर खड़ी थीं। उनके पीछे हजारों छात्र 'इंकलाब जिंदाबाद' के नारे लगा रहे थे।
डिक्सन को लाल पद्मधर ने ललकारा...तो एसपी आगा ने पिस्तौल की दो गोली सीने में उतार दी : डिक्सन ने सब को हटने का निर्देश दिया पर कोई भी पीछे नहीं हटा। पुलिस की बंदूक के निशाने पर पहली पंक्ति में मौजूद छात्राएं थीं। तभी लाल पद्मधर सिंह भीड़ से निकल कर आगे आए और सीना खोलकर चिल्लाए 'लड़कियों को क्यों निशाना बनाते हो? मुझ पर गोली चलाओ...। वह तिरंगा लेकर अकेले ही आगे बढ़े तभी एसपी आगा ने अपनी पिस्तौल निकाली और लाल पद्मधर की छाती पर दो गोलियां दाग दी। छात्र नेता हेमवती नंदन बहुगुणा, कमलेश मल्ल और यदुवीर सिंह ने सभी को लेट जाने को कहा। गोली चलती रही, छात्र और नागरिक घायल होते गए। भीड़ को रौंदने के लिए घुड़सवार पुलिस का भी प्रयोग हुआ। इस दौरान छात्राओं ने बहुत बहादुरी दिखाई। उन्होंने झंडे को झुकने नहीं दिया।
रमेश दत्त का खून खौल उठा...सार्जेंट की आंख फोड़ दी फिर वीरगति को प्राप्त हुए : रमेश दत्त मालवीय ने लोकनाथ मोहल्ले में रहने वाले रमेश दत्त मालवीय उस समय सिर्फ 14 वर्ष के थे। स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल होकर वह भारत माता की जय घोष करते हुए बढ़ रहे थे तभी कोतवाली के पास अंग्रेजी हुकूमत की फौज ने आंदोलनकारियों के जुलूस को रोक लिया। कहासुनी से बात आगे बढ़ गई। बलूच रेजीमेंट ने लाठीचार्ज कर दिया। बावजूद इसके स्वतंत्रता के दीवाने पीछे नहीं हटे। लोगों को जब लहूलुहाल होते देखा तो रमेश दत्त मालवीय का खून खौल उठा। वह पत्थर लेकर आगे बढ़े। सामने खड़े बलूच रेजीमेंट के सार्जेंट को दे मारा। इससे उसकी आंख फूट गई। अंग्रेजी सैनिकों ने गोलियां चलानी शुरू कर दी। एक गोली रमेश दत्त मालवीय की आंख के नीचे लगी। वह वहीं वीरगति को प्राप्त हो गए।