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अचला सप्तमी पर शहर से संगम तक उमड़ी आस्था Prayagraj News

कल्पवासियों और साधु संन्यासियों के अलावा शहरी व पड़ोसी जिलों से भी आए उन लोगों ने संगम स्नान किया जो अचला सप्तमी हर साल श्रद्धाभाव से मनाते हैं।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Published: Sat, 01 Feb 2020 07:11 PM (IST)Updated: Sat, 01 Feb 2020 07:45 PM (IST)
अचला सप्तमी पर शहर से संगम तक उमड़ी आस्था Prayagraj News
अचला सप्तमी पर शहर से संगम तक उमड़ी आस्था Prayagraj News

प्रयागराज,जेएनएन। अचला सप्तमी पर शनिवार को शहर से संगम तक कथा-पूजन, दान पुण्य और स्नान का दौर चला। इसे संतान सप्तमी भी कहा जाता है। इस दिन सूर्य उपासना का विशेष महत्व होता है, इसलिए माघ मेला क्षेत्र में कल्पवासियों ने भगवान सत्यनारायण की कथा भी सुनी। संगम में स्नान के लिए शनिवार को ब्रह्ममुहूर्त से ही स्नानार्थियों का हुजूम जुटा तो दोपहर बाद तक लोगों की संख्या कम नहीं हुई। इस अवसर पर गुरुओं को सामथ्र्य के अनुसार दान व दक्षिणा देकर आशीर्वाद लिया।

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ब्रह्ममुहूर्त से शुरू हुआ स्‍नान

माघ मेला क्षेत्र में संगम जाने वाले मार्ग और पांटून पुलों पर सामान्य दिनों की अपेक्षा शनिवार को कुछ ज्यादा ही श्रद्धालु आते-जाते रहे। त्रिवेणी बांध पर भी नजारा आम दिनों से कुछ अलग रहा। श्रद्धालुओं की भीड़ अधिक देख पुलिस ने बैरिकेडिंग लगाकर 'क्राउड कंट्रोलÓ किया। दोपहर बाद भी श्रद्धालुओं के आने का सिलसिला जारी रहा। लाखों की संख्‍या में श्रद्धालुओं ने संगम में डुबकी लगाई।

शहरी व पड़ोसी जिलों से भी आए श्रद्धालु

कल्पवासियों और साधु संन्यासियों के अलावा शहरी व पड़ोसी जिलों से भी आए उन लोगों ने संगम स्नान किया जो अचला सप्तमी हर साल श्रद्धाभाव से मनाते हैं। स्नान के बाद लोगों ने सूर्य को अघ्र्य देकर संतान की सुख और समृद्धि की कामना की। ऐसा माना जाता है कि इस स्‍नान पर्व पर स्‍थानीय और आसपास के जिलों से श्रद्धालु ज्‍यादा संख्‍या में स्‍नान के लिए आते हैं। क्‍योंकि इस दिन दूरदराज के श्रद्धालु स्‍नान के लिए कम आते हैं।

क्‍यों मनाया जाता है अचला सप्‍तमी

हिंदू धर्म में मान्यता है कि द्रौपदी के चीर हरण के समय भगवान श्रीकृष्ण ने उनकी चीर बढाकर लाज बचाई थी। चीर हरण के समय द्रौपदी की रक्षा के प्रसंग से जोड़कर देखा जाता है । इसलिए लोग इस दिन अपनी सामर्थ्‍य के  के अनुसार वस्त्र आदि दान करते हैं।


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