Move to Jagran APP

कुंभ में कहीं अधूरी न रह जाए श्रद्धालुओं को अक्षयवट दर्शन की आस

किले में होने की वजह से अक्षयवट का दर्शन-पूजन आम श्रद्धालु नहीं कर पाते। कुंभ में आने वाले करोड़ों श्रद्धालु अक्षयवट का एक झलक पाने को लालायित रहेंगे।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Published: Sat, 10 Nov 2018 08:04 PM (IST)Updated: Sat, 10 Nov 2018 08:04 PM (IST)
कुंभ में कहीं अधूरी न रह जाए श्रद्धालुओं को अक्षयवट दर्शन की आस
कुंभ में कहीं अधूरी न रह जाए श्रद्धालुओं को अक्षयवट दर्शन की आस

प्रयागराज : कुंभ में अगले वर्ष देश-विदेश के करोड़ों श्रद्धालु पुण्य की आस में प्रयागराज आएंगे। मोक्ष की आस में गंगा-यमुना व अदृश्य सरस्वती के संगम में डुबकी लगेगी। वैसे तो कुंभ मेला में स्नान, दान व पूजन का सिलसिला पहलें से ही चला आ रहा है। हालांकि श्रद्धालुओं की एक आस हमेशा अधूरी रही है। वह है अक्षयवट के दर्शन की। अक्षयवट का प्राचीन वृक्ष यमुना तट पर स्थित अकबर के किले में कैद है। मुगल व अंग्रेजों के शासन में अक्षयवट का दर्शन दुर्लभ था। देश को आजादी मिली, लेकिन उसके बाद भी वहां तक कोई पहुंच नहीं पाता। सेना की देखरेख में होने के चलते चुनिंदा श्रद्धालु ही अक्षयवट का दर्शन कर पाते हैं। ऐसे में श्रद्धालुओं की हमेशा मांग रही है कि अक्षयवट को दर्शन के लिए खोला जाए।

loksabha election banner

अकबर ने बंद कराया अक्षयवट के दर्शन-पूजन का सिलसिला :

इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय में मध्यकालीन एवं आधुनिक इतिहास विभागाध्यक्ष प्रो. योगेश्वर तिवारी बताते हैं कि अकबर ने यमुना किनारे किला बनवाने के लिए 1574 में नींव रखी थी। किला बनने में 42 साल लग गए। नीव रखने के बाद से अक्षयवट के दर्शन-पूजन का सिलसिला बंद कर दिया गया। वहां लोगों के आवागमन को रोककर किला का निर्माण कराया गया।

अंग्रेजी हुकूमत में भी नहीं थी इजाजत :

मुगल शासनकाल के बाद अंग्रेजी हुकूमत में भी अक्षयवट के दर्शन पर पाबंदी थी। अंग्रेजों ने किला को कब्जे में लेकर अपनी छावनी बना ली थी, जहां हथियार बनाए जाते थे। इससे आम लोगों का किला के अंदर प्रवेश करना तो दूर यमुना नदी में किले के पास से नाव में गुजरने पर भी पाबंदी थी।

आजादी के बाद से अक्षयवट के दर्शन की उठती रही मांग :

प्रो. योगेश्वर तिवारी बताते हैं कि देश को आजादी मिलने के बाद अक्षयवट को आम श्रद्धालुओं के दर्शन को खोलने के लिए समय-समय पर मांग उठती रही है। हालांकि वहां सेना के होने के चलते उसे नहीं खोला गया। सिर्फ रसूखदार लोगों को ही अक्षयवट तक जाने की छूट है, उन्हें भी कड़े नियम के बीच से गुजरना पड़ता है।

मुक्ति का माध्यम है अक्षयवट :

प्रयाग यानी यज्ञों की बाहुल्यता वाला स्थल। यह पावन भूमि मानव के साथ देवताओं को भी आकर्षित करती है। इसका प्रमुख कारण सृष्टि निर्माण से पहले परमपिता ब्रह्मा का यहां यज्ञ करना है। साथ ही संगम व प्राचीन अक्षयवट का होना भी प्रयाग के महात्म्य को बढ़ाता है। दुनिया में प्रयाग ही ऐसा स्थल है जहां पवित्र वृक्ष अक्षयवट अनादिकाल से अपनी छाया दे रहा है। भागवत पुराण में कहा गया है कि अक्षयवट में भगवान विष्णु बालरूप में शयन करते हैं। यह न सिर्फ प्रयाग बल्कि पूरी धरती के प्रहरी माने जाते हैं।

 ऐसी मान्‍यता है कि धरती पर प्रलय आने पर भी अक्षयवट को कोई क्षति नहीं होती। श्रीधर्मज्ञानोपदेश संस्कृत महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य आचार्य देवेंद्र प्रसाद त्रिपाठी बताते हैं कि प्रयाग महात्म्य, पद्म व स्कंद पुराण में अक्षयवट के दर्शन को मोक्ष का माध्यम बताया गया है। यह भगवान विष्णु का साक्षात विग्रह है। अक्षयवट की कम से कम चार बार परिक्रमा करके पुष्प एवं अक्षत अर्पित करने से साधक को मोक्ष की प्राप्ति होती है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.