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Gaharebaji in Savan : हवा की रफ्तार से दौड़ता था 'दिल्ली वाला सुरंग', किशन महाराज भी इसके दीवाने थे

Gaharebaji in Savan वर्ष 1980 से 1992 के बीच पद्म विभूषण तबला सम्राट पंडित किशन महाराज ने कई बार सुप्रभा रेस कराई थी। तबला सम्राट को गहरेबाजी में काफी दिलचस्पी थी।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Published: Wed, 15 Jul 2020 10:05 AM (IST)Updated: Wed, 15 Jul 2020 03:40 PM (IST)
Gaharebaji in Savan : हवा की रफ्तार से दौड़ता था 'दिल्ली वाला सुरंग', किशन महाराज भी इसके दीवाने थे
Gaharebaji in Savan : हवा की रफ्तार से दौड़ता था 'दिल्ली वाला सुरंग', किशन महाराज भी इसके दीवाने थे

प्रयागराज, [राजेंद्र यादव]। श्रावण मास हो और प्रयागराज के गहरेबाजी की बात न हो, कुछ अजीब सा लगता है। यहां प्राचीन काल से चली आ रही परंपरा पर इस बार कोरोना वायरस की लगाम लग गई है। हालांकि गहरेबाजी को लेकर लोगों में चर्चा तो हो ही रही है। गहरेबाजी के शौकीन हवा की रफ्तार से दौडऩे वाले घोड़ों की कहानी जोशीले अंदाज मेंं बताते हैं। तमाम नामी घोड़ों में शुमार एक था 'दिल्ली वाला सुरंग'। आपको बता दें कि इस घोड़े की चाल प्रख्‍यात तबला सम्राट किशन महराज को भी बहुत पंसद थी। इस घोड़े की दौड़ पर वह भी झूम उठते थे।

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मुट्ठीगंज के रहने वाले गोपाल महाराज का था 'दिल्ली वाला सुरंग'

'दिल्ली वाला सुरंग' घोड़ा अहियापुर मालवीय नगर, मुट्ठीगंज के रहने वाले गोपाल महाराज का था। ऐसा घोड़ा जिसकी चाल देखने लखनऊ, वाराणसी, मीरजापुर, जौनपुर समेत दिल्ली से भी लोग आते थे। इसका सुरंग नाम इसलिए था कि यह जब दौड़ता तो हवा को चीरता हुआ निकलता था। वर्ष 1980 से 1992 के बीच वाराणसी में पद्म विभूषण तबला सम्राट पंडित किशन महाराज ने कई बार सुप्रभा रेस कराई थी। तबला सम्राट को गहरेबाजी में काफी दिलचस्पी थी।

प्रयाग गहरेबाजी संघ के अध्यक्ष ने कहा

प्रयाग गहरेबाजी संघ के अध्यक्ष राजीव भारद्वाज बताते हैं कि सुप्रभा रेस हर वर्ष दिसंबर माह में होती थी। इसमें लगातार सात बजे गोपाल महाराज के दिल्ली वाले घोड़े सुरंग ने बाजी मारी थी। रेस 20 किमी की थी और इसमें दिल्ली, मीरजापुर, लखनऊ, वाराणसी जौनपुर के घोड़े भी शामिल थे।

नामी घोड़े

हजारा : यह घोड़ा कीडगंज के महावीर महाराज का था।

तीन पैरा : अहियापुर मालवीय नगर के विश्वनाथ महाराज का था।

दिल्ली का सुरंग : अहियापुर मालवीय नगर के गोपाल महाराज का था।

दूसरा सुरंग और रुस्तम : ये दोनों भी गोपाल महाराज के ही थे।

सब्जा (कबूतर) : कीडगंज के भइयन महाराज का था।

खास बातें

-चार माह पहले से शुरू हो जाती थी तैयारी

-देखरेख के लिए दो लोग होते हैं।

-100 रुपये की प्रतिदिन घास।

-100 रुपये का रोज चना।

-250 ग्राम देशी घी, मोटी रोटी के साथ।

-01 मक्खन की बड़ी टिकिया।

-04 लीटर प्रतिदिन दूध।

-500 ग्राम बादाम।

(इसके अलावा अन्य कई चीजें खिलाई जाती हैं)।

सिर्फ प्रयागराज में होती है गहरेबाजी

पूरे देश में श्रावण मास के दौरान प्रयागराज में ही गहरेबाजी का आयोजन किया जाता है। वर्ष 1980 से पहले इसका आयोजन परेड मैदान से शिवकुटी तक होता था। बाद में चैथम लाइन स्थित सेना के बने कार्यालयों की वजह से इसे रोक दिया गया और केपी इंटर कॉलेज से मेडिकल चौराहे तक कराई जाने लगी।

राजस्थान के बलोतरा से खरीदते हैं

पहले घोड़ों को सिंध से लाया जाता था, जो अब पाकिस्तान में है। भारत-पाक के बीच तल्खी बढ़ी तो वहां आना-जाना लोगों का बंद हो गया। इसके बाद राजस्थान के बलोतरा से लाए जाने लगे। यहां घोड़ों को बेचने के लिए बड़ा मेला लगता है।

एक हजार रुपये का था हजारा

वर्ष 1950 में घोड़े चार-पांच रुपये में मिलते थे। उस समय कीडगंज के महावीर महाराज ने एक हजार रुपये का घोड़ा खरीदा था। इसलिए उसका नाम हजारा रखा था। इस हजारा को देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते थे।


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