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ऋषियों के श्राप से राजा नहुष बने थे अजगर

प्रतापगढ़ के अजगरा का प्राचीन महत्‍व है। कहा जाता है कि यहां कुपित होकर ऋषियों ने राजा नहुष को अजगर हो जाने का श्राप दिया था। तभी से इसका नाम अजगरा पड़ा। 1997 में यहां लगने वाले मेले ने महोत्सव का स्वरूप लिया।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Published: Sun, 16 Sep 2018 02:45 PM (IST)Updated: Sun, 16 Sep 2018 02:45 PM (IST)
ऋषियों के श्राप से राजा नहुष बने थे अजगर
ऋषियों के श्राप से राजा नहुष बने थे अजगर

इलाहाबाद : पड़ोसी जनपद प्रतापगढ़ यानी बेल्हा की पहचान आंवला ही नहीं, अजगरा भी है। यह वही स्थल है जहां अपमान से कुपित ऋषियों ने राजा नहुष को अजगर हो जाने का श्राप दिया था। इसी से इसका नाम अजगरा पड़ गया।

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 लखनऊ-वाराणसी राजमार्ग पर जिला मुख्यालय से 15 किमी दूर यह स्थल महाभारत काल की गाथा समेटे है। यहां डिहवा समेत कई गांवों में पुरावशेष मिलते रहते हैं। मान्यता है कि ब्रह्मा हत्या का प्रायश्चित कर रहे राजा इंद्र के आसन छोडऩे पर राजा नहुष आसन पर बैठने के लिए जाने लगा। उसने दंभ में सप्तऋषियों को पालकी उठाने में लगा दिया। कामांध राजा को इंद्र की रानी शची के पास जाने की बहुत जल्दी थी। सो उसने ऋषियों को तेज चलने के लिए कहा। अपमानित करते हुए कहा कि सांप की तरह तेज चलो, रेंगों मत। इसके बाद राजा ने ऋषि अगस्त्य के सिर पर पैर से प्रहार कर दिया तो ऋषि कुपित हो गए। राजा नहुष को सांप यानी अजगर हो जाने का श्राप दे दिया।इसके बाद वह अजगर होकर तड़पने लगा और श्राप से मुक्ति की प्रार्थना करने लगा। उस दिन ऋषि पंचमी थी। तब से मान्यता है कि राजा नहुष को अजगर योनि से मुक्त करने के लिए मेला लगता है। यह मेला साधु, संतों, सज्जनों का सम्मान सदा करने का संदेश भी है। लोग अजगर बाबा के मंदिर में आकर दर्शन करते हैं। इस प्राचीन पौराणिक मेले को भव्यता देने के लिए निर्झर प्रतापगढ़ ने तत्कालीन जिलाधिकारी रमारमण को 21अगस्त 1997 को प्रार्थना पत्र दिया था। उस समय क्षेत्रीय विधायक राजाराम पांडेय के रुचि लेने से महोत्सव की नींव पड़ी।

जहां किए पांडवगण आवन :

रम्य सरोवर सलिल सुपावन, जहां किए पांडवगण आवन..। डा. निर्झर की रची इन पंक्तियों में अजगरा की पौराणिकता का संकेत मिलता है। वह कहते हैं कि इस स्थल को और विकसित करने की जरूरत है। वादे जो हों, वह पूरे भी किए जाएं। धाम के पुजारी बाबा मंगल गिरि का कहना है कि पूर्व मंत्री जब तक थे तभी तक इस पौराणिक स्थल का विकास होता था, बाकी नेता आते हैं, चले जाते हैं।

किले के हैं अवशेष :

प्राचीन नहुष सरोवर व पुरावशेषों से समृद्ध इस धरती पर नहुष के किले के अवशेष आज भी हैं। टीले पर बस्ती आबाद हो चुकी है, बाकी पर खेत लहलहा रहे हैं। इसी सरोवर में ही प्यासे पांडवों को विना प्रश्नों का उत्तर दिए जल पी लेने के कारण यक्ष ने मूॢछत कर दिया था। कहा जाता है कि यक्ष युधिष्ठिर संवाद इसी सरोवर के पास हुआ था।

विदेशी पर्यटक भी रीझे :

श्रद्धालु यहां पर आस्था के साथ पुरातत्व की भी जानकारी पाते हैं। यहां स्थित देश का इकलौता ग्रामीण क्षेत्र का एक मात्र पुरातत्व संग्रहालय निर्झर प्रतापगढ़ी ने स्थापित किया है। इसे देखने को स्विटजरलैंड, कनाडा, जर्मनी, इटली, इंग्लैंड से भी पर्यटक हमेशा आते रहते हैं।


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