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मोबाइल के लत में फंसा है आपका बेटा तो नजरअंदाज न करें Prayagraj News

युवाओं में इन दिनों मोबाइल का लत तेजी से बढ़ रहा है। चिकित्‍सक माता और पिता को सलाह देते हैं कि वह इसे नजरअंदाज न करें।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Published: Fri, 18 Oct 2019 05:27 PM (IST)Updated: Sat, 19 Oct 2019 10:36 AM (IST)
मोबाइल के लत में फंसा है आपका बेटा तो नजरअंदाज न करें Prayagraj News
मोबाइल के लत में फंसा है आपका बेटा तो नजरअंदाज न करें Prayagraj News

प्रयागराज, जेएनएन। मोबाइल के जितने फायदे हैं तो नुकसान भी इसके कम नहीं है। आज युवा वर्ग में जिस तेजी से मोबाइल का प्रयोग हो रहा है, इसका गलत असर भी हो रहा है। अधिकांश युवा इसके आदी हो चुके हैं। इसका अधिक प्रयोग करने के कारण मनोरोग की ओर ढकेल रहा है। इसकी वजह से काफी संख्या में लोग नोमोफोबिया बीमारी की गिरफ्त में आ रहे हैं।

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अभिभावकों को मनोचिकित्सक दे रहे सलाह

इससे परेशान अभिभावक अपने बच्‍चों को इस लत को छुड़ाने के लिए मनोचिकित्सक से सलाह ले रहे हैं। प्रयागराज के मोतीलाल नेहरू मंडलीय (काल्विन) अस्पताल में खुले मोबाइल नशा मुक्ति केंद्र के आंकड़े पर गौर करें तो 90 फीसद युवक और युवतियां मोबाइल की दुनिया में खो चुके हैं। वहीं 22 जुलाई 2019 को काल्विन अस्पताल में प्रदेश का इकलौता मोबाइल नशा मुक्ति केंद्र खुला। यहां सिर्फ ऐसे लोगों का इलाज होता है जो नोमोफोबिया (मोबाइल का अधिक इस्तेमाल करना) नामक मानसिक बीमारी से पीडि़त हैं।

पिछले दो माह में 210 मोबाइल के लती

करीब दो माह के आंकड़ों को देखा जाए तो यहां 210 लोग पहुंचे, जो मोबाइल के लती हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि इसमें 90 फीसद लोग 12 से 25 साल की उम्र के हैं। यह सब गेम, वाट्सएप चैटिंग, यूट्यूब का इस्तेमाल सबसे अधिक करते हैं। बाकी 10 फीसद लोग अधिक उम्र के आए, जो खुद मोबाइल से दूर होने के बारे में सलाह लेने पहुंचे।

मना करने पर छात्र अभिभावकों से मारपीट करने लगातेलियरगंज निवासी एक छात्र नैनी स्थित एक निजी संस्थान से बीटेक कर रहा है। शिक्षक पिता का यह बेटा क्लॉस में कमजोर था। पता चला कि वह हमेशा मोबाइल में व्यस्त रहता है। समझाने पर भी कोई असर नहीं हुआ। मना करने पर अभिभावकों से मारपीट करने लगा। ऐसे में अभिभावक उसे लेकर मोबाइल नशा मुक्ति केंद्र पहुंचे। यहां साइकोथेरेपी व बायो फीडबैक मशीन का सहारा लेकर उसे इस लत से निजात दिलाया जा सका। वहीं एक छात्रा नोमोफोबिया की गिरफ्त में थी। कॉलेज हो या घर, हर जगह मोबाइल में ही खोई रहती है। एक दिन ऐसा हुआ कि घर में जब मोबाइल से दूरी बनाने के लिए अधिक सख्ती बरती गई तो वह घर से ही गायब हो गई। दूसरे दिन अपनी सहेली के घर पर मिली। अभिभावक उसे मोबाइल नशा मुक्ति केंद्र ले गए। उसकी काउंसिलिंग कर साइकोथेरेपी के माध्यम से इलाज कराया।

डॉ. राकेश पासवान बोले

मनोचिकित्सक परामर्शदाता डॉ. राकेश पासवान ने बताया कि मोबाइल का नशा बच्‍चों व युवाओं के दिमाग पर नकारात्मक प्रभाव पैदा कर रहा है। बच्‍चों के लिए व्यावहारिक संशोधन तकनीक व बड़ों के लिए संज्ञात्मक व्यावहारिक थेरेपी की मदद ली जाती है। आवश्यकता पडऩे पर बायो फीडबैक मशीन का भी सहारा लेते हैं।


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