Magh Mela क्षेत्र में कुर्बान और अरमान की बांसुरी गा रही... राधे-राधे Prayagraj News
माघ मेला में धर्म के भेदभाव को कुर्बान व अरमान की मासूमियत मात दे रही है। मुस्लिम परिवार के ये बच्चे मेला क्षेत्र में बांसुरी बेच गुजारा कर रहे हैं। बांसुरी से भक्ति गीत बजते हैं।
प्रयागराज, [अमरदीप भट्ट]। परिंदों में तो यह फिरकापरस्ती भी नहीं देखी-कभी मंदिर पे बैठे कभी मस्जिद पे जा बैठे। मशहूर शायर नूर तकी 'नूर' की इस शायरी की प्रासंगिकता अब भी आइने की तरह साफ है। देखना हो तो प्रयागराज में संगम तट पर आइए। यहां मुस्लिम परिवारों के बच्चे कुर्बान, अरमान, मुस्तफा और सरफुद्दीन इसकी नजीर पेश कर रहे हैं। उनकी बांसुरी से बज रहे गीत, राधा-कृष्ण के भजन माघ मेला क्षेत्र की आबोहवा को एक नई ताजगी दे रहे हैं। इन बच्चों का इल्म सिर्फ इतना है कि वह अपने घर के खर्च में सहयोग के लिए बांसुरी बेचने यहां आए हैं।
माघ मेला क्षेत्र में बांसुरी बेचकर पेट पाल रहे मुस्लिम परिवारों के बच्चे
संगम तट पर कई दिनों से बांसुरी बेचने के लिए पहुंच रहे कुर्बान, अरमान, मुस्तफा और सरफुद्दीन अल्लापुर में बाघंबरी गद्दी के समीप रहते हैं। परिवार में मुफलिसी है इसलिए ये चारों बच्चे स्कूल यदा-कदा जाते हैं। पिता व घर के अन्य सदस्यों की तरह बांसुरी बेचने के लिए किसी मोहल्ले में निकल पड़ते हैं। दिन भर में इनकी इतनी आमदनी हो जाती है कि घर के गुजारे में थोड़ा सहयोग हो सके। संगम पर बांसुरी बेचने के बारे में पूछने पर कहा कि यहां मेला लगा है, इसलिए आ गए हैं। थोड़ा डरे, सहमे भी घूमते हैं कि कहीं पुलिस वाले उन्हें परेशान न करें। इन बच्चों में समझ सिर्फ इतनी है कि उन्हें बांसुरी बेचने से कुछ पैसे मिल जाएंगे।
बच्चों ने घरवालों से बांसुरी बजाने की सीखी कला
बांसुरी बजाना और फिल्मी गीतों की धुन निकालना घर वालों से सीखा। सुबह से शाम तक संगम पर घूम-घूम कर ये बच्चे बांसुरी बेच रहे हैं और लोगों को आकर्षित कर रहे हैं। मुस्लिम परिवार के ये बच्चे उन लोगों के लिए संजीदा संदेश भी हैैं, जो सिर्फ कही जुबानी धर्म या धर्मक्षेत्र में भेद करते हैं।