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...ये हैं प्रयागराज की रहने वाली कुपोषित मां-बेटी, इन्‍हें है सरकारी योजनाओं की दरकार

प्रयागराज में यमुनापार के विकास खंड शंकरगढ़ के ग्राम पंचायत सुरवल चंदेल में दिव्यांगता प्रमाण पत्र होने के बावजूद कुपोषित मां-बेटी योजनाओं की बाट जोह रही हैं।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Published: Sat, 05 Sep 2020 09:02 AM (IST)Updated: Sat, 05 Sep 2020 09:02 AM (IST)
...ये हैं प्रयागराज की रहने वाली कुपोषित मां-बेटी, इन्‍हें है सरकारी योजनाओं की दरकार
...ये हैं प्रयागराज की रहने वाली कुपोषित मां-बेटी, इन्‍हें है सरकारी योजनाओं की दरकार

प्रयागराज, जेएनएन। एक ओर तो सरकार कुपोषण को समाप्‍त करने के लिए पुरजोर प्रयास कर रही है। इसके लिए योजनाएं भी संचालित हो रही हैं। वहीं सिक्‍के का दूसरा पहलू तो देखिए कि अभी भी कई ऐसे भी लोग हैं, जो सरकारी योजनाओं से कोसों दूर हैं। उन्‍हें आज भी इसकी दरकार है कि कहीं से भी कोई सहायता मिले तो दो वक्‍त की उन्‍हें रोटी नसीब हो। इसका उदाहरण प्रयागराज में भी है।

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तहसील का चक्कर लगाने के बाद भी वह योजनाओं से वंचित हैं

यमुनापार के विकास खंड शंकरगढ़ के ग्राम पंचायत सुरवल चंदेल में दिव्यांगता प्रमाण पत्र होने के बावजूद कुपोषित मां-बेटी योजनाओं की बाट जोह रही हैं। बार-बार तहसील के चक्कर काटने के बावजूद अब तक वह योजनाओं से वंचित हैं। गीता देवी (35) निवासी सुरवल चंदेल पूर्व में दिव्यांग नहीं थी। पति अभयराज के साथ ठेला लगा कर अपना जीवनयापन करती थी। चार वर्ष पहले पति का निधन हो गया। पति के शोक में कुपोषण से गीता के हाथ पैरों में दिव्यांगता आ गई। तब इकलौती बेटी चंदा (16) के साथ बाजार में भीख मांग कर गुजारा करने लगी। बेटी भी कुपोषण का शिकार हो गई।

दिव्‍यांगता का प्रमाणपत्र तो मिला पर नहीं मिली ट्राई साइकिल

मां और बेटी को कहीं शरण न मिलने पर नारीबारी के ग्राम प्रधान संतोष शुक्ल के पशुशाला में रहने की उन्‍हें जगह मिली। पिछले वर्ष नवंबर में प्रधानमंत्री के कार्यक्रम में सीएमओ द्वारा शंकरगढ़ ब्लॉक के माध्यम से दिव्यांगता प्रमाणपत्र भी मिल गया। हालांकि अभी तक ट्राई साइकिल नहीं मिल सकी। इस संबंध में ग्राम प्रधान प्रतिनिधि महेंद्र कुमार शुक्ल ने बताया कि ट्राई साइकिल प्रधानमंत्री द्वारा प्रदान किया गया है, जो अभी ब्लॉक में ही है। पैर का ऑपरेशन भी कराया था। आज तक विधवा पेंशन या दिव्यांग पेंशन की भी कोई उम्मीद नहीं दिख रही है। बेटी चंदा आश्रित के घर में कुछ काम कर देती है। उसी से मां-बेटी को दो वक्त का भोजन मिल जाता है। मां-बेटी को आवास, राशन कार्ड सहित किसी भी सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिला, जिसका वह आज भी इंतजार कर रही है।


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