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जहरीली शराब कांडः धरपकड़ की बजाय डिस्टिलरियां ताक रहीं फोर्स, मौत के सौदागरों को खुली छूट

उत्तर प्रदेश में जहरीली शराब बन रही है, खुलेआम बिक रही है और इसे पीने से लाशें बिछ रही हैं तो इसका पूरा इंतजाम आबकारी विभाग ने ही कर रखा है। पढ़े पूरी खबर।

By Nawal MishraEdited By: Published: Sat, 09 Feb 2019 08:13 PM (IST)Updated: Sat, 09 Feb 2019 08:13 PM (IST)
जहरीली शराब कांडः धरपकड़ की बजाय डिस्टिलरियां ताक रहीं फोर्स, मौत के सौदागरों को खुली छूट
जहरीली शराब कांडः धरपकड़ की बजाय डिस्टिलरियां ताक रहीं फोर्स, मौत के सौदागरों को खुली छूट

प्रयागराज, जेएनएन। उत्तर प्रदेश में जहरीली शराब बन रही है, खुलेआम बिक रही है और इसे पीने से लाशें बिछ रही हैं तो इसका पूरा इंतजाम आबकारी विभाग ने ही कर रखा है। उच्चाधिकारियों ने प्रवर्तन दलों को उनके मूल उद्देश्य से हटाकर दूसरे काम में लगा दिया है। सुरागरसी और धरपकड़ के लिए दो महत्वपूर्ण एजेंसियां प्रवर्तन दल और एसएसएफ (स्पेशल स्ट्राइकिंग फोर्स) हैं। इनमें एसएसएफ तो डिस्टिलरियों पर चौबीसों घंटे निगरानी के लिए लगा दी गई है और प्रवर्तन दल संसाधनों की कमी से जूझ रहे हैं। 

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सभी मंडलों में बने प्रवर्तन दल

सूबे के सभी मंडल में एक-एक प्रवर्तन दलों का गठन काफी पहले से है। इनमें एक दल में एक सहायक आबकारी आयुक्त, दो इंसपेक्टर, दो हेड कांस्टेबिल और 10-12 सिपाहियों को शामिल किया गया है। इनका मूल काम अवैध रूप से बन रही कच्ची शराब के अड्डों पर छापामारी और धरपकड़ करना है। जरूरत पडऩे पर पुलिस की मदद भी ली जाती है। दूसरी एजेंसी एसएसएफ की टीमें मंडलों में अधिक हैं। मेरठ समेत पश्चिमी उप्र में एसएसएफ की काफी टीमें हैं। जिनका काम राज्य के सीमावर्ती क्षेत्रों में सुरागरसी कर प्रवर्तन कार्य करना और जिलों में भी बड़े अभियानों को अंजाम देना है। 

डिस्टिलरियों में चौबीसों घंटे उत्पादन

इसके इतर विभाग के उच्चाधिकारियों के निर्देश पर एसएसएफ की अधिकांश टीमें डिस्टिलरियों में निगरानी के लिए लगाई गई हैं। क्योंकि डिस्टिलरियों में चौबीसों घंटे उत्पादन का निर्देश है। इससे इन टीमों में शामिल अधिकारियों और कर्मियों को कहीं सुरागरसी का न तो वक्त मिल पाता है और न ही वे अपने संपर्क सूत्र मजबूत कर पाते हैं। पहले से गठित प्रवर्तन दलों के पास आधुनिक संसाधनों का जबर्दस्त अभाव है। न तो उनके पास अच्छी गाडिय़ां हैं, न दफ्तर, न ही उनकी कोई मानिटरिंग ही होती है। 

असलहे मिले प्रशिक्षण नहीं

प्रवर्तन दलों को नए हथियार उपलब्ध कराए गए हैं तो उसे चलाने का प्रशिक्षण नहीं दिया गया है। जो पुराने असलहे हैं उनमें जंग लगी है। ऐसे में उनके उद्देश्य को धार नहीं मिल पाती है और अवैध शराब के अड्डे बेखौफ चल रहे हैं। 


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