हाई कोर्ट ने कहा- एफआइआर दर्ज करने में देरी की वजह से पूरी आपराधिक कार्यवाही रद नहीं की जा सकती
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा कि अचानक आपराधिक केस की मौत नहीं की जा सकती। कोर्ट ने आपराधिक केस रद करने की मांग में दाखिल याचिका खारिज कर दी। यह आदेश न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी ने श्रीमती शैला गुप्ता की याचिका पर दिया है।
प्रयागराज, विधि संवाददाता। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि एफआइआर दर्ज करने में छह साल की देरी होने की वजह से विवेचना की अनदेखी करते हुए पूरी आपराधिक कार्यवाही रद नहीं की जा सकती है। कोर्ट ने कहा कि याची पर प्रथम दृष्टया कपट और बेईमानी से अस्पताल का बड़ा हिस्सा लीज पर देने का अपराध बनता है। ऐसे में कोर्ट की अंतर्निहित शक्तियों का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।
अचानक आपराधिक केस की मौत नहीं की जा सकती
साथ ही इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा कि अचानक आपराधिक केस की मौत नहीं की जा सकती। कोर्ट ने आपराधिक केस रद करने की मांग में दाखिल याचिका खारिज कर दी। यह आदेश न्यायमूर्ति सौरभ श्याम शमशेरी ने श्रीमती शैला गुप्ता की याचिका पर दिया है।
याची जसवंत राय चूड़ामणि ट्रस्ट सोसायटी मेरठ द्वारा संचालित मैटरनिटी अस्पताल की प्रबंध समिति की अध्यक्ष थीं जिन्होंने स्वयं अस्पताल का काफी हिस्सा श्रेया मेडिकल प्रा.लि. की डायरेक्टर मृदुल शर्मा को पट्टे पर दे दिया। इसी मसले पर सिविल लाइंस थाना मेरठ में एफआइआर दर्ज कराई गई। पुलिस ने चार्जशीट दाखिल की जिस पर कोर्ट ने संज्ञान भी ले लिया है। याची पर बेईमानी से गबन और अस्पताल की जमीन का लीज कर हड़पने का भी आरोप है।
निराधार और निर्रथक मनगढ़त आपराधिक केस में ही हस्तक्षेप
हाई कोर्ट ने कहा कि निराधार और निरर्थक मनगढ़ंत आपराधिक केस में ही विशेष स्थिति में हस्तक्षेप किया जा सकता है। वर्तमान केस रद करने का कोई आधार नहीं है।
90 साल का उम्र और कैंसर पीड़ित होने का तर्क
याची का कहना था वह अस्पताल का संचालन कर रही थी। अस्पताल प्रबंध समिति की अध्यक्ष थी। ट्रस्ट को कोई नुक्सान या स्वयं को फायदा पहुंचाने का काम नहीं किया है। उसकी 90 साल की आयु है। कैंसर से पीड़ित हैं। छह साल बाद एफआइआर दर्ज कराई गई है।
कोई अपराध नहीं करने की दलील भी खारिज
याची ने भी राजीव गुप्ता व अन्य लोगों के खिलाफ फर्जी दस्तावेज व जाली हस्ताक्षर से आपराधिक केस दर्ज कराने के आरोप में एफआइआर दर्ज कराई है। उसने कोई अपराध नहीं किया है लेकिन कोर्ट ने हस्तक्षेप करने से इन्कार कर दिया।