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हाई कोर्ट का आदेश न मानना क्षेत्रीय उच्च शिक्षा अधिकारी को पड़ा महंगा, एक लाख का हर्जाना

इलाहाबाद हाई कोर्ट का आदेश न मानना क्षेत्रीय उच्च शिक्षा अधिकारी बरेली को महंगा पड़ा है। कोर्ट ने उन पर एक लाख का हर्जाना लगाया है।

By Umesh TiwariEdited By: Published: Wed, 02 Oct 2019 01:37 PM (IST)Updated: Wed, 02 Oct 2019 01:37 PM (IST)
हाई कोर्ट का आदेश न मानना क्षेत्रीय उच्च शिक्षा अधिकारी को पड़ा महंगा, एक लाख का हर्जाना
हाई कोर्ट का आदेश न मानना क्षेत्रीय उच्च शिक्षा अधिकारी को पड़ा महंगा, एक लाख का हर्जाना

प्रयागराज, जेएनएन। इलाहाबाद हाई कोर्ट का आदेश न मानना क्षेत्रीय उच्च शिक्षा अधिकारी बरेली को महंगा पड़ा है। कोर्ट ने उन पर एक लाख का हर्जाना लगाया है। यह हर्जाना याची को बेवजह पांच राउंड की मुकदमेबाजी में उलझाने के लिए लगाया गया है। हर्जाने की रकम याची को ही दी जाएगी। कोर्ट ने याची के सेवानिवृत्ति परिलाभों से काटे गए चार लाख 28 हजार 789 रुपये सात फीसदी ब्याज सहित छह सप्ताह में वापस करने का भी निर्देश दिया है। कोर्ट ने कहा कि याची को ग्रेच्युटी राशि के भुगतान में देरी पर भी ब्याज पाने का हक है। 

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यह आदेश न्यायमूर्ति सुनीत कुमार ने गोविंद वल्लभ पंत महाविद्यालय कछला बदायूं के सेवानिवृत्त हेड क्लर्क ओम प्रकाश तिवारी की याचिका पर अधिवक्ता अवनीश त्रिपाठी को सुनकर दिया है। याची को प्रबंध समिति ने सात अक्टूबर 1984 को निलंबित कर दिया था और चार मई 1985 को सेवा से हटा दिया था। जिसे चुनौती दी गयी। आठ दिसंबर 2014 को याचिका मंजूर करते हुए कोर्ट ने बर्खास्तगी रद कर दी और पेंशन आदि के भुगतान का निर्देश दिया। आदेश का पालन नहीं किया गया।

अवमानना याचिका दाखिल हुई तो परिलाभों से यह कहते हुए प्रबंधकीय अंशदान चार लाख 28 हजार रुपये काट लिए गए कि याची ने वेतन लिया और अंशदान जमा नहीं किया, जबकि याची को निलंबन की तारीख चार मई 1985 से सेवानिवृत्ति 30 जुलाई 2009 तक वेतन नहीं मिला। कोर्ट ने बकाये वेतन के भुगतान का आदेश ही नहीं दिया था, प्रबंध समिति ने कल्पना कर ली कि याची ने वेतन लिया है। कोर्ट ने कटौती को गलत करार दिया है।  


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