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यहां तो 80 के बजाए 180 का प्रवेश, कैसे हो पढ़ाई

प्रतापगढ़ शहर के एक मात्र एमडीपीजी कालेज में बीएससी प्रथम वर्ष के गणित विषय में 180 बच्चों का प्रवेश लिया गया है, जबकि इन्हें पढ़ाने के लिए मात्र एक शिक्षक कार्यरत हैं। इसी प्रकार एमडीपीजी के ही वाणिज्य संकाय में जो कि तीन विषय के समकक्ष होता है, मात्र तीन ही शिक्षक होने के बावजूद 200 से अधिक छात्रों का प्रवेश बीकॉम भाग एक में कर लिया गया है। इस प्रकार एक शिक्षण कक्ष में लगभग 200 छात्रों का व्याख्यान असंभव है। अधिकांश शिक्षण कक्ष में 80 छात्र-छात्राओं के बैठने की व्यवस्था है, जबकि बीकॉम भाग एक, भाग दो एवं भाग तीन को मिलाकर लगभग 600 छात्र-छात्राओं का प्रवेश हुआ है। वाणिज्य संकाय में 600 से अधिक छात्रों के प्रवेश के बावजूद मात्र तीन शिक्षक कार्यरत हैं जबकि बीएससी भाग एक, भाग दो एवं भाग तीन गणित में भी लगभग 500 से अधिक छात्र छात्राओं पर एक शिक्षक कार्यरत हैं।

By JagranEdited By: Published: Fri, 21 Sep 2018 11:00 AM (IST)Updated: Fri, 21 Sep 2018 11:00 AM (IST)
यहां तो 80 के बजाए 180 का प्रवेश, कैसे हो पढ़ाई
यहां तो 80 के बजाए 180 का प्रवेश, कैसे हो पढ़ाई

रमेश चंद्र त्रिपाठी, इलाहाबाद : शासन के निर्देशों की अवहेलना कर जिले के महाविद्यालयों में मनमाने ढंग से प्रवेश कर लिए गए हैं। उच्च शिक्षा में शासन का निर्देश है किसी भी शिक्षण कक्ष में बच्चों की संख्या 80 से अधिक नहीं होनी चाहिए। इसके बावजूद जिले के अधिकांश महाविद्यालयों में शासन के आदेश को दर किनार करते हुए 200 से अधिक छात्र छात्राओं का प्रवेश कर लिया गया है। जिले में कुल 152 महाविद्यालय हैं।

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पड़ोसी जिले प्रतापगढ़ शहर के एक मात्र एमडीपीजी कालेज में बीएससी प्रथम वर्ष के गणित विषय में 180 बच्चों का प्रवेश लिया गया है, जबकि इन्हें पढ़ाने के लिए मात्र एक शिक्षक कार्यरत हैं। इसी प्रकार एमडीपीजी के ही वाणिज्य संकाय में जो कि तीन विषय के समकक्ष होता है, मात्र तीन ही शिक्षक होने के बावजूद 200 से अधिक छात्रों का प्रवेश बीकॉम भाग एक में कर लिया गया है। इस प्रकार एक शिक्षण कक्ष में लगभग 200 छात्रों का व्याख्यान असंभव है। अधिकांश शिक्षण कक्ष में 80 छात्र-छात्राओं के बैठने की व्यवस्था है, जबकि बीकॉम भाग एक, भाग दो एवं भाग तीन को मिलाकर लगभग 600 छात्र-छात्राओं का प्रवेश हुआ है। वाणिज्य संकाय में 600 से अधिक छात्रों के प्रवेश के बावजूद मात्र तीन शिक्षक कार्यरत हैं जबकि बीएससी भाग एक, भाग दो एवं भाग तीन गणित में भी लगभग 500 से अधिक छात्र छात्राओं पर एक शिक्षक कार्यरत हैं। ऐसे में गुणवत्ता परक शिक्षा की शासन की मंशा की हवा निकाली जा रही है, जबकि यह दोनों पाठ्यक्रम स्ववित्तपोषित योजना अंतर्गत संचालित हैं। यहां शिक्षकों की नियुक्ति आयोग से नहीं अपितु प्रबंधतंत्र द्वारा विश्वविद्यालय के अनुमोदन से की जाती है। यह अनुदानित महाविद्यालयों की दशा है, जबकि स्ववित्तपोषित महाविद्यालयों की दशा इससे भी बदतर है। वहां तो बिना शिक्षक के ही बड़ी संख्या में छात्र छात्राओं के प्रवेश कर लेने मामले चर्चा में हैं। इनको पढ़ाने वाला कोई शिक्षक हीं नहीं है। सूत्रों की मानें तो इस संबंध में शासन का बार-बार फरमान आता है कि प्रत्येक शिक्षण कक्ष में 80 से अधिक विद्यार्थी नहीं होने चाहिए अर्थात एक शिक्षक पर अधिकतम 80 छात्रों का ही प्रवेश लिया जाए, ¨कतु महाविद्यालयों द्वारा इस आदेश की अनदेखी की जाती है विश्वविद्यालय द्वारा इस तरह के प्रवेश की कोई मॉनिट¨रग भी नहीं की जाती, जिससे शिक्षा के पावन मंदिर वाणिज्यिक प्रतिष्ठान बनकर रह गए हैं। इस संबंध में एमडीपीजी कालेज के जन सूचनाधिकारी डॉ. सीएन पांडेय ने बताया कि महाविद्यालय में प्रवेश नियमानुसार एवं विश्वविद्यालय के निर्देशों के क्रम में ही लिए गए हैं।

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विद्यार्थी परिषद ने उठाई आवाज

विद्यार्थी परिषद ने एमडीपीजी के प्राचार्य को बुधवार को ज्ञापन सौंपा, जिसमें छात्रों ने बताया है कि शिक्षण कक्ष में बैठने की जगह नहीं है क्योंकि मानक से अधिक प्रवेश गणित एवम बीकॉम में ले लिए गए हैं। छात्रों ने अपनी अन्य समस्याएं साफ-सफाई, पुस्तकों का अभाव, जोगापुर परिसर में जनरेटर का न होना, शौचालय में पानी आदि की आपूर्ति न होना जैसी समस्याओं से प्राचार्य को अवगत कराया।

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वर्जन

शासन की मंशानुसार हर सेक्शन में मानक के अनुसार बच्चे होने चाहिए। महाविद्यालयों में जहां संसाधन हों वहां बच्चों की संख्या बढ़ाई जा सकती है। जिन महाविद्यालयों के संबंध में शिकायतें मिलेंगी उनका औचक निरीक्षण कराया जाएगा, जिसमें यह देखा जाएगा कि शासन की नियमावली के अनुरूप प्रवेश हुआ है या नहीं। विश्वविद्यालयों में शिक्षा स्तर को सुधारने के लिए जल्द ही शिक्षकों की तैनाती होगी। शिक्षक सुविधाएं दी जानी चाहिए। कालेजों में क्वालिटी का ध्यान रखा जाना चाहिए। कालेज प्रबंधन को यूजीसी के मानक के अनुसार शिक्षकों की नियुक्ति करनी चाहिए।

-प्रो. राजेंद्र प्रसाद, कुलपति, राज्यविश्वविद्यालय, इलाहाबाद

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