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बुलंदी पर पहुंचने का इनमें है जज्‍बा, दूसरों से पूछकर शुरू किया कारोबार, अब 'आइ ड्राप' के डीलर बने

वह बताते हैं कि उनके घर-परिवार में दूर-दराज तक व्यवसाय नहीं करने के कारण उन्हें शुरुआती मुश्किलों का सामना करना पड़ा लेकिन आज वह जिस मुकाम पर हैं वह अपनी मेहनत और लगन की वजह से हैं। हालांकि स्वजनों का भी सहयोग मिलता रहा है।

By Brijesh SrivastavaEdited By: Published: Wed, 21 Oct 2020 12:30 AM (IST)Updated: Wed, 21 Oct 2020 12:30 AM (IST)
बुलंदी पर पहुंचने का इनमें है जज्‍बा, दूसरों से पूछकर शुरू किया कारोबार, अब 'आइ ड्राप' के डीलर बने
मौजूदा समय में नीरज के पास देश की सभी प्रतिष्ठित आइ ड्राप कंपनियों की डीलरशिप है।

प्रयागराज, जेएनएन। आपके अंदर बुलंदी पर पहुंचने का जज्बा और लगन है तो सौ ठोकरें खाकर भी उस मुकाम तक पहुंच जाएंगे। कुछ इसी तरह का घटनाक्रम कारोबारी नीरज कुमार के व्यवसाय में भी हुआ। करीब तीन दशक पहले उन्होंने दूसरों से पूछकर आइ ड्राप का कारोबार शुरू किया। दवा के क्षेत्र में अनुभव नहीं होने के कारण उन्हें भारी घाटा भी उठाना पड़ा। इसके बाद भी उन्‍होंने हिम्मत नहीं हारी। लंबे समय तक स्थानीय कंपनियों की बनी आइ ड्राप खरीदकर बेचना शुरू किया। हालांकि, आज वह आइ ड्राप के बड़े डीलर हैं और करीब 200 किलोमीटर के दायरे में इसकी सप्लाई करते हैं। नीरज ने जिस तरह से शुरूआती झंझावटों से पार पाते हुए व्यवसाय में सफलता हासिल की वह नया कारोबार या नया काम शुरू करने के इच्छुक लोगों के लिए एक मिसाल भी है।

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नीरज के समक्ष कारोबार खड़ा करने की यह समस्‍या थी

लूकरगंज मोहल्ले के निवासी नीरज कुमार ने स्नातक तक की शिक्षा ग्रहण की है। स्‍नातक की शिक्षा पूरी करने के बाद उनके पिता ने 60 हजार रुपये दुकान खोलने के लिए दिए थे। उस समय उनकी उम्र महज 21 वर्ष थी। शुरू में व्यवसाय का अनुभव भी नहीं था। फिर भी नीरज ने साहस जुटाकर लीडर रोड पर दुकान किराए पर ले ली। अब समस्‍या उनके समक्ष यह उत्‍पन्‍न हुई कि कौन सा कारोबार शुरू किया जाए। इसके बारे में उन्‍हें कुछ सूझ नहीं रहा था। तभी मकान मालिक ने उनसे कहा कि दुकान में वह सिर्फ दवा का कारोबार कर सकते हैं। इसके बाद उन्होंने दूसरे लोगों से पूछकर आइ ड्राप की दुकान खोली।

घाटा होने के बाद भी वह संघर्ष करते रहे और आखिरकार मिल गई कामयाबी

व्यवसाय का कोई अनुभव नहीं होने से नीरज को भारी घाटा सहना पड़ा। वह बताते हैं कि घाटा होने से पूरा पैसा खत्म हो गया। ऐसी परिस्थिति में अब क्या करें, उनके सामने बड़ी समस्या खड़ी हो गई थी। छोटी-छोटी स्थानीय कंपनियों की आइ ड्राप वगैरह खरीदकर उसे बेचना शुरू किया। संघर्ष करते रहे और फिर आइ ड्राप की बिक्री शुरू की। धीरे-धीरे जब व्यापार बढ़ने लगा तो देश की प्रतिष्ठित आइ ड्राप कंपनियों की डीलरशिप भी उन्‍होंने लेना शुरू कर दिया। मौजूदा समय में नीरज के पास देश की सभी प्रतिष्ठित आइ ड्राप कंपनियों की डीलरशिप है।

200 किमी के दायरे में होती है आपूर्ति

वह बताते हैं कि उनके यहां से प्रतापगढ़, सुल्तानपुर, अमेठी, कौशांबी, वाराणसी, रायबरेली और लखनऊ तक आईड्राप की आपूर्ति होती है। वह बताते हैं कि कोरोना वायरस के चलते पूर्ण लॉकडाउन में दवा की थोक दुकानें बंद थीं। जब सरकार की अनुमति मिली तो कोविड-19 के नियमों का पूरी तरह से पालन करते हुए कभी दो तो कभी चार घंटे दुकानें खुलीं। इसकी वजह से कारोबार पर करीब 20-30 फीसद का असर जरूर पड़ा लेकिन जितना व्यवसाय इस समय आठ-10 घंटे में हो रहा है। लॉकडाउन के दौरान उतना ही व्यवसाय दो-चार घंटे में हो जाया करता था।

सावधानी बरतते हुए किया कारोबार

नीरज बताते हैं कि कोरोना काल में पूरी सावधानी बरतते हुए कारोबार किया गया। स्टॉफ को मास्क, हैंड ग्लब्स मुहैया कराए गए। साथ ही दुकान का भी दिन में तीन-चार बार सैनिटाइजेशन कराया गया। यह काम अब भी नियमित रूप से हो रहा है। खुद को अपने स्टॉफ को और सप्लायरों को भी संक्रमण से सुरक्षित रखने के मकसद से पूरी तरह से सख्ती कर दी गई थी कि बगैर मास्क लगाकर आने वाले सप्लायरों को आईड्राप की आपूर्ति न की जाए। जरूरत पड़ने पर सप्लायरों तक आईड्राप पहुंचायी भी गई।

दवाओं के व्यापार पर नहीं पड़ा खास असर

वह कहते हैं कि अभी जब तक कोरोना की वैक्सीन बाजार में नहीं आती है। तब तक लोगों में इसका खौफ बना रहेगा। इसकी वजह से कई सेक्टरों का काम-धंधा अभी भी प्रभावित चल रहा है। लेकिन, दवाओं के व्यवसाय पर इसका खास असर नहीं पड़ा। आवश्यक सामग्रियों में शामिल होने के कारण लॉकडाउन में दवाओं की आवक में दिक्कत भले हुई लेकिन व्यापार ठप नहीं हुआ और चलता रहा। वैक्सीन आने पर हर सेक्टर का कारोबार फिर से सरपट दौड़ने लगेगा। वह बताते हैं कि उनके घर-परिवार में दूर-दराज तक व्यवसाय नहीं करने के कारण उन्हें शुरुआती मुश्किलों का सामना करना पड़ा लेकिन, आज वह जिस मुकाम पर हैं, वह अपनी मेहनत और लगन की वजह से हैं। हालांकि, स्वजनों का भी सहयोग मिलता रहा है।


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