समाज की सोच बदली तो दिव्यांगों को मिला सम्मान Prayagraj News
समाज की सोच बदलने से सम्मान मिला है। यह समाज के लिए एक अच्छी पहल है।
प्रयागराज, जेएनएन : पहले समाज शारीरिक रूप से अक्षम (दिव्यांग) को हीन दृष्टि से देखता था। अब लोगों की सोच में काफी अंतर आ गया है। समाज की सोच बदलने से दिव्यांगों का मनोबल भी ऊंचा हुआ है। मैं इसका प्रत्यक्ष प्रमाण हूं। दिव्यांग होते हुए भी मेरा हौसला कम नहीं हुआ। 20 साल तक समाजसेवा करती रही। जूना अखाड़ा में श्रीमहंत की उपाधि उसका सुखद फल है। यह कहना है कि डॉ किरन आचार्य का। उन्हें श्रीपंचदशनाम जूना अखाड़ा ने श्रीमहंत हरिसिद्धि गिरि बनाया है।
दैनिक जागरण से बातचीत में उन्होंने कहा कि वह इस बात के लिए कोशिश करेंगी कि दिव्यांगों के मन से विकार निकले। कहा कि पोलियोग्रस्त लोगों के लिए वह पहले भी काम करती रही हैं और आगे भी सिलसिला जारी रहेगा। हरिगिरि जी समाज के बारे में अच्छी सोच रखते हैं, उनकी शरण में आने का यही मुख्य कारण है। श्रीमहंत हरिसिद्धि गिरि मां ने कहा कि संन्यासी बनने की मन में इच्छाशक्ति थी। महंत हरिगिरि जी, शंकराचार्य स्वामी नरेंद्रानंद सरस्वती सहित आदि से इसकी प्रेरणा मिली। स्वामी रामभद्राचार्य से हैं प्रेरित श्रीमहंत हरिसिद्धि गिरि, जगद्गुरु रामभद्राचार्य दिव्यांग विश्वविद्यालय के आजीवन कुलाधिपति स्वामी रामभद्राचार्य से भी प्रेरित हैं। कहती हैं कि नेत्रहीन होते हुए भी उन्हें जिस तरह श्रीरामचरित मानस, श्रीमद् भागवत तथा वेद-उपनिषद कंठस्थ हैं वह साधारण मनुष्य के लिए संभव नहीं। उन्होंने कहा कि रामभद्राचार्य जी हर वर्ग के लिए सामाजिक कार्य कर रहे हैं। ऐसा कार्य ही जीवन को श्रेष्ठ बनाता है। हर मनुष्य को ऐसी सोच के साथ आगे बढ़ना चाहिए। तभी समाज में बदलाव आएगा।