प्रयागराज के इस Ayodhya में त्रेता युग के होते हैं दर्शन, घर-घर पूजे जाते हैं श्रीराम Prayagraj News
घर में पूजा वाले स्थान पर विभिन्न देवी-देवताओं के साथ ही भगवान राम की भी मूर्ति रखी गई है। रोज भगवान की आरती उतारी जाती है। दीपावली पर यहां खास उत्सव होता है।
प्रयागराज, [ज्ञानेंद्र सिंह] । न तो त्रेता युग देखा है, न त्रेता युग की अयोध्या। हालांकि शास्त्रों एवं रामकथाओं में जितना सुनाया और पढ़ाया गया है, उसके मुताबिक प्रयागराज जिला मुख्यालय से लगभग 70 किमी दूर बसे गांव अयोध्या में त्रेतायुग जैसी व्यवस्था के दर्शन आज भी होते हैैं। यहां प्राचीन मंदिर में भगवान राम के प्रिय रहे केवट पुजारी हैैं, जिनसे राम वन गमन के समय श्रृंगवेरपुर धाम में गंगा पार उतारने पर मित्रता हुई थी। प्रभु राम ने निषादराज का सम्मान किया था। यहां पुजारी नियुक्त गामा केवट के पिता, दादा, परदादा के भी पुजारी होने का पता है। रोज भोर में नदी किनारे मंदिर पर लाउडस्पीकर से रामकथा सुनाई जाती है। ऊंचाई से खड़े होकर देखने पर यह अयोध्या अद्भुत नजर आती है।
हर घर में भगवान राम की पूजा होती है
इस अयोध्या में राम नाम धारण करने वाले हर जाति वर्ग के लोग हैैं। मसलन मनीराम, राम अभिलाष, राम शिरोमणि आदि-आदि...। नाम धारी रामनामी अयोध्या में हर एकादशी पर ज्यादातर लोग इस खास मंदिर में भगवान सत्यनारायण की कथा सुनते हैैं। गांव के रामगोपाल और राम विनायक ने बताया कि हर घर में भगवान राम की पूजा होती है। घर में पूजा वाले स्थान पर विभिन्न देवी-देवताओं के साथ ही भगवान राम की भी मूर्ति रखी गई है। रोज भगवान की आरती उतारी जाती है। दीपावली पर यहां खास उत्सव होता है, जिसमें भगवान राम की शोभायात्रा निकाली जाती है। होली पर भगवान के चित्र पर गुलाल लगाने की प्राचीन परंपरा है।
मांगलिक कार्यों के पहले होती है राम और जानकी की पूजा
मांगलिक कार्यों के पहले राम और जानकी की गांव के लोग पूजा करते हैैं। फसल की मड़ाई होने पर अन्न घर पहुंचने पर राम के नाम उसका कुछ हिस्सा निकाला जाता है। कुछ भी हो, भगवान राम के जन्मस्थान अयोध्या में भव्य मंदिर बनने की कवायद शुरू होने से यह रामनामी अयोध्या आह्लïलादित है।
बेटी पैदा होने पर गाया जाता है सोहर
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ की पहल अब की है, लेकिन इस अयोध्या में प्राचीन समय से ही यह पहल पुष्पित पल्लवित हो रही है। गांव में बेटे की तरह ही बेटी पैदा होने पर भी सोहर (मंगलगीत) गाया जाता है। बेटियां जन्म लेती हैैं, तब भी यहां सोठौरा (खास किस्म का लड्डू) बांटा जाता है। मां का भी सम्मान होता है। सौरी (निकासन) के बाद बेलन नदी की पूजा होती है। गांव की जानकी और गायत्री ने बताया कि बुजुर्ग महिलाएं नई पीढ़ी को भी सोहर गाना सिखाती हैैं जिससे यह परंपरा चलती रहे।