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बाढ़ में डूबे खेत, ठप हुआ फूलमंडी में कारोबार

बाढ़ का असर यमुनापार में होने वाली फूलों की खेती पर भी पड़ा है। गुलाब की खेती तो लगभग बर्बाद हो चुकी है। इससे जुड़े कारोबारी परेशान हैं।

By JagranEdited By: Published: Tue, 17 Sep 2019 07:27 PM (IST)Updated: Fri, 20 Sep 2019 06:29 AM (IST)
बाढ़ में डूबे खेत, ठप हुआ फूलमंडी में कारोबार
बाढ़ में डूबे खेत, ठप हुआ फूलमंडी में कारोबार

नरेंद्र श्रीवास्तव, नैनी : बाढ़ का असर यमुनापार में होने वाली फूलों की खेती पर भी पड़ा है। सैकड़ों बीघे खेत पानी में डूब गए हैं। इसके चलते फूल मंडियों में फूलों की आवक न के बराबर हो रही है। पुराने यमुना पुल के समीप लगने वाली फूल मंडी में कारोबार ठप पड़ गया है। जो फूल बाहर से आ भी रहे हैं, उनका भाव आसमान छूने लगा है।

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यमुनापार क्षेत्र के महेवा, भट्ठा गांव, अरैल, गंजिया, देवरख, मवैया के कछारी इलाके में सैकड़ों बीघा जमीन पर फूलों की खेती होती है। इसमें 80 फीसद हिस्सेदारी गुलाब की रहती है। शेष 20 फीसद खेतों में गेंदा, सफेदा, सूरज मुखी और चमेली के फूल उगाए जाते हैं। यहां के गुलाब की खुशबू प्रयागराज के अलावा प्रतापगढ़, मिर्जापुर, कौशांबी, वाराणसी, जौनपुर तक फैली हुई है। वर्तमान समय में फूलों की खेती गंगा-यमुना की बाढ़ में डूबी हुई है। बाढ़ की चपेट में आकर गुलाब की 70 फीसद खेती बर्बाद हो चुकी है। गुलाब की आवक न होने से पुराने यमुना पुल के समीप लगने वाली फूल मंडी में कारोबार भी ठप पड़ गया है।

रोज होता है 50 लाख का धंधा

नैनी : पुराने पुल के दोनों तरफ प्रतिदिन फूल की करीब तीन सौ दुकानें लगती हैं। सुबह दस बजे तक थोक व्यवसाय में तेजी रहती है। इसके बाद फुटकर धंधा पूरे दिन चलता है। थोक और फुटकर मिलाकर प्रति दिन पचास लाख रुपये का धंधा हो जाता है। बाढ़ से इस धंधे को तगड़ी चोट लगी है। धंधे में करीब तीन दशक से लगी राम प्यारी देवी (अम्मा) कहती हैं कि 1978 वाली बाढ़ में फूल की खेती पूरी तरह से नष्ट हो गई थी। इसके बाद तटबंध मार्ग की वजह से काफी हद तक खेती सुरक्षित रहती थी लेकिन इस बार पानी कई रास्तों से आकर खेतों में भर गया है।


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