संरक्षित किए जाएंगे चिलबिल, जंगल जलेबी, निर्गुंडी के पेड़ Prayagraj News
गंगा के मैदान और पठार में विलुप्त प्रजाति के पेड़ों को संरक्षित करनेचारा की समस्या दूर करने के लिए नई प्रजातियों खोज करने किसी प्रजाति पर आने वाले खतरे के मद्देनजर अध्ययन करेंगे!
प्रयागराज, [राजकुमार श्रीवास्तव]। पर्यावरण संरक्षण और चारे की कमी को लेकर केंद्र सरकार गंभीर है। वन क्षेत्र को बढ़ाने, विलुप्त हो रही प्रजातियों के पेड़ों को संरक्षित, पौधों की नई प्रजातियों को विकसित और चारा प्रजातियों की खोज के लिए पांच वर्षीय योजना शुरू की गई है। पारि-पुनस्र्थापन वन अनुसंधान केंद्र प्रयागराज के वैज्ञानिकों ने योजना पर काम शुरू कर दिया है। वैज्ञानिकों ने गंगा के मैदानी क्षेत्रों में विलुप्त प्रजाति के पेड़ों को संरक्षित करने, लाभ पाने वाले किसानों की पहचान और उपयुक्त भूमि की तलाश प्रारंभ कर दी है।
बांस, यूकेलिप्टस, शीशम, महुआ आदि की नई प्रजातियां बढ़ाई जाएगी
पर्यावरण की स्थिरता और उत्पादकता की वृद्धि के लिए भारतीय अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद का वानिकी पर शोध बढ़ाने के लिए खास जोर है। इसके लिए पांच वर्षीय अखिल भारतीय समंवित अनुसंधान परियोजना शुरू की गई है। सूबे में इस काम की जिम्मेदारी एकमात्र केंद्र (पारि-पुनस्र्थापन वन अनुसंधान केंद्र प्रयागराज) को मिली है। केंद्र के वैज्ञानिक तीन कृषि जलवायु क्षेत्र मसलन गंगा के मैदान (मध्य एवं ऊपरी) और पठार में विलुप्त प्रजाति के पेड़ों को संरक्षित करने, चारा की समस्या दूर करने के लिए नई प्रजातियों खोज करने, किसी प्रजाति पर आने वाले खतरे के मद्देनजर अध्ययन करेंगे। बांस, यूकेलिप्टस, शीशम, महुआ, पाप्लर आदि की नई प्रजातियां बढ़ाने पर भी काम करेंगे। फिलहाल प्रदेश में किसान बांस की दो प्रजातियां (लाठी और कांटा) बांस ही उगाते हैं। बता दें कि प्रदेश में करीब नौ फीसद वृक्ष आच्छादित क्षेत्र है।
इन पर भी डालें नजर
02 प्रजातियां (लाठी व कांटा) बांस ही उगा रहे सूबे में किसान
05 वर्षीय योजना पर वैज्ञानिकों ने प्रारंभ कर दिया है काम
कम हो गए हैं ये पौधे
चिलबिल, जंगल जलेबी, अर्धकपारी, निर्गुंडी, करौंदा, कुमकुम, बबूल, बेर आदि प्रजाति के पौधे बहुत कम हो गए हैं।
पारि-पुनस्र्थापन वन अनुसंधान केंद्र के प्रमुख कहते हैं
पारि-पुनस्र्थापन वन अनुसंधान केंद्र प्रयागराज के प्रमुख डॉ. संजय सिंह कहते हैं कि यह योजना पांच वर्षों के लिए है। वैज्ञानिकों ने काम शुरू कर दिया है। योजना आगे बढ़ाई भी जा सकती है।