हर 100 वां व्यक्ति स्किजोफ्रेनिया बीमारी से है पीड़ित
हर सौ व्यक्ति स्किजोफ्रेनिया से पीड़ित है। इस बीमारी पीड़ित व्यक्ति बिल्कुल सामान्य नजर आता है। यह बीमारी अनुवांशिक तनाव और अधिक नशा से होती है।
By Edited By: Published: Fri, 24 May 2019 10:18 AM (IST)Updated: Fri, 24 May 2019 11:38 AM (IST)
प्रयागराज, [मनीष मिश्रा]। यदि कोई व्यक्ति सड़क पर खुद से बातें करते, हंसते अथवा रोते हुए चल रहा है तो यह समझिए कि होसकता है वह मानसिक बीमारी स्किजोफ्रेनिया पीड़ित हो। ऐसे लोगों को मनोचिकित्सक के पास ले जाने की जरूरत है। हम इस बीमारी का जिक्र इसलिए कर रहे हैं क्योंकि पूरा विश्व 24 मई को 'वर्ल्ड स्किजोफ्रेनिया डे' मना रहा है।
जागरूकता के अभाव में मरीज मनोचिकित्सक के पास नहीं पहुंच पाते
आंकड़ों पर गौर करें तो हर 100वां व्यक्ति इस गंभीर बीमारी की चपेट में है, लेकिन वह जागरूकता के अभाव में मनोचिकित्सक के पास नहीं पहुंच पाता। धीरे-धीरे लोग उसे पागल व सनकी कहने लगते हैं। स्किजोफ्रेनिया एक गंभीर मानसिक बीमारी है। इसमें मस्तिष्क सामान्य तरीके से काम नहीं कर पाता। इससे संबंधित व्यक्ति के सोच-विचार, मन-मिजाज, कार्य करने के तरीके और समाजीकरण की प्रक्रिया आदि में बदलाव आ जाता है। यह बीमारी देश ही नहीं पूरी दुनिया में है। अब मनोचिकित्सकों की ओपीडी में स्किजोफ्रेनिया से पीड़ित चार से पांच नए मरीज रोजाना पहुंचते हैं।
सामान्य दिखते हैं मरीज
मनोचिकित्सक डॉ. राकेश पासवान बताते हैं कि स्किजोफ्रेनिया बीमारी से ग्रसित मरीज देखने में सामान्य रहता है। वह ऐसी चीजों को लेकर परेशान रहता है जो असंभव होती है। मन में तमाम तरह की बातें होती हैं। परिवार व समाज से अलग रहना चाहता है। यह बीमारी 25 साल से अधिक आयु वालों में ज्यादा पाई जाती है। ऐसे मरीज खुदकशी का प्रयास भी करते हैं।
एडीएम कोर्ट में पहुंच गया था मरीज
कुछ दिन पहले ही इस बीमारी से ग्रसित एक मरीज एडीएम सिटी के कोर्ट में पहुंचा था। मरीज का कहना था उसके शरीर में डिवाइस लगा दी गई है जिसके जरिए उसको नियंत्रित किया जा रहा है। जब मनोचिकित्सक ने जांच की तो पता चला कि उसको स्किजोफ्रेनिया नामक बीमारी है।
क्या कहते हैं मनोचिकित्सक
मोतीलाल नेहरू मंडलीय अस्पताल के मनोचिकित्सक डॉ. अजय कुमार मिश्र बताते हैं कि स्किजोफ्रेनिया नाम की यह बीमारी अनुवांशिक, तनाव, अधिक नशा और सिर में गंभीर चोट लगने के कारण भी हो सकती है। अब नई दवाओं से इसको नियंत्रित किया जाता है, मरीज सामान्य जीवन जी सकता है।
जागरूकता के अभाव में मरीज मनोचिकित्सक के पास नहीं पहुंच पाते
आंकड़ों पर गौर करें तो हर 100वां व्यक्ति इस गंभीर बीमारी की चपेट में है, लेकिन वह जागरूकता के अभाव में मनोचिकित्सक के पास नहीं पहुंच पाता। धीरे-धीरे लोग उसे पागल व सनकी कहने लगते हैं। स्किजोफ्रेनिया एक गंभीर मानसिक बीमारी है। इसमें मस्तिष्क सामान्य तरीके से काम नहीं कर पाता। इससे संबंधित व्यक्ति के सोच-विचार, मन-मिजाज, कार्य करने के तरीके और समाजीकरण की प्रक्रिया आदि में बदलाव आ जाता है। यह बीमारी देश ही नहीं पूरी दुनिया में है। अब मनोचिकित्सकों की ओपीडी में स्किजोफ्रेनिया से पीड़ित चार से पांच नए मरीज रोजाना पहुंचते हैं।
सामान्य दिखते हैं मरीज
मनोचिकित्सक डॉ. राकेश पासवान बताते हैं कि स्किजोफ्रेनिया बीमारी से ग्रसित मरीज देखने में सामान्य रहता है। वह ऐसी चीजों को लेकर परेशान रहता है जो असंभव होती है। मन में तमाम तरह की बातें होती हैं। परिवार व समाज से अलग रहना चाहता है। यह बीमारी 25 साल से अधिक आयु वालों में ज्यादा पाई जाती है। ऐसे मरीज खुदकशी का प्रयास भी करते हैं।
एडीएम कोर्ट में पहुंच गया था मरीज
कुछ दिन पहले ही इस बीमारी से ग्रसित एक मरीज एडीएम सिटी के कोर्ट में पहुंचा था। मरीज का कहना था उसके शरीर में डिवाइस लगा दी गई है जिसके जरिए उसको नियंत्रित किया जा रहा है। जब मनोचिकित्सक ने जांच की तो पता चला कि उसको स्किजोफ्रेनिया नामक बीमारी है।
क्या कहते हैं मनोचिकित्सक
मोतीलाल नेहरू मंडलीय अस्पताल के मनोचिकित्सक डॉ. अजय कुमार मिश्र बताते हैं कि स्किजोफ्रेनिया नाम की यह बीमारी अनुवांशिक, तनाव, अधिक नशा और सिर में गंभीर चोट लगने के कारण भी हो सकती है। अब नई दवाओं से इसको नियंत्रित किया जाता है, मरीज सामान्य जीवन जी सकता है।
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