सौ साल पहले भी महामारी से जंग में हमने लगाया था मास्क, कालरा की सात लहरों ने बरपाया था देश में कहर
कोरोना की तीसरी लहर की आशंका इन दिनों चिंता का सबब बनी है। सरकारें तैयारियों में जुटीं हैैं और उम्मीद है कि हम इसे भी परास्त कर देंगे। दो सौ साल पहले कालरा ने स्पेनिश फ्लू से ज्यादा कहर बरपाया था। भारत का महामारियों से नाता पुराना है।
प्रयागराज, अमरदीप भट्ट। महामारी से जूझना और जीतना हम भारतीयों की मानो नियति रही है। कोरोना महामारी तो आज है, हमने तो तब भी मास्क लगाया था, जब 1918 में स्पेनिश फ्लू ने हमला बोला था। तब महात्मा गांधी भी इस बीमारी की चपेट में आए थे। हालांकि उनकी तबीयत जल्दी ही ठीक भी हुई थी। कालरा (हैजा) जैसी संचारी महामारी को भी हमने शिकस्त दी है वर्ष 1817 के बाद। इसकी सात लहरों ने हमारे करीब डेढ़ करोड़ पूर्वजों को हमसे छीन लिया था।
23 अगस्त 1817 को मिला था पहला मामला, देश का महामारियों से रहा है पुराना नाता
कोरोना की तीसरी लहर की आशंका इन दिनों चिंता का सबब बनी है। सरकारें तैयारियों में जुटीं हैैं और उम्मीद है कि हम इसे भी परास्त कर देंगे। इस उम्मीद के पीछे है महामारियों को दी गई शिकस्त। कालरा ने स्पेनिश फ्लू से ज्यादा कहर बरपाया था। भारत का महामारियों से नाता पुराना है। वर्तमान में कोरोना से पहले निपाह खौफ का सबब बना था। इससे पहले भी ऐसी ही महामारियों ने हमें तमाम कड़वे अनुभव दिए हैैं। पुराने दस्तावेजों और विभिन्न अनुसंधान से जुटाए गए तथ्यों के आधार पर राजकीय पब्लिक लाइब्रेरी (अल्फ्रेड पार्क) के अध्यक्ष डा. गोपाल मोहन शुक्ल बताते हैं कि 19 वीं शताब्दी में देश में कालरा का पहला मामला 23 अगस्त 1817 को सामने आया था। फिर भिन्न-भिन्न दशकों में कालरा (हैजा) की सात लहरें आई थीं। पहली, दूसरी और तीसरी लहर की शुरुआत भारत से हुई। यह महामारी एशिया के अन्य भागों से होते हुए यूरोप, उत्तरी अमेरिका और अफ्रीका तक पहुंची। भारत में झुग्गी झोपड़ी में गुजर बसर करने वाले ज्यादा प्रभावित हुए थे, यूरोपियन तथा अभिजात्य वर्ग के लोग सबसे कम। कालरा की लहर क्रमश: 1817 के बाद 1826, 1852, 1860, 1861, 1867 और 1881 में भी आई थी।
स्पेनिश फ्लू ने ढाया था कहर
1918-19 में स्पेनिश फ्लू (इन्फ्लूएंजा ) नामक महामारी ने दुनिया भर में तबाही मचाई थी। लगभग 50 करोड़ लोग इससे प्रभावित हुए थे। भारत में ही 1.20 करोड़ लोगों की मौत हो गई थी। यह आंकड़ा उस समय की भारतीय आबादी का छह फीसद था। स्पेनिश फ्लू का वायरस बहुत तेजी से अपना स्वरूप बदलता था। इसमें भी लोगों को सांस लेने में दिक्कत होती थी। संक्रमितों के चेहरे बैगनी, नीले पड़ जाते थे। मृत्यु के बाद चेहरा काला हो जाता था।
पं. नेहरू ने की थी मास्क लगाने की अपील
इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय के मध्य कालीन इतिहास विभाग के प्रोफेसर योगेश्वर तिवारी कहते हैं कि मई 1918 में प्रथम विश्व युद्ध से लौटे सैनिकों के साथ वायरस स्पेनिश फ्लू मुंबई पहुंचा था। आम बोलचाल में इसे बंबइया बुखार कहा गया। प्रयागराज (पूर्ववर्ती इलाहाबाद) मेें इससे 5000 लोगों की मौत हुई थी। इस महामारी से बचाव के लिए तब कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जवाहरलाल नेहरू ने देश की जनता से अपील की थी कि बिना मास्क पहने वह घरों से बाहर न निकलें। इस महामारी से बचाव के लिए वैक्सीन 1946 में आई थी।
प्लेग ने ले थी हजारों जानें
प्लेग महामारी ने भी किसी दौर में देश में सिहरन फैला दी थी। यह महामारी दो बार आई। 1896 में मुंबई की झुग्गी झोपड़ी से शुरूआत हुई हुई थी। इसमें हजारों लोगों की जान चली गई थी। फिर 1994 में सूरत (गुजरात) में भी प्लेग फैला था।
पोलियो की भी रही त्रासदी
पोलियो ने 1990 के दशक के अंत तक भारत में अपना खासा प्रभाव डाला था। सबसे अधिक प्रभावित राज्यों में उत्तर प्रदेश था।
यह भी रही हैं महामारी
चेचक, सारस, मेनिनजाइटिस, चिकनगुनिया, पीलिया और निपाह।
महामारी वर्ष मौतें (अनुमानित)
कालरा (हैजा) 1817 1.50 करोड़
स्पेनिश फ्लू 1918 1.20 करोड़
चेचक 1974 15000
सारस 2003 सैकड़ों मौतें
डेंगू 2006 1200
निपाह (केरल में) 2018 18