Emergency Day 1975: नैनी जेल में बंद रहे मीसा बंदियों की जुबानी सुनिए इमरजेंसी की कहानी
46 वर्ष पूर्व आज की तारीख यानी 25 जून 1975 की आधी रात को देश में आपातकाल लगा था। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सिफारिश पर लगे आपातकाल में अभिव्यक्ति की आजादी खत्म हो गई थी। सरकार के खिलाफ मुंह खोलने वालों को सलाखों के अंदर डालकर प्रताड़ना दी गई।
प्रयागराज, जागरण संवाददाता। आज 25 जून है। 46 वर्ष पूर्व इसी तारीख यानी 25 जून 1975 की आधी रात को देश में आपातकाल लगा था। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सिफारिश पर लगे आपातकाल में अभिव्यक्ति की आजादी खत्म हो गई थी। सरकार के खिलाफ मुंह खोलने वालों को सलाखों के अंदर डालकर प्रताड़ना दी गई। इसके बावजूद नेताओं के हौसले बुलंद थे। वे जेल से सरकार को चुनौती दे रहे थे।
जेल में गोष्ठी करके इंदिरा सरकार के खिलाफ बनाते थे रणनीति
नैनी सेंट्रल जेल में तत्कालीन जनसंघ के नेता पूर्व केंद्रीय मंत्री डा. मुरली मनोहर जोशी, मौजूदा रक्षामंत्री राजनाथ सिंह, समाजवादी नेता जनेश्वर मिश्र, बाबा राम आधार यादव, कम्युनिस्ट पार्टी आफ इंडिया माक्र्सवादी के नेता मैनपुरी के विधायक रामनाथ, हरिराम पांडेय, लक्ष्मी सहाय सक्सेना, हृदय नारायण शुक्ल, नरेंद्रदेव पांडेय, कृपाशंकर श्रीवास्तव जैसे 112 नेता मीसा के तहत बंद थे। उसी वर्ष यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री व राजस्थान के राज्यपाल रहे कल्याण सिंह अक्टूबर माह में अलीगढ़ से नैनी जेल आए। जेल में समाचार पत्र, रेडियो नहीं मिलता था। जो लोग मिलने के लिए आते थे, उन्हीं से समस्त स्थिति की जानकारी मिलती थी। फिर अलग-अलग विचारधारा वाले नेता प्रतिदिन शाम को साथ बैठकर चर्चा करके सरकार के खिलाफ प्रस्ताव पारित करते थे। उस प्रस्ताव को मिलने के लिए आने वाले नेताओं को बताया जाता था। फिर वो उसे बाहर बताते थे, उसी के अनुरूप सरकार के खिलाफ सामाजिक व कानूनी लड़ाई लड़ी जाती थी।
कचहरी से हुआ गिरफ्तार : नरेंद्रदेव
मीसा बंदी रहे वरिष्ठ भाजपा नेता नरेंद्रदेव पांडेय बताते हैं कि विपक्षियों की गिरफ्तारी और अखबारों पर सेंसर लगने से हर ओर अंधकार छा गया। मैं 26 जून की सुबह 10.30 बजे वकालत करने कचहरी गया था। वहीं मुझे गिरफ्तार कर लिया गया। जेल में इलाहाबाद विश्वविद्यालय के प्रो. रघुवंश से मुलाकात हुई, उनके दोनों हाथ में लकवा ग्रस्त था वह पांव से लिखते थे वह खंभे में चढ़कर तार काटने के आरोप में बंद थे।
परिवार से मिलने पर थी पाबंदी : कृपाशंकर
वरिष्ठ कर्मचारी नेता कृपाशंकर श्रीवास्तव बताते हैं कि आपातकाल में मीसा बंदियों को परिवार के सदस्यों से मिलने की छूट नहीं थी। रात दो बजे स्थानांतरण एक से दूसरे जेल में किया जाता था, जिससे उनके समर्थन में प्रदर्शन न कर सकें। समाचार पत्र व पत्रिकाओं पर रोक थी। मेरे जेल में बंद हरने के दौरान घर की स्थिति खराब हो गई थी। बच्चों की पढ़ाई छूट गई। खाने के लाले पड़ गए थे। कुछ मित्र चुपके से खाने-पीने की सामग्री पहुंचाते थे।
काला झंडा दिखाने पर मिली प्रताड़ना : राजेश
वरिष्ठ अधिवक्ता राजेश गुप्ता बताते हैं कि जब आपातकाल लगाने के समय मैं कुलभास्कर इंटर कालेज छात्रसंघ का अध्यक्ष था। आपातकाल के खिलाफ पंफलेट छपवाकर घर-घर बांटता था। अक्टूबर 1975 को इंदिरा के छोटे पुत्र संजय गांधी केपी कालेज मैदान में हुए कार्यक्रम में आए तो उन्हें काला झंडा दिखाया। इस पुलिस ने बेरहमी से पीटा, जिससे मेरा सिर फट गया। नैनी थाना में थर्ड डिग्री देने के बाद जेल में बंद कर दिया।
शोकसभा करने पर हुई गिरफ्तारी : ललित
मीसा बंदी ललित किशोर यादव पुरानी यादें ताजा करके सिहर जाते हैं। बताते हैं कि सामाजिक कार्यकर्ता रंगबहादुर पटेल की स्मृति में उन्होंने फूलपुर में शोकसभा की थी। इसी अपराध में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया। जेल में बंद करके प्रताड़ना दी गई। वो प्रताड़ना अभी तक नहीं भूली है।