मतदान के लिए लोगों को प्रेरित कर रहे 96 बेटियों के 'पिता'
वह बुजुर्ग समाजसेवी हैं। गरीब कन्याओं की शादी अपने खर्च से कराते हैं बच्चों की पढ़ाई में मदद करते हैं और गरीबों की सहायता फर्ज समझते हैं। अब मतदाता जागरूकता अभियान चला रहे हैं।
ज्ञानेंद्र सिंह, प्रयागराज : जोश तो देखिए उनका। जज्बा और जुनून भी जबरदस्त। उम्र हो चुकी है 74 साल। चलते हैं 25 साल पुरानी साइकिल से। काम जमीनी स्तर पर समाज सेवा का। सेवा में गरीब कन्याओं की शादी करना प्राथमिकता में शामिल है। गरीब बच्चों की पढ़ाई में भी मदद करते हैं। गरीबों की बीमारी में भी आर्थिक सहायता करते हैं। इन दिनों वह लोकतंत्र के प्रहरी बने हैं। मतदान के लिए लोगों को प्रेरित कर रहे हैं।
मतदाता जागरूकता अभियान चला रहे बुजुर्ग
बात हो रही है शहर के ऐसे बुजुर्ग शख्स की जो शहर में मतदान का प्रतिशत बढ़ाने में अपना विशेष योगदान दे रहे हैं। उनका नाम है कपिल सहगल। इलाहाबाद हाईकोर्ट में सेक्शन ऑफिसर रह चुके हैं। पत्नी अंजू सहगल शिक्षिका थीं, अब रिटायर हो चुकी हैं। कपिल का कहना है कि वर्ष 1972 से गरीब कन्याओं की शादी करा रहे हैं। अब तक 96 लड़कियों का विवाह कर चुके हैं। अगले माह सात मई को भी एक लड़की की शादी करेंगे। इसके अलावा मौजूदा समय में वह 32 लड़कियों और आठ लड़कों की फीस दे रहे हैं। ढाई सौ से ज्यादा लड़कों और लड़कियों की वह 12वीं तक की फीस दे चुके हैं। हाल ही में एक गरीब लड़की के इलाज में चार लाख रुपये का उन्होंने खर्च वहन किया।
बेटियों की ससुराल जाकर परिवार के लोगों से कर रहे मतदान की अपील
कपिल सहगल कहते हैं कि वह इन दिनों उन लड़कियों की ससुराल जा रहे हैं, जिनकी उन्होंने शादी कराई है। यही नहीं जिन बच्चों की पढ़ाई में उन्होंने आर्थिक मदद की है, उनके घर भी जा रहे हैं। सुबह सात बजे ही अपनी 25 साल पुरानी साइकिल लेकर निकल पड़ते हैं। बेटियों की ससुराल में जाकर परिवार के लोगों से 12 मई को मतदान की अपील करते हैं। बेटियों की ससुराल में पहुंचते हैं तो नाश्ता-पानी तभी करते हैं जब ससुराल के सभी सदस्य मतदान करने के लिए आश्वासन देते हैं।
कहा, बूंद-बूंद से भरता है सरोवर
कल्याणी देवी के पास गुजराती मोहल्ला निवासी कपिल साफ कहते हैं कि बूंद-बूंद से सरोवर भरता है। जिन बेटियों की उन्होंने शादी की है और जिन बच्चों की पढ़ाई में उन्होंने सहायता की है, उन सभी के घर में लगभग 16 सौ मतदाता हैं। उनकी इच्छा है कि ये सभी लोग मतदान करें।
फीस न मिलने से मिली दूसरों के सहायता की प्रेरणा
सहगल बताते हैं कि उनका बचपन बेहद गरीबी में बीता। पिता सीए थे। वृद्ध हो जाने से वह अक्सर बीमार रहते थे। घर में 10 लोग थे। बचपन में कई बार तो भूखे सो जाना पड़ा था। वह पढऩा चाहते थे लेकिन पैसे का अभाव था। इंटर की परीक्षा के लिए फीस के 20 रुपये तक नहीं थे। रिश्तेदारों से मांगने पर उन लोगों ने इन्कार कर दिया। उनके पिता के एक मित्र ने 25 रुपये दिए थे, तभी से सहगल ने ठान लिया था कि वह जरूरतमंदों की मदद करेंगे। पढ़ाई के बाद उन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में नौकरी की फिर उच्च न्यायालय में सेक्शन ऑफिसर बने।